श्रीरामचरितमानस – अयोध्याकाण्ड ( Shri Ramcharitmanas – Ayodhyakand )

श्री रामचरितमानस की महत्वपूर्ण घटनाएं

रामचरितमानस की समग्र घटनाओं को मुख्य 7 कांड में विभाजित कर सरलता से समझा जा सकता है। बालकाण्ड के बाद अयोध्याकाण्ड आता है। 

श्रीरामचरितमानस – अयोध्याकाण्ड ( Shri Ramcharitmanas – Ayodhyakand )

अयोध्याकाण्ड - यह द्वितीय कांड है जिसमें श्रीराम राज्याभिषेक की तैयारी , वन गमन श्रीराम-भरत मिलाप तक के घटनाक्रम आते हैं।

श्री रामचरितमानस – अयोध्याकाण्ड (Shri Ramcharitmanas Ayodhyakand)

अयोध्याकाण्ड में राजा दशरथ द्वारा राम को युवराज बनाने का विचार, राम के राज्याभिषेक की तैयारियाँ, राम को राजनीति का उपदेश, श्रीराम का अभिषेक सुनकर मन्थरा का कैकेयी को उकसाना, कैकेयी का कोपभवन में प्रवेश, राजा दशरथ से कैकेयी का वरदान माँगना, राजा दशरथ की चिन्ता, भरत को राज्यभिषेक तथा राम को चौदह वर्ष का वनवास, श्रीराम का कौशल्या, दशरथ तथा माताओं से अनुज्ञा लेकर लक्ष्मण तथा सीता के साथ वनगमन, कौसल्या तथा सुमित्रा के निकट विलाप करते हुए दशरथ का प्राणत्याग, भरत का आगमन तथा राम को लेने चित्रकूट गमन, राम-भरत-संवाद, जाबालि-राम-संवाद, राम-वसिष्ठ-संवाद, भरत का लौटना, राम का अत्रि के आश्रम गमन तथा अनुसूया का सीता को पातिव्रत धर्म का उपदेश आदि कथानक वर्णित है। अयोध्याकाण्ड में 119 सर्ग हैं तथा इन सर्गों में सम्मिलित रूपेण श्लोकों की संख्या 4,286 है।

नीलाम्बुजश्यामलकोमलांग सीतासमारोपितवामभागम्।
पाणौ महासायकचारुचापं नमामि रामं रघुवंशनाथम्॥

अर्थात नीलकमल की तरह जिनका सुंदर सा शरीर है सीता जी जिनके बाएं तरफ विराजमान है। हाथ में अमोघ  बाण लिए और सुंदर धनुष को पकड़े हुए। उस रघुनंदन श्री राम को मैं नमस्कार करता हूं ।

निराकार निर्विकार प्रभु श्री राम का वर्णन अयोध्या कांड में धीर वीर गंभीर के लक्षण को दर्शाता है। अयोध्या कांड में ही राम ने एक आदर्श पुत्र की प्रतिमूर्ति को स्थापित किया। साथ ही साथ भाई के प्रति भाई का प्रेम को भी समाज के सामने प्रकट किया। पिता का वचन कितना अमूल्य होता है। उसका भी श्री राम ने आह्लादित और आनंद पूर्वक होकर के उसका गान किया। पिता का महत्व मारे जीवन में क्या होता है और माता का महत्व क्या है हमारे जीवन में  आदि प्रश्नों का उत्तर श्री राम ने तुलसीदास द्वारा लिखित रामचरितमानस के दूसरे कांड अयोध्या कांड में पूरी तरह से बताया । इसका भी वर्णन हुआ है कि आप हमेशा अपने तर्क और बुद्धि का उपयोग करिए ।किसी के बहकावे में मत आइए। यदि आप किसी के बहकावे में आते हैं तो आप का विनाश निश्चित है। इसलिए आपको स्वयं के विवेक से निर्णय लेना चाहिए और उचित अनुचित का भेद आप स्वयं से करिये । किसी के कहने से नहीं।

