श्रीमद्भगवद्गीता || Shrimad Bhagwat Geeta ||अध्याय तीन ~ कर्मयोग || अनुच्छेद 36 - 43||

श्रीमद्भगवद्गीता || अध्याय तीन ~ कर्मयोग ||

अथ तृतीयोऽध्यायः ~ कर्मयोग

अध्यायतीन के अनुच्छेद 36 - 43

अध्याय तीन के अनुच्छेद 36 - 43 में पाप के कारणभूत कामरूपी शत्रु को नष्ट करने का उपदेश है। 

सम्पूर्ण श्रीमद्भगवद्गीता (Shrimad Bhagwat Geeta)

अर्जुन उवाच

अथ केन प्रयुक्तोऽयं पापं चरति पुरुषः ।
अनिच्छन्नपि वार्ष्णेय बलादिव नियोजितः ॥

भावार्थ : 

अर्जुन बोले- हे कृष्ण! तो फिर यह मनुष्य स्वयं न चाहता हुआ भी बलात्‌ लगाए हुए की भाँति किससे प्रेरित होकर पाप का आचरण करता है॥36॥

श्रीभगवानुवाच

काम एष क्रोध एष रजोगुणसमुद्भवः ।
महाशनो महापाप्मा विद्धयेनमिह वैरिणम्‌ ॥

भावार्थ : 

श्री भगवान बोले- रजोगुण से उत्पन्न हुआ यह काम ही क्रोध है। यह बहुत खाने वाला अर्थात भोगों से कभी न अघानेवाला और बड़ा पापी है। इसको ही तू इस विषय में वैरी जान॥37॥

धूमेनाव्रियते वह्निर्यथादर्शो मलेन च।
यथोल्बेनावृतो गर्भस्तथा तेनेदमावृतम्‌ ॥

भावार्थ : 

जिस प्रकार धुएँ से अग्नि और मैल से दर्पण ढँका जाता है तथा जिस प्रकार जेर से गर्भ ढँका रहता है, वैसे ही उस काम द्वारा यह ज्ञान ढँका रहता है॥38॥

आवृतं ज्ञानमेतेन ज्ञानिनो नित्यवैरिणा ।
कामरूपेण कौन्तेय दुष्पूरेणानलेन च ॥

भावार्थ : 

और हे अर्जुन! इस अग्नि के समान कभी न पूर्ण होने वाले काम रूप ज्ञानियों के नित्य वैरी द्वारा मनुष्य का ज्ञान ढँका हुआ है॥39॥

इन्द्रियाणि मनो बुद्धिरस्याधिष्ठानमुच्यते ।
एतैर्विमोहयत्येष ज्ञानमावृत्य देहिनम्‌ ॥

भावार्थ : 

इन्द्रियाँ, मन और बुद्धि- ये सब इसके वासस्थान कहे जाते हैं। यह काम इन मन, बुद्धि और इन्द्रियों द्वारा ही ज्ञान को आच्छादित करके जीवात्मा को मोहित करता है। ॥40॥

तस्मात्त्वमिन्द्रियाण्यादौ नियम्य भरतर्षभ ।
पाप्मानं प्रजहि ह्येनं ज्ञानविज्ञाननाशनम्‌ ॥

भावार्थ : 

इसलिए हे अर्जुन! तू पहले इन्द्रियों को वश में करके इस ज्ञान और विज्ञान का नाश करने वाले महान पापी काम को अवश्य ही बलपूर्वक मार डाल॥41॥

इन्द्रियाणि पराण्याहुरिन्द्रियेभ्यः परं मनः ।
मनसस्तु परा बुद्धिर्यो बुद्धेः परतस्तु सः ॥

भावार्थ : 

इन्द्रियों को स्थूल शरीर से पर यानी श्रेष्ठ, बलवान और सूक्ष्म कहते हैं। इन इन्द्रियों से पर मन है, मन से भी पर बुद्धि है और जो बुद्धि से भी अत्यन्त पर है वह आत्मा है॥42॥

एवं बुद्धेः परं बुद्धवा संस्तभ्यात्मानमात्मना ।
जहि शत्रुं महाबाहो कामरूपं दुरासदम्‌ ॥

भावार्थ : 

इस प्रकार बुद्धि से पर अर्थात सूक्ष्म, बलवान और अत्यन्त श्रेष्ठ आत्मा को जानकर और बुद्धि द्वारा मन को वश में करके हे महाबाहो! तू इस कामरूप दुर्जय शत्रु को मार डाल॥43॥

15 comments:

  1. ॐ श्री भगवते वासुदेवाय नमः

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  2. 🌹🙏गोविंद🙏🌹

    बुद्धि द्वारा मन को वश में करके काम रूपी
    शत्रु का संहार किया जा सकता है।रजोगुण
    से उत्पन्न काम ही क्रोध है।क्रोध पर बिना
    नियंत्रण किये कुछ भी नहीं कर सकते है।

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  3. जय श्री कृष्ण

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  4. ॐ नमो भगवते वासुदेवाय

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  5. श्रीमन्नारायण नारायण नारायण 🙏

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  6. जय श्री कृष्णा 🙏

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  7. ~||श्री कृष्ण गोविँद हरे मुरारी........,
    ..........हे नाथ नारायण वासुदेवा ||~
    🙏🙏🌷🌷🌻🌻🌷🌷🙏🙏
    🙏🏻🌷🌷 जय श्री राधे कृष्णा रूपा जी 🌷🌷🙏🏻

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  8. जय श्री कृष्ण💐

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  9. Jai shree krishna

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  10. जानकारी हेतु scince journey YouTube channel जरूर सुने इसम live आ रहा है

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