श्रीनाथजी मंदिर, नाथद्वारा || Shrinathji Temple, Nathdwara ||

 श्रीनाथजी मंदिर, नाथद्वारा

नाथद्वारा भारत के राजस्थान राज्य के राजसमंद जिले में स्थित एक नगर है। नाथद्वारा मंदिर ( Nathdwara Temple) एक प्रसिद्ध हिंदू धार्मिक स्थल है, जो बनास नदी के किनारे बसा हुआ है। नाथद्वारा वैष्णव संप्रदाय का प्रधान पीठ है। यहां नंद नंदन आनंदकंद श्री नाथ जी का भव्य मंदिर है जो करोड़ों वैष्णव की आस्था का प्रमुख स्थल है। इस प्रमुख वैष्णव तीर्थ स्थल पर नाथद्वारा मंदिर ( Nathdwara Temple) में भगवान श्रीकृष्ण 7 वर्षीय 'शिशु अवतार' के रूप में विद्यमान हैं।

श्रीनाथजी मंदिर, नाथद्वारा || Shrinathji Temple, Nathdwara ||

16 कला संपूर्ण भगवान श्री कृष्ण का एक ऐसा मंदिर भी है, जहां वह साक्षात रुप से 'श्रीनाथजी' के रूप में विद्यमान हैं।भगवान श्री कृष्ण का पर्वत शिला पर अंकित यह वही वास्तविक स्वरूप है, जिसे उन्होंने द्वापर युग में वृंदावन वासियों की देवराज इंद्र से रक्षा के लिए धारण किया था। बालकृष्ण ने गोकुल वासियों को देवराज इंद्र के डर से उनकी पूजा करने की वजाय गौ माता तथा अपने मान्य देव की पूजा करने की प्रेरणा दी।

इससे क्रुद्ध होकर इंद्र ने सारे क्षेत्र में तेज बारिश की, जिससे सारी गोकुल नगरी जलमग्न होने के कगार पर पहुंच गई। ऐसे में श्री कृष्ण ने अपनी उंगली पर गोवर्धन पर्वत को उठाया और उसके नीचे सभी गोकुल वासियों ने शरण प्राप्त की। उस समय तेज वश भगवान श्री कृष्ण की कृति की छाप गोवर्धन पर्वत की शिला पर अंकित हो गई।

श्रीनाथजी मंदिर, नाथद्वारा || Shrinathji Temple, Nathdwara ||

सहस्त्र वर्ष बीतने के बाद वह शीला खंडित हो गई तथा मध्य युग के भक्ति काल में प्रभु की बाजू तथा चेहरा सदृश्य हुआ। फिर गोकुल में रहते कई-कई दिनों तक अपने भक्ति में लीन रहने वाले स्वामी वल्लभाचार्य की श्रद्धा देख प्रभु ने अपने खंडित छवि संपूर्ण रूप में प्रकट की।

महाराज श्री दामोदर दास बैरागी वल्लभ संप्रदाय के थे और जगतगुरु वल्लभाचार्य के वंशज थे। दामोदर दास बैरागी ने श्रीनाथजी के विग्रह को वृंदावन से औरंगजेब की सेना से बचाकर राजस्थान के जोधपुर ले आए थे। वर्तमान नाथद्वारा मंदिर का निर्माण दामोदर दास बैरागी ने राजा राणा राज सिंह के साथ मिलकर 20 फरवरी 1672 को संपूर्ण कराया था।

श्रीनाथजी मंदिर का इतिहास 

9 अप्रैल 1669 को औरंगजेब ने हिंदू मंदिरों को तोड़ने के लिए आदेश जारी किया। तब वृंदावन में गोवर्धन के पास श्रीनाथजी के मंदिर को तोड़ने का काम शुरू हो गया। इससे पहले कि श्रीनाथ जी की मूर्ति को कोई नुकसान पहुंचे मंदिर के पुजारी दामोदर दास बैरागी ने मूर्ति को मंदिर से बाहर निकाल लिया। दामोदर दास बैरागी बल्लभ संप्रदाय के थे, और वल्लभाचार्य के वंशज थे। उन्होंने बैलगाड़ी में श्रीनाथजी की मूर्ति को स्थापित किया और उसके बाद बूंदी, कोटा, किशनगढ़ और जोधपुर तक के राजाओं के पास आग्रह लेकर गए कि श्रीनाथ जी का मंदिर बनाकर उसमें मूर्ति स्थापित की जाए, लेकिनऔरंगजेब के डर से कोई भी राजा दामोदर दास बैरागी के प्रस्ताव को स्वीकार नहीं कर रहा था।

