मूर्ख मण्डली : पंचतंत्र || Murkh Mandali : Panchtantra ||

मूर्ख मण्डली

सर्व वै मूर्खमण्डलम् ।

अचानक हाथ में आए धन को अविश्वासवश छोड़ना मूर्खता है। उसे छोड़ने वाले मूर्खमण्डल का कोई उपाय नहीं।

मूर्ख मण्डली : पंचतंत्र || Murkh Mandali : Panchtantra ||

एक पर्वतीय प्रदेश के महाकाय वृक्ष पर सिन्धुक नाम का एक पक्षी रहता था। उसकी विष्ठा में स्वर्ण-कण होते थे। एक दिन एक व्याप उधर से गुज़र रहा था। व्याघ को उसकी विष्ठा के स्वर्णमयी होने का ज्ञान नहीं था। इससे सम्भव था कि व्याध उसकी उपेक्षा करके आगे निकल जाता, किन्तु मूर्ख सिन्धुक पक्षी ने वृक्ष के ऊपर से व्याघ के सामने ही स्वर्ण-कण विष्ठा कर दी। उसे देख व्याध ने वृक्ष पर जाल फैला दिया और स्वर्ण के लोभ में उसे पकड़ लिया।

उसे पकड़कर व्याध अपने घर ले आया। वहाँ उसे पिंजरे में रख लिया। लेकिन, दूसरे ही दिन उसे यह डर सताने लगा कि कहीं कोई आदमी पक्षी की विष्ठा के स्वर्णमय होने की बात राजा को बता देगा, तो उसे राजा के सम्मुख दरबार में पेश होना पड़ेगा। सम्भव है राजा उसे दण्ड भी दें। इस भय से उसने स्वयं राजा के सामने पक्षी को पेश कर दिया।

राजा ने पक्षी को पूरी सावधानी के साथ रखने की आज्ञा निकाल दी। किन्तु राजा के मन्त्री ने राजा को सलाह दी कि इस व्याध की मूर्खतापूर्ण बात पर विश्वास करके उपहास का पात्र न बनें। कभी कोई पक्षी भी स्वर्णमयी विष्ठा दे सकता है? उसे छोड़ दीजिए। राजा ने मन्त्री की सलाह मानकर उसे छोड़ दिया। जाते हुए वह राज्य के प्रवेश द्वार पर बैठकर फिर स्वर्णमयी विष्ठा कर गया; और जाते-जाते कहता गया।

पूर्वन्तावदहं मूर्खों द्वितीयः पाशबन्धकः । ततो राजा च मन्त्री च सर्व वै मूर्खमण्डलम् ॥

अर्थात्, पहले तो मैं ही मूर्ख था, जिसने व्याध के सामने विष्ठा की; फिर व्याघ ने मूर्खता दिखलाई जो व्यर्थ ही मुझे राजा के सामने ले गया; उसके बाद राजा और मन्त्री भी मूर्खों के सरताज निकले। इस राज्य में सब मूर्खमण्डल ही एकत्र हुआ है।

रक्ताक्ष द्वारा कहानी सुनने के बाद भी मन्त्रियों ने अपनी मूर्खता-भरे व्यवहार में परिवर्तन नहीं किया। पहले की तरह वे स्थिरजीवी को अन्न- माँस खिला-पिलाकर मोटा करते रहे।

रक्ताक्ष ने यह देखकर अपने पक्ष के साथियों से कहा कि अब यहाँ हमें नहीं ठहरना चाहिए। हम किसी दूसरे पर्वत की कन्दरा में अपना दुर्ग बना लेंगे। हमें उस बुद्धिमान् गीदड़ की तरह आने वाले संकट को देख लेना

चाहिए और देखकर अपनी गुफा छोड़ देना चाहिए, जिसने शेर के डर से अपना घर छोड़ दिया था। उसके साथियों ने पूछा- किस गीदड़ की तरह? रक्ताक्ष ने तब शेर और गीदड़ की वह कहानी सुनाई जिसमें गुफा बोली थी....

बोलने वाली गुफा

To be continued ...

15 comments:

  1. रोचक कथा... अगले अंक का इंतजार है

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  2. बहुत ही रोचक और शानदार

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  3. रोचक कहानी 👌👌

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  4. बिल्कुल सही बात है अविश्वास और डर के कारण
    आये हुए धन को छोड़ना महामूर्ख की पहचान है।
    जो डर गया वो तो ऐसे हीं मर गया और जो मूर्ख
    आये हुए धन पर अविश्वास करे और खास कर
    राजा और उसके मन्त्रिमण्डल के सारे सदस्य तो
    फिर तो उस राज्य का भला ईश्वर भी नही कर
    सकते है । ऐसे शिक्षाप्रद पंचतन्त्र की कहानियों
    को हमलोगों के बीच लाने के लिये आप का
    हृदय से आभार 🌷🌷🌷
    🙏श्रीकृष्ण गोविंद हरे मुरारे🙏
    🙏हे नाथ नारायण वासुदेवा🙏

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  5. बात ही कुछ ऐसी है कि कोई विश्वास नहीं करेगा, फिर भी एक बार एक बार आजमा तो लेना ही चाहिए।
    अच्छी कहानी

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  6. मजेदार कहानी

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