अयोध्याकांड का संक्षिप्त वर्णन

विदाई होने के बाद राजा दशरथ अपने पुत्रों और बहुओं सहित अयोध्या पहुंच जाते हैं। तदोपरांत शादी से संबंधित जितनी रस्म होती है उन रस्मों को निभाया जाता है । राजा दशरथ को यह भान होने लगता है कि अब अयोध्या का सिंहासन राम को दे दिया जाए। इसके विषय में उन्होंने विद्वानों से मत भी लिया। सभी विद्वान एकमत होकर राम को अयोध्या का सिंहासन देने के लिए कहा। ऊपर से देवता लोग यह सब देख रहे थे। उनके मन में यह भय था कि यदि राम भगवान राज सिंहासन प्राप्त कर लिए तो रावण की मृत्यु असंभव हो जाएगी, जिसके लिए भगवान श्री हरि ने राम के रूप में अवतार लिया है। सभी देवता गण ब्रह्मा जी के पास गए और अपनी समस्या बताया। सरस्वती माता देवताओं की समस्या के निदान के लिए दासी मंथरा की  जिह्वा पर विराजमान हो गई। उसके बाद दासी मंथरा रानी कैकेई के पास जाती है और कैकई से कहती है कि राजा तो आपके पुत्र भरत को होना चाहिए। राम को नहीं भरत एक सुयोग्य शासक होगा। कैकई को गलत सलाह देने के बाद मंथरा चली गई। कैकई फिर अपने कोप भवन में चली जाती हैं और अपने श्रृंगार के आभूषण अपने शरीर से अलग कर वह एक गरीब की भांति व्यवहार करने लगी ।

राजा दशरथ भवन में जाकर रानी कैकेई के नाराजगी का कारण पूछा। तब रानी कैकेई ने कहा कि आप मेरे पुत्र को अयोध्या का राजा बनाइए। राम को 14 वर्ष का वनवास दीजिए। यह कथन सुनते ही राजा दशरथ हतप्रभ हो गए ।उसके बाद राजा दशरथ ने राम को बुलाया  और राम से  कहा कि राम तुम्हें 14 वर्ष वनवास के लिए जाना है। राम ने बिना किंतु -परंतु लगाए बोले 'ठीक है पिताजी' जैसी आपकी इच्छा और राम लक्ष्मण और अपनी भार्या सीता के साथ वन चले जाते हैं। वन प्रस्थान के दौरान निषाद राज गुहू से उनकी मुलाकात होती है। जो राम की एक सच्चे मित्र थे। निषाद राज गुहू राम को गंगा नदी पार कराते हैं । फिर राम वाल्मीकि आश्रम जाते हैं। वहां पर उपनिषद और धर्म पर चर्चा करते हैं और उनकी आज्ञा लेने के बाद चित्रकूट में रहने लगते हैं ।

फिर इधर राजा दशरथ पुत्र वियोग की वजह से अपने प्राण त्याग देते हैं। उसके बाद ऋषि वशिष्ठ ने भरत और शत्रुघ्न को उनके ननिहाल से बुलाया। ननिहाल से आने के बाद अयोध्या का सारा त्रिया -चरित्र की  उनको जानकारी होती है ।बहुत दुखी होते हैं। इसके लिए उन्होंने अपनी माता को बहुत खरी-खोटी भी सुनाया। राम को लाने के लिए वह निकल जाते हैं ।उनके साथ तीनों राज माताएं और मिथिला के राजा जनक और जनक की भार्या सुनैना भी जाती है। भरत राम से अयोध्या वापस चलने के लिए कहा राम ने मना कर दिया कि पिता का जो वरदान है ,वह झूठा हो जाएगा  मुझे इस वचन को झूठा नहीं करना है। भरत ने बहुत समझाया लेकिन राम ने ऐसे ऐसे तर्क प्रस्तुत किए भरत विवश होकर राम की चरण पादुका लेकर चित्रकूट से वापस अयोध्या चले आते हैं।

अयोध्या कांड की विशेषता क्या है?

(1) प्रजा ने की मांग थी कि अब श्रीराम को युवराज बना दिया जाए

सब कें उर अभिलाषु अस कहहिं मनाइ महेसु।
आप अछत जुबराज पद रामहि देउ नरेसु॥

प्रजा के हृदय में यह अभिलाषा है कि राजन आपने जीते जी श्री राम को अयोध्या का युवराज घोषित कर दीजिए। क्योंकि राम अयोध्या के लिए सबसे सुयोग्य शासक होंगे। उनके अंदर शासन करने के सारे गुण समाहित हैं। इसलिए हे राजन! आप राम को युवराज पद दे दीजिए।

राजा दशरथ इस बात को सुनकर बहुत आनंदित होते हैं कि प्रजा भी चाहती है राम ही अयोध्या के राजा बने। राजा दशरथ इसके विषय में ऋषि वशिष्ठ से मंत्रणा करते हैं ।ऋषि वशिष्ठ भी कहते हैं कि हे राजन राम में शासन करने के सारे गुण हैं ।फिर राजा दशरथ ने ऋषि वशिष्ठ से कहा कि आप एक अच्छा सा मुहूर्त देखिए । जिससे जल्द से जल्द ही राम का राज्याभिषेक कर दिया जाए।

(2) देवताओं को यह भय सताने लगा कि यदि राम राजा बन गए तो रावण की मृत्यु असम्भव हो जाएगी

