बिना कारण कार्य नहीं : पंचतंत्र

बिना कारण कार्य नहीं

हेतुरत्र भविष्यति 

हर कार्य के कारण की खोज करो,
अकारण कुछ भी नहीं हो सकता।
बिना कारण कार्य नहीं : पंचतंत्र

एक बार मैं चौमासे में एक ब्राह्मण के घर गया था। वहां रहते हुए एक दिन मैंने सुना कि ब्राह्मण और ब्राह्मण - पत्नी में यह बातचीत हो रही थी: 

ब्राह्मण - कल सुबह कर्क संक्रांति है, भिक्षा के लिए मैं दूसरे गांव जाऊंगा। वहां एक ब्राह्मण सूर्यदेव की तृप्ति के लिए कुछ दान करना चाहता है। 

 पत्नी - तुम्हें तो भोजन योग्य अन्य कमाना भी नहीं आता। तेरी पत्नी होकर मैंने कभी सुख नहीं होगा, मिष्ठान नहीं खाए, वस्त्र और आभूषणों की तो बात ही करनी क्या कहनी।

बिना कारण कार्य नहीं : पंचतंत्र

 ब्राह्मण - देवी! तुम्हें ऐसा नहीं कहना चाहिए। अपनी इच्छा के अनुरूप धन किसी को नहीं मिलता। पेट भरने योग्य अन्न तो मैं भी ले ही आता हूं। इससे अधिक की तृष्णा का त्याग कर दो। अति तृष्णा के चक्कर में मनुष्य के माथे पर शिखा हो जाती है।

 ब्राह्मणी ने पूछा - यह कैसे?

 तब ब्राह्मण ने सूअर, शिकारी और गीदड़ की यह कथा सुनाई :

अति लोभ नाश का मूल 

To be continued ...

13 comments:

  1. अच्छी कहानी... पर आज के समय में लालच करें और फिर आगे बढे

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  2. अति उत्तम

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  3. लालच करना सही नहीं होता है

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  4. सुंदर और सटीक

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  5. लालच बुरी बला है।

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  6. उत्तम वस्त्र,मिष्ठान्न और महंगे आभूषण आदि भोग के साधन हैं। मनुष्य जन्म में और पुरुषार्थ करना चाहिए ताकि मनुष्य अपनी इच्छाएं पूरी कर सके।

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  7. अच्छी कहानी, भोग विलास के साधनों का कोई अंत नहीं तो अपनी तृष्णा पर उचित नियंत्रण रखना चाहिए

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