व्रत या उपवास

व्रत या उपवास

दिनभर के लिए अन्न या जल या अन्य भोजन या इन सबका त्याग व्रत कहलाता है। व्रत रखना एक तरफ धर्म से जुड़ा है तो वहीँ दूसरी तरफ स्वास्थ्य से जुड़ा है। व्रत रखने के नियम दुनिया को हिंदूधर्म की देन है। व्रत रखना एक पवित्र कर्म है और यदि इसे नियमपूर्वक नहीं किया जाता है, तो न तो इसका कोई महत्व है और न ही लाभ बल्कि इससे नुकसान भी हो सकते हैं। हम व्रत बिल्कुल भी नहीं रखते हैं तो भी हमको इस कर्म का भुगतान करना ही होगा। राजा भोज के राजमार्तण्ड में 24 व्रतों का उल्लेख है।

व्रत या उपवास

व्रत या उपवास कितने प्रकार के होते हैं?

हेमादि में 700 व्रतों के नाम बताए गए हैं। गोपीनाथ कविराज ने 1622 व्रतों का उल्लेख अपने व्रतकोश में किया है। व्रतों के प्रकार तो मूलत: तीन है:- 1. नित्य, 2.नैमित्तिक और 3.काम्य।

1.नित्य व्रत उसे कहते हैं जिसमें ईश्वर भक्ति या आचरणों पर बल दिया जाता है, जैसे सत्य बोलना, पवित्र रहना, इंद्रियों का निग्रह करना, क्रोध न करना, अश्लील भाषण न करना और परनिंदा न करना, प्रतिदिन ईश्वर भक्ति का संकल्प लेना आदि नित्य व्रत हैं। इनका पालन नहीं करते से मानव दोषी माना जाता है ।

2.नैमिक्तिक व्रत उसे कहते हैं जिसमें किसी प्रकार के पाप हो जाने या दुखों से छुटकारा पाने का विधान होता है। अन्य किसी प्रकार के निमित्त के उपस्थित होने पर चांद्रायण प्रभृति, तिथि विशेष में जो ऐसे व्रत किए जाते हैं वे नैमिक्तिक व्रत हैं।

3.काम्य व्रत किसी कामना की पूर्ति के लिए किए जाते हैं,जैसे पुत्र प्राप्ति के लिए, धन- समृद्धि के लिए या अन्य सुखों की प्राप्ति के लिए किए जाने वाले व्रत काम्य व्रत हैं।

व्रतों का वार्षिक चक्र :-

1.साप्ताहिक व्रत :सप्ताह में एक दिन व्रत रखना चाहिए। यह सबसे उत्तम है।

2 . पाक्षिक व्रत : 15-15 दिन के दो पक्ष होते हैं कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष। प्रत्येक पक्ष में चतुर्थी, एकादशी, त्रयोदशी, अमावस्या और पूर्णिमा के व्रत महतवपूर्ण होते हैं। उक्त में से किसी भी एक व्रत को करना चाहिए।

3.त्रैमासिक : वैसे त्रैमासिक व्रतों में प्रमुख है नवरात्रि के व्रत। हिंदू माह अनुसार पौष, चैत्र, आषाढ और अश्विन मान में नवरात्रि आती है। उक्त प्रत्येक माह की प्रतिपदा यानी एकम् से नवमी तक का समय नवरात्रि का होता है। इन नौ दिनों तक व्रत और उपवास रखने से सभी तरह के क्लेश समाप्त हो जाते हैं।

4.छह मासिक व्रत : चैत्र माह की नवरात्रि को बड़ी नवरात्रि और अश्विन माह की नवरात्रि को छोटी नवरात्रि कहते हैं। उक्त दोंनों के बीच छह माह का अंतर होता है। इसके अलावा

5.वार्षिक व्रत : वार्षिक व्रतों में पूरे श्रावण मास में व्रत रखने का विधान है। इसके अलवा जो लोग चतुर्मास करते हैं उन्हें जिंदगी में किसी भी प्रकार का रोग और शोक नहीं होता है। इससे यह सिद्ध हुआ की व्रतों में 'श्रावण माह' महत्वपूर्ण होता है। सोमवार नहीं पूरे श्रावण माह में व्रत रखने से हर तरह के शारीरिक और मानसिक कलेश मिट जाते हैं।

उपवास के प्रकार:- 1.प्रात: उपवास, 2.अद्धोपवास, 3.एकाहारोपवास, 4.रसोपवास, 5.फलोपवास, 6.दुग्धोपवास 7.तक्रोपवास, 8.पूर्णोपवास, 9.साप्ताहिक उपवास, 10.लघु उपवास, 11.कठोर उपवास, 12.टूटे उपवास, 13.दीर्घ उपवास। बताए गए हैं, लेकिन हम यहां वर्ष में जो व्रत होते हैं उसके बारे में बता रहे हैं।

व्रत या उपवास कितने प्रकार के होते हैं?