राम को राजा बनाए जाने से देवता लोग बहुत दुखी हुए उनके दुख का कारण था कि जिसके लिए श्री हरि विष्णु ने जन्म लिया है अब उसकी मृत्यु कैसे होगी उषा धर्मी रावण की मृत्यु कैसे होगी इसके लिए वह सरस्वती माता के पास जाते हैं और कहते हैं कि

बिपति हमारि बिलोकि बड़ि मातु करिअ सोइ आजु।
रामु जाहिं बन राजु तजि होइ सकल सुरकाजु॥

अर्थात देवता लोग सरस्वती माता के चरणों को पकड़कर कहते हैं कि हे माता आप कुछ ऐसा करिए ।जिससे श्री राम राज्य का त्याग करके वन चले जाएं ।जिससे रावण की मृत्यु संभव हो सके। सरस्वती माता देवताओं के कथनानुसार दासी मंथरा के जिह्वा पर विराजमान हो जाती हैं।

(3) मंथरा के कथनानुसार कैकई का कोप भवन में जाना

जब सरस्वती माता मंथरा के  जिह्वा पर विराजमान हो जाती है। जिसके परिणाम स्वरूप दासी मंथरा का मति भ्रम हो जाता है। रानी कैकेई के पास जाकर अयोध्या का राजा राम के बदले भारत को बनाया जाए। ऐसा राय दिया और साथ ही साथ इस को अंजाम देने के लिए कहती है

बड़ कुघातु करि पातकिनि कहेसि कोपगृहँ जाहु।
काजु सँवारेहु सजग सबु सहसा जनि पतिआहु॥

मतिभर्मि मंथरा रानी कैकेई से कहती है अब तुमको सीधे कोप भवन जाना है । ध्यान रखना कोप भवन में जाने के बाद राजा के चिकनी चुपड़ी बातों में नहीं आना है । तुम्हें अपनी बात मनवाकर कोप भवन से बाहर निकलना है।

(4) वनगमन की ओर प्रस्थान करना

कोप भवन से निकलने के परिणाम स्वरूप राजा दशरथ श्री राम को अपने पास बुलाते हैं। चेहरे पर नीरस का भाव लिए हुए कहते हैं कि राम अयोध्या के राजा भरत होंगे और तुम 14 वर्ष तक वनवास में रहोगे ।राम ने अपने पिता का यह वाक्य आशीर्वाद माना और मुस्कुराते हुए कहा कि पिताजी की जैसी इच्छा । यह घटना परिवार के अन्य सदस्य को जब पता चलता हैं  जैसे कि श्री राम की माता कौशल्या और साथ ही साथ सीता और लक्ष्मण और सुमित्रा को भी जब पता चलता है। सब चिंतित हो उठते हैं लक्ष्मण विद्रोह करने पर उतर आते हैं कि राम ही अयोध्या के राजा बने। लेकिन राम के कहने पर लक्ष्मण मान जाते हैं और लक्ष्मण राम से आग्रह करते हैं कि भैया 14 वर्ष वनवास आप अकेले नहीं जाएंगे मैं भी आपके साथ जाऊंगा । क्योंकि राम और लक्ष्मण भले दो शरीर हो लेकिन आत्मा एक है । जिसके परिणाम स्वरूप राम लक्ष्मण को अपने साथ ले जाने के लिए तैयार हो जाते हैं। उसके बाद सीता भी जिद पर अड़ जाती है कि मैं भी आपके साथ वन चलूंगी ।राम मना करते हैं लेकिन सीता के जिद के आगे राम की एक भी नहीं चलती है। और अंततः सीता को अपने साथ ले जाने के लिए तैयार हो जाते हैं।

तुलसीदास जी रामचरितमानस में लिखते हैं कि
सजि बन साजु समाजु सबु बनिता बंधु समेत।
बंदि बिप्र गुर चरन प्रभु चले करि सबहि अचेत॥

अर्थात वन में प्रयोग होने वाले समान को लेकर राम अपने छोटे अनुज लक्ष्मण और अपनी भार्या सहित गुरु की आज्ञा लेकर वन की ओर प्रस्थान करते हैं।

लागति अवध भयावनि भारी। मानहुँ कालराति अँधिआरी॥
घोर जंतु सम पुर नर नारी। डरपहिं एकहि एक निहारी॥

अर्थात राम जब वनवास चले जाते हैं अयोध्या नगरी में भय का माहौल हो जाता है नगर में वास करने वाले नर और नारी एक दूसरे को देख कर भयभीत हो रहे हैं।

