मातृ वंदना || Sunday.. इतवार ..रविवार ||

  इतवार (Sunday)

Sunday.. इतवार ..रविवार
"एक छोटी सी चींटी 
हमारे पैर को काट सकती है,
पर हम, उसके पैर को नहीं काट सकते है,
इसलिए जिन्दगी में
किसी को छोटा ना समझें,
क्यूंकि वह जो कर सकता है
शायद बाकी वो ना कर पाएं ..❤"

मातृ वंदना 

नर जीवन के स्वार्थ सकल
बलि हों तेरे चरणों पर, माँ
मेरे श्रम सिंचित सब फल

जीवन के रथ पर चढ़कर
सदा मृत्यु पथ पर बढ़ कर
महाकाल के खरतर शर सह
सकूँ, मुझे तू कर दृढ़तर

जागे मेरे उर में तेरी
मूर्ति अश्रु जल धौत विमल
दृग जल से पा बल बलि कर दूँ
जननि, जन्म श्रम संचित पल

बाधाएँ आएँ तन पर
देखूँ तुझे नयन मन भर
मुझे देख तू सजल दृगों से
अपलक, उर के शतदल पर

क्लेद युक्त, अपना तन दूंगा
मुक्त करूंगा तुझे अटल
तेरे चरणों पर दे कर बलि
सकल श्रेय श्रम संचित फल

    -सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’

व्याख्या-

कवि कहते हैं, हे माँ! मुझे ऐसा आत्मबल दो कि मैं अपने मनुष्य जीवन के सारे स्वार्थों और अपने परिश्रम अर्जित सभी वस्तुओं को तुम्हारे चरणों पर न्योछावर कर दें।

मुझे इतना दृढ़ बना दो कि मैं जीवनरूपी रथ पर सवार होकर अर्थात् मृत्यु की चिंता किए बिना जीवन में आगे बढ़ते हुए, समय-समय पर आने वाले बाण की तरह कष्टदायक बाधा-विघ्नों को झेलते हुए तेरी सेवा करता रहूँ।

मेरे हृदय में तेरा। आँसूओं से धुला स्वच्छ स्वरूप साकार हो जाए। मैं परतन्त्रता में दुखी और आँसू बहाते तेरे रूप को मन में बसा लूं। तेरे आँसू मुझे इतना बल प्रदान करें कि मैं अपने सारे जीवन में परिश्रम से अर्जित सभी वस्तुएँ और जीवन भी तुझ पर बलिदान कर सकें।

कवि कहते हैं, हे मातृभूमि ! चाहे मेरे मार्ग में कितनी भी बाधाएँ आएँ पर मेरा ध्यान और मेरी दृष्टि सदा तुझ पर ही लगी रहे। हे माँ ! तू अपने आँसुओं भरे नेत्रों से एकटक देखती रहना। मुझे अपने हृदयरूपी कमल पर बैठाए रखना। मेरी याद मत भूलना।

मैं परिश्रम के पसीने से भीगे अपने शरीर को तुझे समर्पित कर दूंगा। बड़े से बड़ा बलिदान देकर भी मैं संदा के लिए तुझे स्वतन्त्र करा दूंगा। मैं अपने सारे श्रेष्ठ आचरणों और परिश्रम से प्राप्त सफलताओं और कीर्ति को तुझ पर न्योछावर कर दूंगा।

मातृ वंदना || Sunday.. इतवार ..रविवार ||

"खूबी और खामी..
दोनों ही हर इंसान में होती है। 
जो तराशता है उसे खूबी नज़र आती है,
जो तलाशता है उसे खामी नज़र आती है..❤"

24 comments:

  1. Excellent 👍 ..Happy Sunday Rupa 🌹

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  2. सुंदर तस्वीर खूबसूरत मुस्कुराहट के साथ मेट्रो स्टेशन की शोभा बढ़ाते

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  3. बहुत यथार्थपरक संदेश कि जीवन मे कभी किसी को छोटा नही समझना चाहिए।
    मातृ भूमि की सेवा-संकल्प की प्रेरक कविता।
    शुभ रविवार।

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  4. बात तो.आप की बिल्कुल सही है हर आदमी मे खूबी होती है बस कुछ लोग होते हैं जिन्हें अपने अहंकार के आगे उस सच्चे इंसान की खूबियां दियाई नही देती है।

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  5. Very beautiful smile 😘😘😘😘❤️

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  6. Very beautiful smile 😘😘😘😘❤️

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  7. सूर्यकांत त्रिपाठी निराला की मातृ वंदना अनूठी है।शुभ रविवार।

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  8. मातृभूमि पर सब कुछ न्योछावर करने का संदेश देती अच्छी कविता, किसी को छोटा नहीं समझना चाहिए सबकी अपनी अपनी महत्ता है।
    शुभ रविवार

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  9. Kya baat hai 👌👌

    Prernadayak kavita ke saath sunder tasveer..

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  10. Beautiful pic ❤️...nice poem 👌

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