नर्मदा नदी की कहानी

नर्मदा नदी की कहानी

नर्मदा नदी से शायद ही कोई अपरिचित होगा। नर्मदा नदी पूरे भारतवर्ष की नदियों में से एक ही है, जो पूर्व से पश्चिम की ओर बहती है। माँ नर्मदा मध्यप्रदेश की जीवनदायनी मानी जाती है, पर हम बात करेंगे आज भक्तों के द्वारा की जानी वाली नर्मदा परिक्रमा की। 
क्यों करते है लोग माँ नर्मदा परिक्रमा

क्यों करते है लोग माँ नर्मदा परिक्रमा

हिन्दू धर्म मे परिक्रमा का अपना विशेष महत्व है। परिक्रमा का तात्पर्य है, किसी भी जगह व्यक्ति के चारों तरफ घूमना। श्री गणेश के द्वारा अपने माता पिता की परिक्रमा कर समस्त लोकों की परिक्रमा का पूर्ण फल लिया था। ठीक उसी तरह जहाँ से माँ नर्मदा का उद्गम हुआ है वहाँ से अंतिम छोर तक कि परिक्रमा की जाती है।

क्यों करते है लोग माँ नर्मदा परिक्रमा

रहस्य और रोमांच से भरी यह यात्रा बहुत ही महत्वपूर्ण होती है। पुराणों में इस नदी पर एक अलग ही रेवाखंड नाम से विस्तार में उल्लेख मिलता है। हिन्दू धर्म में नर्मदा परिक्रमा या यात्रा एक धार्मिक यात्रा है। जिसने भी नर्मदा या गंगा में से किसी एक की परिक्रमा पूरी कर ली उसने अपनी जिंदगी का सबसे बड़ा काम कर लिया। 

यदि अच्छे से नर्मदाजी की परिक्रमा की जाए तो नर्मदाजी की परिक्रमा 3 वर्ष 3 माह और 13 दिनों में पूर्ण होती है, परंतु कुछ लोग इसे 108 दिनों में भी पूरी करते हैं। परिक्रमावासी लगभग 1,312 किलोमीटर के दोनों तटों पर निरंतर पैदल चलते हुए परिक्रमा करते हैं। 

कब की जाती है माँ नर्मदा की परिक्रमा

कब की जाती है माँ नर्मदा की परिक्रमा

नर्मदा परिक्रमा दो तरह से होती है। पहला हर माह नर्मदा पंचक्रोशी  होती है और दूसरे नर्मदा की परिक्रमा होती है। प्रत्येक माह होने वाली पंचक्रोशी यात्रा की तिथि कैलेंडर में दी हुई होती है। यह यात्रा तीर्थ नगरी अमरकंटक, ओंकारेश्वर और उज्जैन से प्रारम्भ हो कर यहीं समापन की जाती है। परिक्रमा श्रद्धालु अपने समर्थ अनुसार करते हैं। कुछ लोग पैदल करते है तो कुछ लोग अपने द्वारा लाये गए बाहनों से। 

परिक्रमा करते हुए सभी अपने साथ अपनी भोजन सामग्री ले कर चलते हैं। जहाँ विश्राम डेरा डाला बही सात्विक भोजन बना कर ग्रहण कर लिया। परिक्रमा के दौरान परिक्रमा करने वाले मनुष्य को सात्विक भोजन के साथ साथ ब्रह्मचर्य का पालन जरूरी है। 

माँ नर्मदा का उद्गम स्थल कहाँ है एवम कहाँ कहाँ से पिरवाहित होती हैं माँ

माँ नर्मदा का अमरकंटक के कोटितार्थ में उद्गम हुआ है। यहाँ सफेद रंग के 34 दार्शनिक मंदिर हैं। यहां नर्मदा उद्गम कुंड है, जहां से नर्मदा नदी का उद्गम हुआ है। जहाँ नर्मदा जी प्रवाहमान होती हैं वहाँ मंदिर परिसरों में सूर्य, लक्ष्मी, शिव, गणेश, विष्णु आदि देवी-देवताओं के मंदिर हैं। समुद्रतल से 3600 फीट की ऊंचाई पर स्थित अमरकंटक को नदियों की जननी कहा जाता है। यहां से लगभग पांच नदियों का उद्गम होता है, जिसमें नर्मदा नदी, सोन नदी और जोहिला नदी प्रमुख हैं। नर्मदा की कुल 41 सहायक नदियां हैं। उत्तरी तट से 19 और दक्षिणी तट से 22। नर्मदा बेसिन का जलग्रहण क्षेत्र एक लाख वर्ग किलोमीटर है। 

यह देश के भौगोलिक क्षेत्रफल का तीन और मध्य प्रदेश के क्षेत्रफल का 28 प्रतिशत है। नर्मदा की आठ सहायक नदियां 125 किलोमीटर लंबी हैं।