1.प्रात: उपवास- 

इस उपवास में सिर्फ सुबह का नाश्ता नहीं करना होता है और पूरे दिन और रात में सिर्फ 2 बार ही भोजन करना होता है।

2.अद्धोपवास- 

इस उपवास को शाम का उपवास भी कहा जाता है और इस उपवास में सिर्फ पूरे दिन में एक ही बार भोजन करना होता है। इस उपवास के दौरान रात का भोजन नहीं खाया जाता।

3.एकाहारोपवास- 

एकाहारोपवास में एक समय के भोजन में सिर्फ एक ही चीज खाई जाती है, जैसे सुबह के समय अगर रोटी खाई जाए तो शाम को सिर्फ सब्जी खाई जाती है। दूसरे दिन सुबह को एक तरह का कोई फल और शाम को सिर्फ दूध आदि।

4.रसोपवास- 

इस उपवास में अन्न तथा फल जैसे ज्यादा भारी पदार्थ नहीं खाए जाते, सिर्फ रसदार फलों के रस अथवा साग-सब्जियों के जूस पर ही रहा जाता है।दूध पीना भी मना होता है,क्योंकि दूध की गणना भी ठोस पदार्थों में की जा सकती है।

5.फलोपवास- 

कुछ दिनों तक सिर्फ रसदार फलों या भाजी आदि पर रहना फलोपवास कहलाता है।अगर फल बिलकुल ही अनुकूल न पड़ते हो तो सिर्फ पकी हुई साग-सब्जियां खानी चाहिए।

6.दुग्धोपवास-

दुग्धोपवास को 'दुग्ध कल्प' के नाम से भी जाना जाता है। इस उपवास में सिर्फ कुछ दिनों तक दिन में 4-5 बार सिर्फ दूध ही पीना होता है।

7.तक्रोपवास- 

तक्रोपवास को 'मठाकल्प' भी कहा जाता है। इस उपवास में जो मठा लिया जाए, उसमें घी कम होना चाहिए और वो खट्टा भी कम ही होना चाहिए। इस उपवास को कम से कम 2 महीने तक आराम से किया जा सकता है।

8.पूर्णोपवास- 

बिलकुल साफ-सुथरे ताजे पानी के अलावा किसी और चीज को बिलकुल न खाना पूर्णोपवास कहलाता है। इस उपवास में उपवास से संबंधित बहुत सारे नियमों का पालन करना होता है।

9.साप्ताहिक उपवास- 

पूरे सप्ताह में सिर्फ एक पूर्णोपवास नियम से करना साप्ताहिक उपवास कहलाता है।

10.लघु उपवास- 

3 से लेकर 7 दिनों तक के पूर्णोपवास को लघु उपवास कहते हैं।

11.कठोर उपवास- 

जिन लोगों को बहुत भयानक रोग होते हैं यह उपवास उनके लिए बहुत लाभकारी होता है। इस उपवास में पूर्णोपवास के सारे नियमों को सख्ती से निभाना पड़ता है। 

12.टूटे उपवास- 

इस उपवास में 2 से 7 दिनों तक पूर्णोपवास करने के बाद कुछ दिनों तक हल्के प्राकृतिक भोजन पर रहकर दोबारा उतने ही दिनों का उपवास करना होता है। उपवास रखने का और हल्का भोजन करने का यह क्रम तब तक चलता रहता है, जब तक कि इस उपवास को करने का मकसद पूरा न हो जाए।

