श्री अरुणाचलेश्वर मंदिर, तमिल नाडु / Arunachalesvara Temple, Tamil Nadu

श्री अरुणाचलेश्वर मंदिर तमिलनाडु

अरुणाचलेश्वर अथवा अरुल्मिगु का मंदिर तमिलनाडु के पावन नगर तिरुवन्नामलई में स्थित है। शिव भक्तों के लिए यह अत्यंत महत्वपूर्ण मंदिर है। इसे विश्व के विशालतम शिव मंदिरों में से एक माना जाता है। अरुणाचल पर्वत की तलहटी पर स्थित इस मंदिर की भव्य संरचना तथा अद्भुत वास्तुकला किसी विशाल गढ़ से कम नहीं है।

श्री अरुणाचलेश्वर मंदिर, तमिल नाडु / Arunachalesvara Temple, Tamil Nadu

श्री अरुणाचलेश्वर मंदिर भगवान शिव के पंचभूत क्षेत्रों अथवा स्थलों में से एक है। जीवन के पंचभूत तत्व आकाश, वायु, अग्नि, जल तथा पृथ्वी हैं। ऐसी मान्यता है कि भगवान शिव स्वयं अग्नि तत्व के रूप में इस मंदिर में विराजमान हैं। जीवन के अन्य तत्वों से संबंधित मंदिर इस प्रकार हैं-

  • श्री अरुणाचलेश्वर मंदिर, तिरुवन्नमलई, तमिल नाडू – अग्नि लिंग
  • नटराज मंदिर चिदंबरम, तमिल नाडू – आकाश लिंग
  • कालाहस्ती मंदिर, कालाहस्ती, आन्ध्र प्रदेश – वायु लिंग
  • जम्बुकेश्वर मंदिर, तिरुवनैकवल, तमिल नाडू – अप्पु लिंग/जम्बु लिंग (जल)
  • एकंबरेश्वर मंदिर कांचीपुरम, तमिल नाडू – पृथ्वी लिंग
  • तिरुवन्नामलाई का श्री अरुणाचलेश्वर मंदिर -अग्नि लिंग

इस मंदिर का इतिहास लगभग सहस्त्र वर्ष प्राचीन है पुराणों में तथा थैवरम एवं थिरुवासागम जैसे तमिल साहित्यों में भी इस मंदिर का गुणगान किया गया है।

तिरुवन्नामलई की इस देवभूमि में 8 दिशाओं में 8 प्रसिद्ध लिंग है जिन्हें अष्टलिंग कहा जाता है। ये लिंग हैं- इंद्र लिंग, अग्नि लिंग, यम लिंग, निरुतिलिंग (नैऋत्य), वरुण लिंग, वायु लिंग, कुबेर लिंग तथा ईशान्य लिंग। यह आठों लिंग पृथ्वी के 8 दिशाओं के घोतक हैं ऐसी मान्यता है कि 8 शिवलिंग गिरिवलम अथवा गिरी परिक्रमा करे भक्तों को आशीर्वाद देते हैं।अरुणाचल पर्वत की परिक्रमा को गिरिवलम अथवा गिरी परिक्रमा कहा जाता है। अनेक भक्त गण यह परिक्रमा करते हैं।

श्री अरुणाचलेश्वर मंदिर, तमिल नाडु / Arunachalesvara Temple, Tamil Nadu

अरुणाचलेश्वर मंदिर की कथा

एक समय सृष्टि के रचयिता ब्रह्मा तथा सृष्टि के पालन करता विष्णु के मध्य उनकी श्रेष्ठता के विषय पर विवाद उत्पन्न हो गया। इस विवाद पर निष्कर्ष प्राप्त करने के लिए वे भगवान शिव के समक्ष उपस्थित हुए तथा उनसे निर्णय करने का निवेदन किए। भगवान शिव ने दोनों की परीक्षा लेने का निर्णय लिया। वे दोनों के मध्य एक विशाल अग्नि स्तंभ के रूप में प्रकट हो गए जिसके दोनों छोर दृष्टिगोचर नहीं हो रहे थे।उन्होंने ब्रह्मा एवं विष्णु से कहा कि जो उस अग्नि स्तंभ का छोड़ सर्वोत्तम खोज निकालेगा वह सर्वश्रेष्ठ होगा। विष्णु ने वराह का रूप लिया तथा स्तंभ का छोर ढूंढने के उद्देश्य से धरती के भीतर प्रवेश किया। धरती के भीतर दीर्घकाल तक जाने के पश्चात भी उन्हें उस अग्नि रुपी लिंग का छोर नहीं दिखा।