अमरकंटक, माई की बगिया से नर्मदा कुंड, मंडला, जबलपुर, भेड़ाघाट, बरमानघाट, पतईघाट, मगरोल, जोशीपुर, छपानेर, नेमावर, नर्मदासागर, पामाखेड़ा, धावड़ीकुंड, ओंकारेश्‍वर, बालकेश्‍वर, इंदौर, मंडलेश्‍वर, महेश्‍वर, खलघाट, चिखलरा, धर्मराय, कातरखेड़ा, शूलपाड़ी की झाड़ी, हस्तीसंगम, छापेश्वर, सरदार सरोवर, गरुड़ेश्वर, चंदोद, भरूच। इसके बाद लौटने पर पोंडी होते हुए बिमलेश्वर, कोटेश्वर, गोल्डन ब्रिज, बुलबुलकंड, रामकुंड, बड़वानी, ओंकारेश्वर, खंडवा, होशंगाबाद, साडिया, बरमान, बरगी, त्रिवेणी संगम, महाराजपुर, मंडला, डिंडोरी और फिर अमरकंटक ये समस्त ग्राम शहर नर्मदा परिक्रमा के मार्ग है इन समस्त जगह से माँ नर्मदा प्रवाहित होती है परिक्रमा वासी अमरकंटक या होशंगाबाद से यात्रा प्रारंभ कर इन समस्त जगह से होते हुए पुनः जहा से शुरू किया वही पर आ कर माँ नर्मदा के स्नान के साथ अपनी परिक्रमा समाप्त करते हैं। 

यू तो परिक्रमा के बहुत नियम हैं, परंतु कुछ नियम महत्वपूर्ण हैं 

नर्मदा नदी की कहानी

प्रतिदिन नर्मदाजी में स्नान करें। जलपान भी रेवा जल का ही करें। प्रदक्षिणा में दान ग्रहण न करें। श्रद्धापूर्वक कोई भेजन करावे तो कर लें क्योंकि आतिथ्य सत्कार का अंगीकार करना तीर्थयात्री का धर्म है। त्यागी, विरक्त संत तो भोजन ही नहीं करते भिक्षा करते हैं जो अमृत सदृश्य मानी जाती है  परिक्रमा में न किसी प्रकार का छल मन मे रखे न कोई द्वेष किसी से रखे परिक्रमा के दौरान आपस मे मिल जुल के रहें। 

चतुर्मास में परिक्रमा न करें। देवशयनी आषाढ शुक्ल एकादशी से कार्तिक शुक्ल एकादशी तक सभी गृहस्थ चतुर्मास मानते हैं। मासत्मासे वैपक्षः की बात को लेकर चार पक्षों का सन्यासी यति प्रायः करते हैं। नर्मदा प्रदक्षिणा वासी विजयादशी तक दशहरा पर्यन्त तीन मास का भी कर लेते हैं। उस समय मैया की कढाई यथाशक्ति करें कोई-कोई प्रारम्भ् में भी करके प्रसन्न रहते हैं।

नर्मदा जी के परिक्रमा में पड़ने वाले कुछ तीर्थ स्थल

वैसे तो नर्मदा के तट पर बहुत सारे तीर्थ स्थित है लेकिन यहां कुछ प्रमुख तीर्थों की व्यख्या कर रहे है अमरकंटक, मंडला (राजा सहस्रबाहु ने यही नर्मदा को रोका था), भेड़ा-घाट, होशंगाबाद (यहां प्राचीन नर्मदापुर नगर था), नेमावर, ॐकारेश्वर, मंडलेश्वर, महेश्वर, शुक्लेश्वर, बावन गजा, शूलपाणी, गरुड़ेश्वर, शुक्रतीर्थ, अंकतेश्वर, कर्नाली, चांदोद, शुकेश्वर, व्यासतीर्थ, अनसूयामाई तप स्थल, कंजेठा शकुंतला पुत्र भरत स्थल, सीनोर, अंगारेश्वर, धायड़ी कुंड और अंत में भृगु-कच्छ अथवा भृगु-तीर्थ (भडूच) और विमलेश्वर महादेव तीर्थ।

क्यों करते है लोग परिक्रमा

भगवान भोलेनाथ का वरदान प्राप्त माँ नर्मदा जी परिक्रमा जिसने की उसके पीढ़ियों तक के पाप धुल जाते हैं। सारे विश्व में नर्मदा ही एक मात्र नदी है, जिसे भगवान शिव वरदान दिए हैं। (नर्मदा का "हर कंकर शंकर" है) मान्यता है कि यहाँ दर्शन मात्र से मनुष्य की सारी परेशानियों समाप्त होती हैं एवम पापों का नाश होता है। माँ नर्मदा एकमात्र नदी है जो सबसे विपरीत उल्टी बहती है। 

क्यों नर्मदा नदी के हर कंकर में हैं शंकर 

क्यों नर्मदा नदी के हर कंकर में हैं शंकर

एक मात्र नदी है नर्मदा जिसके हर कंकर में बसते हैं शंकर। नर्मदा नदी से निकलने वाले शिवलिंग को ‘नर्मदेश्वर’ कहते हैं। यह घर में भी स्थापित किए जाने वाला पवित्र और चमत्कारी शिवलिंग है; जिसकी पूजा अत्यन्त फलदायी है। यह साक्षात् शिवस्वरूप, सिद्ध व स्वयम्भू जो भक्तों के कल्याण के लिए स्वयं प्रकट हुए हैं शिवलिंग है इसको वाणलिंग भी कहा जाता है। 

