कोयल - रामधारी सिंह दिनकर

 इतवार (Sunday)

कोयल - रामधारी सिंह दिनकर
मंजिलें बड़ी ज़िद्दी होती हैं, हासिल बड़े नसीब से होती हैं.
 मगर, वहाँ तूफान भी हार जाते हैं, जहाँ कश्तियाँ ज़िद पर होती हैं..❤

कोयल

कैसा होगा वह नन्दन-वन?
सखि! जिसकी स्वर्ण-तटी से तू स्वर में भर-भर लाती मधुकण।
कैसा होग वह नन्दन-वन?

कुंकुम-रंजित परिधान किये,
अधरों पर मृदु मुसकान लिए,
गिरिजा निर्झरिणी को रँगने
कंचन-घट में सामान लिये।

नत नयन, लाल कुछ गाल किये,
पूजा-हित कंचन-थाल लिये,
ढोती यौवन का भार, अरुण
कौमार्य-विन्दु निज भाल दिये।

स्वर्णिम दुकूल फहराती-सी,
अलसित, सुरभित, मदमाती-सी,
दूबों से हरी-भरी भू पर
आती षोडशी उषा सुन्दर।

हँसता निर्झर का उपल-कूल
लख तृण-तरु पर नव छवि-दुकूल;
तलहटी चूमती चरण-रेणु,
उगते पद-पद पर अमित फूल।

तब तृण-झुर्मुट के बीच कहाँ देते हैं पंख भिगो हिमकन?
किस शान्त तपोवन में बैठी तू रचती गीत सरस, पावन?
यौवन का प्यार-भरा मधुवन,
खेलता जहाँ हँसमुख बचपन,
कैसा होगा वह नन्दन-वन?

गिरि के पदतल पर आस-पास
मखमली दूब करती विलास।
भावुक पर्वत के उर से झर
बह चली काव्यधारा (निर्झर)

हरियाली में उजियाली-सी
पहने दूर्वा का हरित चीर
नव चन्द्रमुखी मतवाली-सी;

पद-पद पर छितराती दुलार,
बन हरित भूमि का कंठ-हार।

तनता भू पर शोभा-वितान,
गाते खग द्रुम पर मधुर गान।
अकुला उठती गंभीर दिशा,
चुप हो सुनते गिरि लगा कान।

रोमन्थन करती मृगी कहीं,
कूदते अंग पर मृग-कुमार,
अवगाहन कर निर्झर-तट पर
लेटे हैं कुछ मृग पद पसार।

टीलों पर चरती गाय सरल,
गो-शिशु पीते माता का थन,
ऋषि-बालाएँ ले-ले लघु घट
हँस-हँस करतीं द्रुम का सिंचन।

तरु-तल सखियों से घिरी हुई, वल्कल से कस कुच का उभार,
विरहिणि शकुन्तला आँसु से लिखती मन की पीड़ा अपार,
ऊपर पत्तों में छिपी हुई तू उसका मृदु हृदयस्पन्दन,
अपने गीतों का कड़ियों में भर-भर करती कूजित कानन।
वह साम-गान-मुखरित उपवन।
जगती की बालस्मृति पावन!
वह तप-कनन! वह नन्दन-वन!

किन कलियों ने भर दी श्यामा,
तेरे सु-कंठ में यह मिठास?
किस इन्द्र-परी ने सिखा दिया
स्वर का कंपन, लय का विलास?

भावों का यह व्याकुल प्रवाह,
अन्तरतम की यह मधुर तान,
किस विजन वसन्त-भरे वन में
सखि! मिला तुझे स्वर्गीय गान?

थे नहा रहे चाँदनी-बीच जब गिरि, निर्झर, वन विजन, गहन,
तब वनदेवी के साथ बैठ कब किया कहाँ सखि! स्वर-साधन?
परियों का वह शृंगार-सदन!
कवितामय है जिसका कन-कन!
कैसा होगा वह नन्दन-वन!

- रामधारी सिंह दिनकर 
कोयल - रामधारी सिंह दिनकर
घायल तो यहां हर परिंदा है. 
मगर जो फिर से उड़ सका वहीं जिंदा है..❤

25 comments:

  1. दिनकर जी भारत के सुप्रसिद्ध कवि हैं। कोयल उनकी प्रसिद्ध कविता है। इतवार के ब्लॉग की कविता,सचमुच पठनीय होती है। आप की रचनात्मकता को नमन करते हुए सभी को
    शुभ रविवार।

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  2. वाह क्या बात है ये रचना रामधारी सिंग दिनकर की है

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  3. बहुत सुंदर लिखा है आप ने बहुत ही सुंदर आप कविता भी लिख ते हो मालूम नही था

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    1. ये रामधारी सिंह दिनकर की कविता है।

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  4. अति सुंदर रचनाएँ

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  5. अदभुत रचना है, बहुत दिनों बाद ऐसी कविता पढ़ी। धन्यवाद!

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  6. अति सुन्दर

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  7. भारत भूमि के पावन उपवन में
    विचरण करता वो एक मधुकर
    शब्दों में जिनके मधुर पुष्परस
    वो कवि रामधारी सिंह दिनकर
    शब्द-पुष्पों का रस चुन-चुनकर
    कविता में पिरोते रहे वो निरंतर
    मधुरस उनकी हरेक कविता में
    बहता रहता प्रतिपल झर-झर
    जिंदगी हर कविता को पढ़ने से
    मन में उठती रहती मधुर लहर
    ऐसे महाकवि है हमारे दिनकर
    शब्दों की विशाल पर्वतमाला से
    पल-पल कल-कल बहता निर्झर
    शब्दों के ऐसे अद्भुत मिलन से
    उठता रहता ऐसा सुमधुर-स्वर
    उन शब्दों की मन के धरातल पे
    जो छाप बनी वो है अजर-अमर
    सुप्त तन-मन में जोश-उल्लास
    भरते हैं हमारे राष्ट्रकवि दिनकर
    🙏नरेश"राजन"हिन्दुस्तानी🙏

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  8. जिनकी हर कविता को पढ़ने से
    "जिंदगी" को जिनकी पढ़ना
    गलती के लिए क्षमा

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  9. कोयल की आवाज जैसी कोई आवाज नहीं।

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  10. सही बात है गिर कर फिर उठना, उठ कर फिर चलना इसी का नाम ज़िन्दगी है ,हौसला अगर मजबूत है तो कोई मंजिल पाना कठिन नही है

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  11. बहुत ही सुंदर नजारा है Background में

    👉 जी हां रूपा जी वह जिद ही तो है जिसने यहां तक का सफर पार करने में हमें हौसला दिया है

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  12. Very nice

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  13. बहुत बढ़िया लगे रहो 👌👍

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  14. Aap bhi to jid par hain....manna padega aapko

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