तब भगवान शिव के समक्ष उपस्थित होकर उन्होंने अपनी पराजय स्वीकार की।वही ब्रह्मा ने हंस का रूप धरा तथा स्तंभ के ऊपरी छोर तक पहुंचने के उद्देश्य से आकाश में ऊपर उड़ गए। दीर्घकाल तक ऊपर की ओर जाने के पश्चात भी उन्हें लिंग का ऊपरी छोर दृष्टिगोचर नहीं हुआ। वह थक कर चूर हो गए थे किंतु पराजय स्वीकार करने की मन:स्थिति में नहीं थे। तभी अनायास उन्होंने ऊपर से गिरते केतकी पुष्प को देखा। तुरंत उन्होंने उससे स्तंभ के छोर के विषय में जानना चाहा। केतकी पुष्प ने कहा कि वह 40000 वर्षों से नीचे की ओर गिर रहा है, किंतु उसे स्तंभ की का छोर दिखाई नहीं दिया है। उस पर ब्रह्मा ने केतकी को अपने छल में सम्मिलित करते हुए उसे झूठा साक्षी बनने की आज्ञा दी। ब्रह्मा ने शिव के समक्ष अग्नि लिंग के छोर का दर्शन करने का दावा किया तथा केतकी को साक्ष्य के रूप में प्रस्तुत किया। ब्रह्मा के असत्य कथन पर शिव अत्यंत क्रोधित हुए तथा ब्रह्मा का एक सिर काट दिया। विष्णु के निवेदन पर उन्होंने ब्रह्मा के अन्य सिरों पर प्रहार नहीं किया किंतु किसी भी मंदिर पर उनकी आराधना पर प्रतिबंध लगा दिया। उन्होंने केतकी पुष्प को भी श्राप दिया कि अब शिव आराधना में उसका उपयोग नहीं किया जाएगा। जिस स्थान पर ब्रह्मा व विष्णु के अहंकार को नष्ट करने के लिए यह अग्नि लिंग प्रकट हुआ था उस स्थान को तिरुवन्नमलई कहते हैं।

एक अन्य कथा के अनुसार देवी पार्वती ने एक क्षण के लिए भगवान शिव के नेत्रों को बंद किया इससे संपूर्ण ब्रह्मांड में अंधकार छा गया अपनी भूल का आभास होते ही वेपश्चाताप करने के उद्देश्य से अरुणाचल पर्वत के समीप अपने अनेक भक्तों के साथ बैठकर कठोर तपस्या में लीन हो गईं। उस समय भगवान शिव पर्वत के ऊपर एक अग्नि स्तंभ के रूप में प्रकट हुए तथा देवी पार्वती में विलीन हो गए, जिससे उनका अर्धनारीश्वर रूप उत्पन्न हुआ। अतः यह पर्वत अत्यंत पावन है तथा इसे भी एक लिंग ही माना जाता है।

श्री अरुणाचलेश्वर मंदिर, तमिल नाडु / Arunachalesvara Temple, Tamil Nadu

अरुणाचलेश्वर मंदिर का इतिहास

वर्तमान संरचना नवी शताब्दी में चोल राजवंश के दौरान बनाई गई थी। बाद में इस देवनगरी पर भिन्न-भिन्न काल में अनेक राजवंशों का शासन रहा है। उनमें प्रमुख थे- चोल वंश, होयसल वंश, संगमा वंश सलवा वंश तथा तुलुव राजवंश तथा विजयनगर शासन। मंदिर में स्थित शिलालेखों पर उन राजवंशों की गौरव गाथाएं आलेखित हैं।