श्रीनाथजी मंदिर, नाथद्वारा || Shrinathji Temple, Nathdwara ||

कोटा से 10 किलोमीटर दूर श्रीनाथजी की चरण पादुकाएं आज भी रखीं हुईं हैं। उस स्थान को अब चरण चौकी के नाम से जानते हैं। तब दामोदर दास बैरागी ने मेवाड़ के राजा राणा राज सिंह के पास संदेश भिजवाया।

राणा राज सिंह ने कहा कि मेरे रहते हुए श्रीनाथजी की मूर्ति को कोई छू तक नहीं पाएगा। उस समय श्रीनाथजी की मूर्ति बैलगाड़ी में जोधपुर के पास चौपासनी गांव में थी और चौपासनी गांव में कई महीने तक बैलगाड़ी में ही श्रीनाथजी की मूर्ति की उपासना होती रही। यह चौपासनी गांव अब जोधपुर का हिस्सा बन चुका है। जहां पर यह बैलगाड़ी खड़ी थी वहीं पर श्रीनाथजी का एक मंदिर बनाया गया। 5 दिसंबर 1671 को सिहाड़ गांव में श्रीनाथजी की मूर्तियों का स्वागत करने के लिए राणा राजसिंह सिंह स्वयं पहुंचे। यह सिहाड़ गांव उदयपुर से 30 मील एवं जोधपुर से लगभग 140 मील पर स्थित है, जिसे आज नाथद्वारा के नाम से जानते हैं। 20 फरवरी 1672 को मंदिर का निर्माण संपूर्ण हुआ और श्रीनाथजी की मूर्ति सिहाड़ गांव के मंदिर में स्थापित कर दी गई। यही सिहाड़ गांव अब नाथद्वारा बन गया है।

श्रीनाथजी का दर्शन

श्रीनाथ जी का मंदिर दिन में 8 दर्शनों के लिए खोला जाता है। इसके पीछे भी एक विशेष कारण है।मान्यता अनुसार, बाल कृष्ण अपने बचपन में इतने आकर्षक एवं तेजस्वी थे कि उन्हें देखने की लालसा में आसपास की गोपियां (महिलाएं) नंद बाबा के घर बार बार चक्कर लगाती रहती थीं।

यशोदा माता को यह परेशानी रहने लगी कि गोपाल के खानपान और आराम में बाधा पैदा होगी, अतः उन्होंने बाल गोपाल से मिलने का समय तय कर दिया।

इसी आधार पर मंदिर का द्वार भी दिन में तय समय पर ही खोला जाता है।

Shrinathji Temple, Nathdwara

Nathdwara is a town in Rajsamand district in the Indian state of Rajasthan. Nathdwara Temple is a famous Hindu religious site, situated on the banks of the Banas River. Nathdwara is the main seat of the Vaishnava sect. There is a grand temple of Nand Nandan Anandkand Shri Nath ji, which is the main place of faith of crores of Vaishnavas. Lord Shri Krishna is present in the form of 7-year-old 'Shishu Avatar' in Shrinathji Temple at this major Vaishnava pilgrimage site.

श्रीनाथजी मंदिर, नाथद्वारा || Shrinathji Temple, Nathdwara ||

16 Kala There is also a temple of the entire Lord Shri Krishna, where he is literally present in the form of 'Shrinathji'. Wearing it to protect from Indra. Balakrishna inspired the people of Gokul to worship the cow mother and their recognized deity instead of worshiping them out of fear of Devraj Indra.

Enraged by this, Indra made heavy rain in the entire area, due to which the whole city of Gokul reached the verge of being submerged. In such a situation, Shri Krishna raised the Govardhan mountain on his finger and all the people of Gokul took refuge under it. At that time, the impression of the work of Lord Shri Krishna was inscribed on the rock of Govardhan mountain due to the brightness.

After the passage of a thousand years, that Sheela got broken and in the Bhakti period of the Middle Ages, the face and the face of the Lord became like. Then, seeing the reverence of Swami Vallabhacharya, who was absorbed in his devotion for many days while living in Gokul, the Lord revealed his fragmented image in its entirety.

