Sunday.. इतवार ..रविवार

 इतवार (Sunday)

"रास्ते कहाँ ख़त्म होते हैं,
जिंदगी के सफर में,
मंजिले तो वही हैं,
जहाँ ख्वाहिशें थम जाएं...❤"

प्रेम के प्रति

चिर-समाधि में अचिर-प्रकृति जब
तुम अनादि तब केवल तम
अपने ही सुख-इंगित से फिर
हुए तरंगित सृष्टि विषम
तत्वों में त्वक बदल बदल कर
वारि, वाष्प ज्यों, फिर बादल
विद्युत की माया उर में, तुम
उतरे जग में मिथ्या-फल

वसन वासनाओं के रँग-रँग
पहन सृष्टि ने ललचाया
बाँध बाहुओं में रूपों ने
समझा-अब पाया-पाया
किन्तु हाय, वह हुई लीन जब
क्षीण बुद्धि-भ्रम में काया
समझे दोनों, था न कभी वह
प्रेम, प्रेम की थी छाया

प्रेम, सदा ही तुम असूत्र हो
उर-उर के हीरों के हार
गूँथे हुए प्राणियों को भी
गुँथे न कभी, सदा ही सार

– सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला'

Sunday.. इतवार ..रविवार
"ज़िन्दगी में अगर कुछ बड़ा करना है तो दो चीज़े
हमेशा याद रखना !
पहला जो खोया है उसका ग़म नही और जो
पाया है वो भी किसी से कम नहीं...❤"

14 comments:

  1. निराला जी की कविता पढ़कर अपने स्कूल के दिन याद आ जाते हैैं कि जब किसी कविता का संदर्भ,प्रसंग लिखने को मिलता था तो हाथ पांव फूलने लगते थे..😀
    अच्छे कोट्स अच्छी तस्वीर के साथ 👌👌
    शुभ रविवार 🧡

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  2. लाई की लड्डू और तिल के साथ पिक डालनी थी😄😄

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    1. ये तो ध्यान ही नहीं रहा😜😜

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    2. सही कहा ... तिल लड्डू न सही पतंग के साथ पिक डालनी थी

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  3. निराला जी की थोड़ी बहुत समझ आने वाली कविता के साथ सुंदर सी तस्वीर।

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