अरुणाचलेश्वर मंदिर की वास्तु कला

यह मंदिर 21 एकड़ क्षेत्रफल में फैला हुआ है वर्तमान में जिस विस्तीर्णता एवं भव्यता से यह मंदिर खड़ा है, वह अनेक सदियों से की जा रही संरचना विस्तार एवं नवीनीकरण का परिणाम है।अरुणाचल पर्वत की पृष्ठभूमि पर स्थित इस मंदिर की संरचना द्रविड़ शैली में की गई है। मंदिर के सभी भागों में हमारे पूर्वजों की अद्भुत कला व कारीगरी प्रत्यक्ष दिखाई देती है।

श्री अरुणाचलेश्वर मंदिर, तमिल नाडु / Arunachalesvara Temple, Tamil Nadu

अरुणाचलेश्वर मंदिर के प्रमुख तत्व-

अरुणाचलेश्वर मंदिर के दर्शन करते समय इन प्रमुख तत्वों को ध्यान में रखें ताकि आप इस मंदिर की अद्भुत वास्तु एवं संरचना की क्षमता को जान सकें तथा उनका आनंद ले सकें।

गोपुरम

मंदिर का मुख पूर्व की ओर है तथा इसके चार प्रमुख देशों में चार गोपुरम है पूर्व दिशा में स्थित गोपुरम सर्वाधिक विशाल है इसे राजगोपुरम कहते हैं। ग्रेनाइट द्वारा निर्मित इस गोपुरम की ऊंचाई लगभग 217 फीट है इसमें 11 तल हैं अन्य गोपुरम के नाम थिरुमंजना गोपुरम (दक्षिण दिशा),पैगोपुरम (पश्चिम दिशा) तथा अम्मना अम्मन गोपुरम (उत्तर दिशा)। सभी गोपुरम विभिन्न शिल्पों द्वारा अलंकृत हैं।

प्राकारम

प्राकारम अथवा प्राकार मंदिर के बाहरी क्षेत्र को कहा जाता है जो खुला या ढका हुआ हो सकता है। यह मंदिर के चारों ओर बनाया जाता है, जहां भक्तगण मंदिर की परिक्रमा करते हैं। इस मंदिर में 7 प्राकार हैं, उनमें पांच प्राकार मंदिर परिसर के भीतर हैं। मंदिर के परिसर को चारों ओर से घेरती सड़क छठा प्राकार है तथा संपूर्ण अरुणाचल पर्वत की परिक्रमा करते पथ को सातवां प्राकार माना जाता है।

मंदिर का जल कुंड

मंदिर परिसर के भीतर दो जलकुंड है राजगोपुरम के निकट शिवगंगई तीर्थम है तथा दक्षिणी गोपुरम की ओर ब्रह्म तीर्थम है।

सहस्त्र स्तंभ मंडप

मंदिर के मंडप का निर्माण विजयनगर साम्राज्य के राजा कृष्णदेव राय के शासनकाल में किया गया था। इस मंडप में सहस्त्र स्तंभ है। राजगोपुरम में प्रवेश करते समय यह मंडप दाई दिशा में स्थित है। इन स्तंभों पर भिन्न-भिन्न देवी देवताओं के सुंदर शिल्प हैं। इस मंडप का प्रयोग विशेष रूप से थिरुमंजनम के समय किया जाता है। थिरुमंजनानम के आयोजन में अर्थ नक्षत्र के अवसर पर भगवान का अभिषेक किया जाता है। इस दिन श्री अरुणाचलेश्वर के अभिषेक के दर्शन हेतु सहस्त्रों भक्तगण इस मंडप में एक साथ बैठते हैं।

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पाथाल लिंगम

पाथाल लिंगम या पाताल लिंग एक भूमिगत कक्ष है। ऐसा कहा जाता है कि रमण महर्षि ने यहां ध्यान साधना की थी। रमण महर्षि एक प्रख्यात संत थे जिन्होंने अल्प आयु में मृत्यु को पराजित किया था।