शास्त्रों में कहा गया है कि मिट्टी या पाषाण से करोड़ गुना अधिक फल स्वर्णनिर्मित शिवलिंग के पूजन से मिलता है, स्वर्ण से करोड़गुना अधिक मणि और मणि से करोड़गुना अधिक फल बाणलिंग नर्मदेश्वर के पूजन से प्राप्त होता है, स्कन्दपुराण की कथा के अनुसार एक बार भगवान शंकर ने पार्वतीजी को भगवान विष्णु के शयनकाल (चातुर्मास) में द्वादशाक्षर मन्त्र (ॐ नमो भगवते वासुदेवाय) का जप करते हुए तप करने के लिए कहा। पार्वतीजी शंकरजी से आज्ञा लेकर चातुर्मास शुरु होने पर हिमालय पर्वत पर तपस्या करने लगीं। उनके साथ उनकी सखियां भी थीं। पार्वतीजी के तपस्या में लीन होने पर शंकर भगवान पृथ्वी पर विचरण करने लगे। एक बार भगवान शंकर यमुना तट पर विचरण कर रहे थे। यमुनाजी की उछलती हुई तरंगों को देखकर वे यमुना में स्नान करने के लिए जैसे ही जल में घुसे, उनके शरीर की अग्नि के तेज से यमुना का जल काला हो गया। अपने श्यामस्वरूप को देखकर यमुनाजी ने प्रकट होकर शंकरजी की स्तुति की। शंकरजी ने कहा यह क्षेत्र ‘हरतीर्थ’ कहलाएगा व इसमें स्नान से मनुष्य के पाप नष्ट हो जाएंगे।

सिर्फ एक मात्र माँ नर्मदा है कुँवारी क्यों

सिर्फ एक मात्र माँ नर्मदा है कुँवारी क्यों

पौराणिक कथा के अनुसार सोनभद्र और नर्मदा दोनों के घर पास थे और अमरकंटक की पहाड़ियों में दोनों का बचपन बीता। दोनों किशोर हुए तो लगाव और बढ़ा। वे एक दूसरे के प्रेम में पड़ गए। दोनों ने साथ जीने की कसमें खाई, लेकिन अचानक दोनों के बीच में नर्मदा की सहेली जुहिला आ गई, सोनभद्र जुहिला के प्रेम में पड़ गया। नर्मदा को यह पता चला तो उन्होंने सोनभद्र को समझाने की कोशिश की, लेकिन सोनभद्र नहीं माना। इससे नाराज होकर नर्मदा दूसरी दिशा में चल पड़ी और हमेशा कुंवारी रहने की कसम खाई।

16 comments:

  1. जहां हर कंकर में शंकर का वास होता है
    ऐसे पवित्र नदी माँ नर्मदा को नमन है।
    🌹🙏जय माँ नर्मदा🙏🌹

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  2. जय माँ नर्मदा🙏

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  3. बहुत सुंदर जानकारी। आभार।

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  4. नर्मदा नदी के संबंध में अदभुत जानकारी।

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  5. भारत वर्ष का गौरव है उसकी सांस्कृतिक विरासत और नर्मदा मैय्या भी उनमें से एक हैं

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  6. Amazing beautiful news wonderful river.

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  7. Detail information about narmada river...

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  8. Very nice information

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  9. मध्य प्रदेश की जीवनदायिनी
    नदी कहलाती सदा माँ नर्मदा
    सभी नदियों से विपरीत दिशा
    में नर्मदा नदी बहती है सदा
    भोले के आशीर्वाद से नर्मदा
    बह रही है पूजनीय बनकर
    पवित्र नदी का कंकर-कंकर
    बनकर निकल रहा है शंकर
    नर्मदा से निकले नर्मदेश्वर
    शिवलिंग की पूजा कर लो
    सब परेशानियों से मुक्ति व
    सारे पापों को दूर कर लो
    इसके उद्गम से अंतिम छोर
    तक परिक्रमा की जाती है
    सच्चे मन से करो परिक्रमा
    नर्मदा सारे पाप मिटाती है
    सात्विक भोजन-ब्रह्मचर्य
    का इसमें पालन जरूरी है
    स्वच्छ मन-निर्मल आचरण
    बिना यह परिक्रमा अधूरी है
    🙏नरेश"राजन"हिन्दुस्तानी🙏

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  10. Thanks Rupa for sharing the derailed information about Narmada River,which I posted on LinkedIn..just beautiful ..
    Why I posted it ; because 1.The place is attached to me with my Birth place ,at Katni./ Jabalpur .2.I had a hence to visit AmarKantak with my School excursion tour ,when I was just 10 . Since I recall when I was just 10 years, having personally seen the Jal kind with Snakes and seen Bheda ghat ,I remembered every thing ,when yesterday I got this information from the Website ,It came just like that .it's beautiful.
    Thanks dear for your support .Have a great day ..#awasthi.ak..🤝🌹❤️

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