सांझ ढले कभी

सांझ ढले कभी


सांझ ढले कभी,
तो आओ बैठो साथ मेरे
एक चाय की प्याली के साथ
तुम्हें हाले दिल सुनाएं..

कैसे बीते ये दिन, महीने, साल
तेरे बिन
उस हर एक पल का
तुम्हें एहसास कराएं..

पतझड़ में जब
पेड़ों से पीले पत्ते गिरे
बिछड़ते उस मंजर को
अपनी आंखों में दिखाएं..

वसंत ऋतु में जब
कोयल कूकी
विरह की उस गीत को
तुम्हें गा के सुनाएं..

सावन के महीने में
जब मेरे बदन पर
पानी की बूंदे पड़ी
उन बूंदों की जलन बताएं..

ओस की बूंदे जब
मेरे बालों पर गिरी
उन ओस की बूंदों में
तुम्हें तेरा ही अक्स दिखाएं..

गर्मी की तपिश में
पसीने की बूंदों के साथ
आंसू कैसे मिलते,
अरमान कैसे पिघलते तुम्हें बताएं..

सांझ ढले कभी
तो आओ बैठो साथ मेरे
एक चाय की प्याली के साथ
तुम्हें हाले दिल सुनाएं..
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