कम्बत्तु इल्लैयनार सन्निधि

राजा कृष्णदेवराया द्वारा निर्मित यह सन्निधि अथवा मंदिर सहस्त्र स्तम्भ मंडप के समक्ष स्थित है। इसके भीतर चार कक्ष हैं। सबसे भीतरी कक्ष मूलस्थान है जहां श्री मुरुगन की प्रतिमा स्थापित है। तीसरे कक्ष का प्रयोग पूजा आराधना के लिए किया जाता है। प्रथम एवं द्वितीय कक्ष में ग्रेनाईट पर उत्कृष्ट रूप से उत्कीर्णित संरचनाएं हैं।

शिवगंगा विनायक सन्नाथी

विनायक अथवा गणपति को समर्पित यह मंदिर इल्लैयनार संनाथी के पृष्ठभाग में स्थित है। इस मंदिर के ऊपर एक भव्य व विशाल विमान है जिस पर देवी-देवताओं की रंगबिरंगी छवियाँ हैं।

अरुणगिरीनाथर मंडपम

अरुणगिरीनाथर मंडपम अथवा अरुणगिरीनाथ मंडप तमिल संत अरुणगिरीनाथ को समर्पित है। उन्हें सामान्यतः भगवान मुरुगन के समक्ष हाथ जोड़कर नतमस्तक मुद्रा में खड़े हुए दर्शाया जाता है।

कल्याण सुदर्शन सन्निधि

इस सन्निधि में एक शिवलिंग है। साथ ही देवी पार्वती एवं नंदी के विग्रह भी हैं। इसमें एक विवाह मंडप भी है जहां अनेक भक्तगण विवाह समारोह आयोजित करते हैं

वल्लला महाराज गोपुरम

इस गोपुरम का निर्माण होयसल राजा वीर वल्लला अथवा वीर बल्लाल ने किया था। इस अटारी में उनकी प्रतिमा भी स्थापित की गयी है। इसी कारण इसका नामकरण वल्लला महाराज गोपुरम हुआ। यहाँ श्री अरुणाचलेश्वर स्वयं वीर वल्लला का श्राद्ध करते हैं, क्योंकि राजा की कोई संतान नहीं थी।

किल्ली गोपुरम

किल्ली गोपुरम का अर्थ है, तोता अटारी। यह गोपुरम श्री अरुणाचलेश्वर की भीतरी गर्भगृह से जुड़ा हुआ है। इस गोपुरम के ऊपर, एक आले के भीतर, गारे में निर्मित तोते का शिल्प है। ऐसी मान्यता है कि संत अरुणगिरीनाथ स्वयं एक तोते के रूप में इस गोपुरम पर विश्राम कर रहे हैं। इस गोपुरम पर राजा राजेन्द्र चोल तथा इस गोपुरम के निर्माता भास्करमूर्ती व उनकी पत्नी की भी प्रतिमाएं हैं। मंदिर में आयोजित शोभायात्राओं के समय सभी उत्सव मूर्तियों को इसी गोपुरम से बाहर लाया जाता है। 

1200 साल से भी अधिक पुराना है तमिलनाडु का ये मंदिर, यहां अग्नि स्वरूप में होती है शिवलिंग की पूजा

कत्ती मंडपम

किल्ली गोपुरम को पार कर सोलह स्तम्भ युक्त एक विस्तृत कक्ष में पहुँचते हैं जिसे कत्ती मंडपम कहते हैं। प्रमुख उत्सवों के समय यहाँ से सभी देवों के दर्शन होते हैं। कार्तिकई दीपम उत्सव पर पावन अरुणाचल पर्वत के शिखर पर दीप स्तम्भ प्रज्ज्वलित किया जाता है। भक्तगण इसी मंडप से उस प्रकाश पुंज के दर्शन करते हैं। इसी मंडप से ध्वज स्तम्भ एवं श्री अरुणाचलेश्वर मंदिर के समक्ष विराजमान एक छोटे नंदी के भी दर्शन होते हैं।

श्री संबंध विनायक मंदिर

यह मंदिर कत्ती मंडपम के समीप स्थित है। मंदिर के भीतर चटक लाल रंग में भगवान गणेश अथवा विनायक की बैठी मुद्रा में विग्रह है। यह प्रतिमा सम्पूर्ण तमिल नाडू के मंदिरों में स्थापित विशालतम गणेश प्रतिमाओं में से एक है। पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान् गणेश ने एक दानव का वध किया था तथा उसके रक्त से अपने शरीर का लेप किया था। इसी कारण उनकी देह रक्तवर्ण है.