(5) भरत शत्रुघ्न और परिवार के अन्य सदस्य राम को वापस अयोध्या लाने के लिए जाना

राम की वियोग में राजा दशरथ की मृत्यु हो जाती है ।राजा दशरथ की मृत्यु होने के बाद उनकी चिता को मुखाग्नि देने के लिए भरत शत्रुघ्न को उनके ननिहाल से बुलाया जाता है। जब भरत शत्रुघ्न अयोध्या में आते हैं तो सब के विषय में जानकारी पूछते हैं कि राम कहां है लक्ष्मण कहाँ हैं ।सब खामोश रहते हैं और जब यह पता चलता है कि राम वन चले गए हैं ।वन जाने के पीछे रानी कैकेई का हाथ है। तब अपनी माता पर भरत बहुत क्रोधित होते हैं । उन्हें इसके लिए बहुत खरी-खोटी सुनाते हैं ।जिसके बाद रानी कैकेई को अपनी गलती का एहसास होता है। फिर भरत, कौशल्या की अनुमति लेकर राम को वापस लेने के लिए निकल जाते हैं। उनके साथ कौशल्या ,सुमित्रा और कैकेई और साथ ही साथ ऋषि वशिष्ठ आर्य सुमंत और मिथिला के राजा जनक और रानी सुनैना भी शामिल रहती हैं।

नगर लोग सब सजि सजि जाना। चित्रकूट कहँ कीन्ह पयाना॥
सिबिका सुभग न जाहिं बखानी। चढ़ि चढ़ि चलत भईं सब रानी॥

अर्थात नगर में वास करने वाले सब प्रजा राम को लाने के लिए अपने रथ से निकल पड़े । सुंदर-सुंदर पालकी में अयोध्या की रानियां भी बैठकर वन की ओर निकल गई।

एहि बिधि भरत चले मग जाहीं। दसा देखि मुनि सिद्ध सिहाहीं॥
जबहि रामु कहि लेहिं उसासा। उमगत प्रेमु मनहुँ चहु पासा।।

श्रीमान भरत ऐसे चल रहे हैं। उनके चलने के तरीकों को देखकर मुनि और ऋषि भी सिहर जा रहे हैं । जब उनको थकान की अनुभूति होने लगती है ।तब भरत राम नाम की लंबी सांस लेते हैं। राम का नाम लेने से आसपास के वातावरण में सकारात्मक उर्जा फैल जाती है।

(6) श्री राम के चरण पादुका को श्रीमान भरत अपने सर पर रख कर अयोध्या की ओर प्रस्थान किए

चित्रकूट पहुंचने के बाद भरत ने श्री राम को अयोध्या लाने के लिए अनेक यत्न किए। लेकिन राम अपने तर्कों से भरत के सारे प्रश्नों का उत्तर दे देते थे। ऋषि वशिष्ठ भी राम को मनाने की बड़ी चेष्टा की ।लेकिन राम नहीं माने और रानी कैकेई भी अपनी गलती के लिए राम से माफी मांगती है। तब राम भगवान कहते हैं कि माता आपसे कभी कोई गलती हुई ही नहीं है। यह तो आपका प्रसाद है।  मेरा सौभाग्य है कि मैं वन में रह रहा हूं मुझे ऋषि और मुनि से  अमोघ ज्ञान की प्राप्ति हो रही है। इतना सुनते ही माता कैकई की आंखों में आंसू आ जाता है।  राम की चरणों पर गिर जाती है। राम उन्हें उठाकर गले लगाते हैं। बोलते ही की माता का स्थान चरणों में नहीं बल्कि पुत्र का स्थान माता के चरणों में होना चाहिए।  साथ साथ ही साथ अयोध्या की वासी भी प्रयास करते हैं राम ही अयोध्या वापस चले । राम सब को समझाते हैं कि पिता का वचन झूठा नहीं करना है। यदि पिता के वचन झूठा होगा तो पिता की जगहँसाई होगी। भरत विवश होकर राम भगवान की चरण पादुका को अपने सर पर लेकर अयोध्या की ओर प्रस्थान करते हैं ।

इसके विषय में तुलसीदास जी लिखते हैं कि
भरत चरित करि नेमु तुलसी जो सादर सुनहिं।
सीय राम पद पेमु अवसि होइ भव रस बिरति॥

अर्थात जो भी कोई व्यक्ति भारत के चरित्र की विषय में जानेगा उसे अवश्य ही श्रीराम के चरण से प्रेम हो जाएगा तब उसका मन सांसारिक विषयों की ओर आसक्ति नहीं होगा

14 comments:

  1. जय प्रभु श्री राम 🙏🏻

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  2. पवन कुमारJanuary 25, 2024 at 1:03 PM

    🌹🙏जय सियाराम🙏🌹

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  3. जय जय श्रीराम
    जसवंत निराला

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  4. जय सिया राम

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  5. जय श्री सीताराम

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  6. Jai Shri Ram , Jai Siyaram🙏🙏

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  7. 🙏🙏💐💐शुभरात्रि 🕉️
    🚩🚩जय जय सियाराम 🚩🚩
    👍👍👍बहुत बढ़िया, आप का बहुत बहुत धन्यवाद 💐💐

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