जब सती अनुसूया के तप से त्रिदेव बन गए शिशु..!
सती अनुसुइया महर्षि अत्रि की पत्नी थीं। अत्रि ऋषि ब्रह्मा जी के मानस पुत्र और सप्तऋषियों में से एक थे। अनुसुइया का स्थान भारतवर्ष की सती-साध्वी नारियों में बहुत ऊँचा है। इनका जन्म अत्यन्त उच्च कुल में हुआ था। ब्रह्मा जी के मानस पुत्र परम तपस्वी महर्षि अत्रि को इन्होंने पति के रूप में प्राप्त किया था। अत्रि मुनि की पत्नी जो दक्ष प्रजापति की चौबीस कन्याओं में से एक थीं। इन्होंने ब्रह्मा, विष्णु और महेश की सेवा करके उन्हें प्रसन्न किया और ये त्रिदेव क्रमश: सोम, दत्तात्रेय और दुर्वासा के नाम से उनके पुत्र बने। अनुसुइया पतिव्रत धर्म के लिए प्रसिद्ध हैं। वनवास काल में जब राम, सीता और लक्ष्मण चित्रकूट में महर्षि अत्रि के आश्रम में पहुँचे तो अनुसूया ने सीता को पतिव्रत धर्म की शिक्षा दी थी।
इस प्रसंग को पूज्यपाद गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरितमानस में इस तरह प्रस्तुत किया है-
ऋषि पत्नी मन सुख अधिकाई। आशीष देई निकट बैठाई।।
दिव्य वसन भूषण पहिराये। जे नित नूतन अमल सुहाये।।
इसी आश्रम में सतीअनुसुइया ने उनके पातिव्रत्य धर्म की परीक्षा लेने आये ब्रह्मा.विष्णु.महेश को शिशु बना दिया था। चलिए जानते हैं क्या है माता अनसुइया द्वारा त्रिदेवों के शिशु बनाने की पौराणिक कथा।
एक बार नारदजी ने मां लक्ष्मी, मां सरस्वती और मां पार्वती को अपने सतीत्व और पवित्रता की चर्चा करते देखा।
नारद जी उनके पास पहुंचे और उन्हें अत्रि महामुनि की पत्नी अनुसूया के असाधारण पातिव्रत्य के बारे में बताया कि उनके समान पवित्र और पतिव्रता तीनों लोकों में नहीं है।ईर्ष्यावश तीनों ने सती अनसूया के पातिव्रत्य को खंडित के लिए अपने पतियों से ज़िद की।
इस पर ब्रह्मा, विष्णु और महेश ने सती अनसूया के सतित्व और ब्रह्मशक्ति को परखने हेतु जब अत्रि ऋषि आश्रम से कहीं बाहर गए थे तब यतियों का भेष धारण कर आश्रम में पहुंचे तथा भिक्षा मांगने लगे, सती अनुसूया ने जब त्रिमूर्तियों का खाना देना चाहा तब वे एक स्वर में बोले, हे साध्वी,हमारा एक नियम है कि जब तुम निर्वस्त्र होकर भोजन परोसोगी, तभी हम भोजन करेंगे।अपने पातिव्रत्य पर आंच आता देख उन्होंने ऋषि अत्रि का स्मरण किया व दिव्य शक्ति से जाना कि वे ब्रह्मा, विष्णु और महेश हैं,, मुस्कुराते हुए माता अनुसूया बोली 'जैसी आपकी इच्छा'.... तीनों यतियों पर जल छिड़क कर उन्हें तीन प्यारे शिशुओं के रूप में बदल दिया। सुंदर शिशु देख कर माता अनुसूया के हृदय में मातृत्व भाव उमड़ पड़ा। शिशुओं को स्तनपान कराया, दूध-भात खिलाया, गोद में सुलाया। तीनों गहरी नींद में सो गए, तभी नारद जी लक्ष्मी, सरस्वती और पार्वती आ पहुंचे। नारद ने विनयपूर्वक अनसूया से कहा, माते, यह अपने पतियों को ढूंढ रही थी। कृपया इन्हें सौंप दीजिए।
अनसूया ने तीनों देवियों को प्रणाम करके कहा, ‘माताओं, झूलों में सोने वाले शिशु अगर आपके पति हैं तो इन्हें आप ले जा सकती हैं ! तीनों देवियों ने माता अनुसूया से क्षमा याचना की और बताया कि उन्होंने ही परीक्षा लेने के लिए अपने पतियों को बाध्य किया था, माता अनसूया ने त्रिदेवों को उनका रूप प्रदान किया। तीनों देव सती अनसूया से प्रसन्न हो बोले, देवी ? वरदान मांगो। त्रिदेव की बात सुन अनसूया बोलीः- “प्रभु ! आप तीनों मेरी कोख से जन्म लें ये वरदान चाहिए। कालान्तर में मतांतर से ब्रह्मा के अंश से चंद्र, विष्णु के अंश से दत्त तथा शिव के अंश से दुर्वासा का जन्म माता अनसूया के गर्भ से हुआ।
सती अनसुइया से जुड़ा एक प्रसंग यह भी है :-
कहा यह जाता है कि अत्रि मुनि गंगा स्नान के लिए प्रतिदिन प्रयागराज जाते थे। यह देख कर अनुसुइया ने एक बार ध्यानस्थ होकर कहा कि अगर मेरे तपोबल में शक्ति है तो गंगा को यहां हमारे आश्रम के पहाड़ से निकलना होगा। कहते हैं कि उनके तप के प्रभाव से पहाड़ से निकले स्रोत ने नदी का रूप ले लिया जो मंदिकनी या पयस्वनी कहलायी।
🙏🙏जय सीताराम 🙏🙏
ReplyDeleteजय त्रिदेव 🙏
ReplyDelete🙏🏻🙏🏻
ReplyDeleteJai tridev
ReplyDeleteAchi jankaari share ki
ReplyDeleteJay mahadev
ReplyDeleteमहा सती अनुसूया माता की जय।
ReplyDeleteसती अनुसूया की दिव्य कथा
ReplyDeleteAchhi kahani
ReplyDeleteVery interesting information.👌👌
ReplyDeleteमां अनुसूया को बारंबार नमस्कार 🙏
ReplyDeleteबहुत ही सराहनीय कार्य। मां अनुसूया को बारंबार नमस्कार
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