1200 साल से भी अधिक पुराना है तमिलनाडु का ये मंदिर, यहां अग्नि स्वरूप में होती है शिवलिंग की पूजा

उन्नामलई अंदर अम्मन मंदिर

इस मंदिर में देवी उन्नमलाईअम्मन के रूप में देवी पार्वती की आराधना की जाती है। यह मंदिर श्री अरुणाचलेश्वर मंदिर संकुल के उत्तर-पश्चिमी कोने में स्थित है। इस मंदिर में नवग्रह मंदिर, कोडेमरा मंडपम, अष्टलक्ष्मी मंडपम तथा गर्भगृह हैं।

श्री अरुणाचलेश्वर मंदिर

श्री अरुणाचलेश्वर मंदिर इस संकुल का सर्वाधिक भीतरी मंदिर है जो पूर्व मुखी है। वे इस मंदिर के प्रमुख देव हैं। इसके गर्भगृह में शिवलिंग है। मंदिर की चारों ओर स्थित भित्तियों पर लिंगोद्भव, नटराज,  दुर्गा तथा अन्य देव-देवताओं के शिल्प हैं। मंदिर के दूसरे प्राकारम में पल्लियारै नामक एक लघु कक्ष है। यह कक्ष शिव-पार्वती का विश्राम कक्ष है। मंदिर में दिवस भर के सभी अनुष्ठानों की समाप्ति के पश्चात, रात्रि के समय देवी पार्वती की प्रतिमा को पालकी में बैठाकर इस कक्ष में लाया जाता है। श्री अरुणाचलेश्वर का प्रतिनिधित्व करती एक प्रतिमा को भी इस कक्ष में लाया जाता है। तत्पश्चात दोनों विग्रहों को एक झूले पर विराजमान किया जाता है। कुछ अतिरिक्त अनुष्ठानों के पश्चात कक्ष को बंद कर दिया जाता है। भगवान् शिव एवं देवी पार्वती प्रातःकाल तक कक्ष में विश्राम करते हैं।

1200 साल से भी अधिक पुराना है तमिलनाडु का ये मंदिर, यहां अग्नि स्वरूप में होती है शिवलिंग की पूजा

आप यहाँ सुन्देरश्वर, अर्धनारीश्वर तथा अन्य उत्सव मूर्तियों को भी देख सकते हैं जिन्हें विभिन्न उत्सवों में शोभायात्रा के लिए लिया जाता है। दूसरी प्राकारम में 63 नेयनर तथा शिवलिंग के विभिन्न रूपों के शिल्प हैं। गणपति का एक लघु मंदिर, स्थल विनायक, भी यहाँ स्थित है।

नोट:-

श्री अरुणाचलेश्वर मंदिर अथवा दक्षिण के लगभग सभी मंदिरों में पारंपरिक परिधान की अपेक्षा की जाती है। छोटे वस्त्रों की अनुमति पुरुष एवं स्त्री दोनों को नहीं है।


21 comments:

  1. Har har mahadev, aur bhut sara thank you apkoh, ki aap itne bariki se jankari batati hai. Lkihte rhiye aise hi, mujhe agle vlog ka intezar rahega ��������❤️❤️❤️

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    1. सनातन में शिवजी का स्थान महत्वपूर्ण है
      शिव-शंभु की भक्ति से ये जीवन संपूर्ण है
      सृष्टि के संहार के भोले बाबा परिचायक है
      भोलेनाथ की आराधना बड़ी सुखदायक है
      शिव-शंकर की शक्ति से जगत खुशहाल है
      संपूर्ण विश्व में शिवजी के मंदिर विशाल है
      शिव शक्ति का कहीं कोई भी सानी नहीं है
      शिवजी ही काल और शिव ही महाकाल है
      शंकर के जैसा कोई नहीं है संपूर्ण-जगत में
      सारे संसार के साथ-साथ इनका हूं भगत मैं
      संपूर्ण ब्रह्मांड में इनकी शक्ति सब पर भारी
      सृष्टि के विनाशक भोले भंडारी-त्रिनेत्र धारी
      ब्रह्मा-विष्णु भी इनके समक्ष है नतमस्तक
      शिव-शंकर-भोले की भक्त है दुनिया सारी
      मेरे महादेव का नित्य-प्रतिदिन जाप करो
      दूर अपने सारे दोष-नष्ट अब सब पाप करो
      लोभ-लालच-मोह-माया में समय गंवाकर
      दुख में दुखी होके अब और ना प्रलाप करो
      मेरे प्यारे भोले नाथ रहे सदा ही तेरा साथ
      🙏नरेश"राजन"हिन्दुस्तानी🙏