Maharaj Shri Damodar Das Bairagi belonged to the Vallabh sect and was a descendant of Jagatguru Vallabhacharya. Damodar Das Bairagi saved Shrinathji's Deity from Vrindavan from Aurangzeb's army and brought it to Jodhpur in Rajasthan. The construction of the present Nathdwara temple was completed by Damodar Das Bairagi along with Raja Rana Raj Singh on 20 February 1672.

श्रीनाथजी मंदिर, नाथद्वारा || Shrinathji Temple, Nathdwara ||

History of Shrinathji Temple

On 9 April 1669, Aurangzeb issued orders for the destruction of Hindu temples. Then the work of demolition of Shrinathji's temple near Govardhan in Vrindavan started. Before any damage was done to the idol of Shrinath ji, the priest of the temple Damodar Das Bairagi took the idol out of the temple. Damodar Das belonged to the Bairagi Ballabh sect, and was a descendant of Vallabhacharya. He installed the idol of Shrinathji in the bullock cart and after that went to the kings of Bundi, Kota, Kishangarh and Jodhpur with the request to build a temple of Shrinathji and install the idol in it, but because of fear of Aurangzeb, no king would go to Damodar Das Bairagi. was not accepting the offer.

The feet of Shrinathji are kept 10 km away from Kota even today. That place is now known as Charan Chowki. Then Damodar Das Bairagi sent a message to Rana Raj Singh, the king of Mewar.

Rana Raj Singh said that no one will be able to touch the idol of Shrinathji while I am there. At that time the idol of Shrinathji was in a bullock cart in Chaupasni village near Jodhpur and in Chaupasni village for many months the idol of Shrinathji was worshiped in a bullock cart. This Chaupasni village has now become a part of Jodhpur. Where this bullock cart was standing, a temple of Shrinathji was built there. On 5 December 1671, Rana Raj Singh Singh himself arrived at Sihar village to welcome the idols of Shrinathji. This Sihar village is situated 30 miles from Udaipur and about 140 miles from Jodhpur, which is today known as Nathdwara. The construction of the temple was completed on 20 February 1672 and the idol of Shrinathji was installed in the temple of Sihar village. This Sihar village has now become Nathdwara.

श्रीनाथजी मंदिर, नाथद्वारा || Shrinathji Temple, Nathdwara ||

Shrinathji's Darshan

Shrinath ji's temple is opened for 8 darshan in a day. There is a special reason behind this as well. According to the belief, Bal Krishna was so attractive and brilliant in his childhood that in the longing to see him, the nearby gopis (women) used to visit Nanda Baba's house again and again.

Yashoda Mata started having trouble that there would be a hindrance in Gopal's food and rest, so she fixed an appointment with Bal Gopal.

On this basis, the gate of the temple is also opened at the fixed time of the day.

19 comments:

  1. बहुत सुन्दर जानकारी के साथ लाजवाब प्रस्तुति । नाथद्वारा मन्दिर जाने का सुअवसर तो नहीं मिला ।आपकी पोस्ट से बहुत अच्छी जानकारी मिली ।

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    1. मीना जी, ब्लॉग पर आपका स्वागत है। सार्थक प्रतिक्रिया से उत्साहवर्धन होता है और लिखने की प्रेरणा मिलती है।
      दिल से आभार..😊

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    2. आपने सही कहा रूपा जी सार्थक प्रतिक्रिया हमारा सृजन के लिए उत्साहवर्धन करती हैं ।
      आपको अपने ब्लॉग पर देखना सुखद अनुभव है । बहुत बहुत आभार ।

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  2. जय श्री कृष्णा 🙏🏻 मैने देखा है ये बेहद सुंदर और सुकून देने वाला वातावरण

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  3. जय श्री कृष्ण

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  4. जय हो नाथद्वार भी शिव जी का ही मंदिर है क्या?

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  5. जय हो, अच्छी जानकारी

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  6. जय हो भगवान श्री नाथ जी की

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  7. ॐ नमो भगवते वासुदेवाय, आज श्रीनाथजी मंदिर की ऐतिहासिक और पौराणिक जानकारी मिली।

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  8. jay कृष्णा

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