13.दीर्घ उपवास- 

दीर्घ उपवास में पूर्णोपवास बहुत दिनों तक करना होता हैजिसके लिए कोई निश्चित समय पहले से ही निर्धारित नहीं होता। इसमें 21 से लेकर 50-60 दिन भी लग सकते हैं। अक्सर यह उपवास तभी तोड़ा जाता है,जब स्वाभाविक भूख लगने लगती है अथवा शरीर के सारे जहरीले पदार्थ पचने के बाद जब शरीर के जरूरी अवयवों के पचने की नौबत आ जाने की संभावना हो जाती है।

व्रत या उपवास के स्वास्थ्य लाभ

उपवास अगर सही नियम और तरीके से किए जाएं तो सेहत के लिए काफी फायदेमंद हो सकते हैं।वास्तव में व्रत का संबंध हमारे शारीरिक और मानसिक शुद्धिकरण से होता है। उपवास में भोजन का त्याग कर खाली पेट रहना पड़ता है, लेकिन आजकल के दौर में तो लोग उपवास के नाम पर बहुत सारी चीजें खाने लगे हैं। जिससे उन्हें कई तरह कि बीमारियों से गुजरना पड़ता है।

व्रत या उपवास के स्वास्थ्य लाभ

वैसे तो व्रत स्वास्थ की सलामती के लिए रखा जाता है, लेकिन इन सभी चीजों के कारण हमारे शरीर को नुकसान भी पहुंच सकता है। इसलिए व्रत में केवल फलाहार का ही सेवन करना चाहिए जिससे हमारा शरीर स्वस्थ रहे। व्रत रखने से पांचन तंत्र को आराम मिलता है और शरीर में जमा विषैले पदार्थ बाहर निकल जाते हैँ, जिससे हमारा पांचन तंत्र ठीक रहता है।

उपवास रखने से शांत और स्थिर रहने का अवसर भी मिलता है जिसके कारण मानसिक तनाव भी नहीं रहता। मोटापे को कम करने में भी व्रत व उपवास एक अलग ही भूमिका निभाता है। व्रत रखने से शरीर तो स्वस्थ रहता ही है साथ ही पेट से संबंधित बीमारियों की रोकथाम हो जाती है।

इससे कब्ज, गैस, एसिडीटी, अजीर्ण, अरूचि, सिरदर्द, बुखार, मोटापा जैसे कई रोगों का नाश हो जाता है। व्रत करने से आध्यत्मिक शक्ति तो बढ़ती ही है।साथ ही, ज्ञान, विचार, पवित्रता बुद्धि का विकास होता है। इसी कारण उपवास व्रत को पूजा पद्धति में भी शामिल किया गया है।

व्रत रखने का एक लाभ यह भी अगर मौसम परिवर्तन की अवस्था में उपवास रखने पर ऋतु संक्रमण काल की बीमारियां पास नहीं आती। जिससे हमें मौसमी बीमारियों का खतरा नहीं होता। इसके अलावा मनुष्य में भूखे रहने व भूख सहने की इच्छा शक्ति का विकास होता है। उपवास रखने से खाने से नियंत्रण होने के कारण किसी भी बीमारी का खतरा नहीं होता जिसके कारण हमारा शरीर स्वस्थ रहता है।

उपवास अगर सही नियम और तरीके से किए जाएं तो सेहत के लिए काफी फायदेमंद हो सकते हैं। कई लोग उपवास के नाम पर सामान्य दिनों की तुलना में ज्यादा खा लेते हैं, इससे उपवास का फायदा मिलने के बजाय नुकसान हो सकता है। खान-पान से जुड़ी ऐसी कुछ गलतियां जो लोग उपवास के दौरान करते हैं और इससे सेहत को नुकसान पहुंच सकता है या फिर उपवास से मिलने वाला फायदा नहीं मिलता।

19 comments:

  1. व्रत के विषय मे अत्यंत गूढ़ और सूक्ष्म विवेचन।

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  2. अतीव उत्तमं सूचनां दत्तवान् इति बहु धन्यवादः

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  3. एक तरफ सनातन से जुड़ी महत्वपूर्ण तथ्य वही स्वास्थ से जुड़ी बेहतरीन जानकारी एक साथ मिक्षण मे प्रस्तुत बहुत ही अद्धभुत 👌👌

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  4. Detail information 👍🏻

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  5. अच्छी जानकारी

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  6. अच्छी जानकारी

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  7. Nice share 👍🏻

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  8. आध्यात्मिक तथा शारीरिक दृष्टि से उपवास जरूरी है।

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  9. व्रत के बारे में विस्तृत जानकारी...

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