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  2. भगवान शिव का अद्भुत मंदिर

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  3. हर हर महादेव 🙏

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  4. सनातन में शिवजी का स्थान महत्वपूर्ण है
    शिव-शंभु की भक्ति से ये जीवन संपूर्ण है
    सृष्टि के संहार के भोले बाबा परिचायक है
    भोलेनाथ की आराधना बड़ी सुखदायक है
    शिव-शंकर की शक्ति से जगत खुशहाल है
    संपूर्ण विश्व में शिवजी के मंदिर विशाल है
    शिव शक्ति का कहीं कोई भी सानी नहीं है
    शिवजी ही काल और शिव ही महाकाल है
    शंकर के जैसा कोई नहीं है संपूर्ण-जगत में
    सारे संसार के साथ-साथ इनका हूं भगत मैं
    संपूर्ण ब्रह्मांड में इनकी शक्ति सब पर भारी
    सृष्टि के विनाशक भोले भंडारी-त्रिनेत्र धारी
    ब्रह्मा-विष्णु भी इनके समक्ष है नतमस्तक
    शिव-शंकर-भोले की भक्त है दुनिया सारी
    मेरे महादेव का नित्य-प्रतिदिन जाप करो
    दूर अपने सारे दोष-नष्ट अब सब पाप करो
    लोभ-लालच-मोह-माया में समय गंवाकर
    दुख में दुखी होके अब और ना प्रलाप करो
    मेरे प्यारे भोले नाथ रहे सदा ही तेरा साथ
    🙏नरेश"राजन"हिन्दुस्तानी🙏

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  5. सनातन में शिवजी का स्थान महत्वपूर्ण है
    शिव-शंभु की भक्ति से ये जीवन संपूर्ण है
    सृष्टि के संहार के भोले बाबा परिचायक है
    भोलेनाथ की आराधना बड़ी सुखदायक है
    शिव-शंकर की शक्ति से जगत खुशहाल है
    संपूर्ण विश्व में शिवजी के मंदिर विशाल है
    शिव शक्ति का कहीं कोई भी सानी नहीं है
    शिवजी ही काल और शिव ही महाकाल है
    शंकर के जैसा कोई नहीं है संपूर्ण-जगत में
    सारे संसार के साथ-साथ इनका हूं भगत मैं
    संपूर्ण ब्रह्मांड में इनकी शक्ति सब पर भारी
    सृष्टि के विनाशक भोले भंडारी-त्रिनेत्र धारी
    ब्रह्मा-विष्णु भी इनके समक्ष है नतमस्तक
    शिव-शंकर-भोले की भक्त है दुनिया सारी
    मेरे महादेव का नित्य-प्रतिदिन जाप करो
    दूर अपने सारे दोष-नष्ट अब सब पाप करो
    लोभ-लालच-मोह-माया में समय गंवाकर
    दुख में दुखी होके अब और ना प्रलाप करो
    मेरे प्यारे भोले नाथ रहे सदा ही तेरा साथ
    🙏नरेश"राजन"हिन्दुस्तानी🙏

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  6. अरुणाचलेश्वर महादेव मंदिर तमिनाडू के तिरुवन्मलाई में स्थित की अति विशिष्टता है।

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  7. महादेव के इतने विशाल मन्दिर और अद्भुत मन्दिर की बहुत ही विस्तृत जानकारी मिली।
    हर हर महादेव

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  8. अद्भुत अद्वितीय

    हर हर महादेव 🙏🙏🔱🔱

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