चिदंबरम का नटराज मंदिर / Nataraja Temple of Chidambaram

चिदंबरम का नटराज मंदिर

शिव के आनंद तांडव का स्थल

 चेन्नई से दक्षिण की ओर लगभग 240 किलोमीटर तथा पुदुचेरी से लगभग 60 किलोमीटर दूर स्थित चिदंबरम नगर में अनेक बड़े छोटे अप्रतिम मंदिर हैं। सुप्रसिद्ध नटराज मंदिर चिदंबरम में ही है, जिसे चिदंबरम मंदिर भी कहते हैं। यह मंदिर 40 एकड़ क्षेत्र में फैला हुआ है। मंदिर परिसर प्राकारों अथवा प्रांगण की 5 परतों से घिरा है, जिसमें सबसे भीतरी प्राकार में गर्भगृह है।मंदिर पूरी तरह से द्रविड़ वास्तुकला से बना है किंतु गर्भगृह स्पष्टत: केरल अथवा मलाबारी शैली का है।

एकलौता ऐसा मंदिर, जहां होती है भगवान शिव के नटराज रूप की पूजा

इतिहास एवं किंवदंतियां

तिल्लई नटराज मंदिर से संबंधित सभी ऐतिहासिक संदर्भ यह दर्शाते हैं कि कम से कम छठवीं शताब्दी से यह मंदिर व्यवहार में है। संगम साहित्य से प्राप्त जानकारी के अनुसार मंदिर के पुनरुद्धार में प्रमुख वास्तु विद के रूप में विडुवेलविडुगु पेरुंटक्कन का योगदान है जो कि पारंपरिक विश्वकर्मा समुदाय के वंशज है।  अप्पर एवं सम्बन्द की कविताओं में भी चिदंबरम के नृत्य मुद्रा में विराजमान भगवान का उल्लेख है। 10 वीं सदी के आसपास चिदंबरम चोल वंश की राजधानी थी तथा नटराज उनके कुलदेवता थे।कालांतर में उन्होंने अपनी राजधानी तंजावुर में स्थानांतरित कर दी थी।

एकलौता ऐसा मंदिर, जहां होती है भगवान शिव के नटराज रूप की पूजा

दक्षिण भारत के पल्लव, पांड्,य चोल,चेर एवं विजयनगर जैसे अनेक राजवंशों ने अपनी कालावधी में इस मंदिर के रखरखाव एवं विस्तार में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। प्रत्येक राजवंश की शैली के चिन्ह मंदिर के विभिन्न भागों में देखा जा सकता है।

यहां मंदिर की स्थापना से कई वर्ष पूर्व यह भूभाग एक विशाल वन्य प्रदेश था। तिल्लई मैंनग्रोव के नाम से इस वन का नाम तिल्लई वन पड़ा।इस वन में ऋषियों का वास था, जो सदा विभिन्न अनुष्ठानों का आयोजन करते रहते थे। समयोपरांत उन्हें ऐसा भ्रम होने लगा था कि शक्तिशाली मंत्र द्वारा वे भगवान शिव को भी नियंत्रित कर सकते हैं। फलत: भगवान शिव ने उन्हें यथार्थ से अवगत कराने का निश्चय किया।एक दिन उन्होंने एक भिक्षु का रूप धारण किया तथा मोहिनी रूप में भगवान विष्णु को साथ लेकर उन ऋषियोंयों से भेंट करने यहां आए। भगवान शिव का सुंदर स्वरूप देख ऋषि पत्नियां उन पर मुग्ध हो गईं। इससे कुपित होकर ऋषियों ने शिव पर सर्पों का बर्षाव किया। भगवान शिव ने उन सर्पों को आदर पूर्वक स्वीकारा तथा उन्हें आभूषण के रूप में अपने शरीर पर धारण किया। उन्होंने शिव पर बाघ को छोड़ा भगवान शिव ने बाघ को मुक्ति प्रदान की तथा बाघ चर्म को अपनी कटि पर धारण कर लिया। यह देख ऋषियों ने अपनी समस्त आध्यात्मिक शक्तियां एकत्रित की तथा  मुयालकन असुर का आह्वाहन किया, जो पुर्ण अज्ञानता एवं अभिमान का प्रतीक था। भगवान शिव ने मुयालकन पर खड़े होकर उसे गति हीन कर दिया तत्पश्चात वे आनंद तांडव नृत्य करने लगे तथा अपना वास्तविक रूप ऋषियों के समक्ष प्रकट किया। ऋषियों को अपनी अज्ञानता का पूर्ण आभास हुआ तथा वे भगवान शिव के समक्ष नतमस्तक हो गए।

तभी से भगवान शिव यहां नटराज रूप में पूजे जाने लगे

एक अन्य किवदंती के अनुसार पतंजलि जो कृत काल में हिमालय में साधना कर रहे थे वे एक अन्य संत व्यघ्रपथर या पुलिकालमुनी  के साथ खिलाई वन में घूमते हैं और शिवलिंग के रूप में भगवान शिव की पूजा करते हैं, वह भगवान जिनकी आज थिरुमला धनेश्वर के रूप में पूजा की जाती है।पौराणिक कथाओं के अनुसार यह माना जाता है कि भगवान शिव ने इन दोनों ऋषियों के लिए अपने शाश्वत आनंद के नृत्य (आनंद तांडव) का प्रदर्शन नटराज के रूप में तमिल माह थाई (जनवरी-फरवरी) में पूसम नक्षत्र के दिन किया।

व्यघ्रपथर/पुलकामुनि  व्याघ्र / पुलि का अर्थ है "बाघ" और पथ / काल का अर्थ है "चरण" - यह इस कहानी की ओर संकेत करता है कि किस प्रकार वह संत इसलिए बाघ के सामान दृष्टि और पंजे प्राप्त कर सके जिससे कि वह भोर होने के काफी पूर्व ही वृक्षों पर चढ़ सकें और मधुमक्खियों द्वारा पुष्पों को छुए जाने से पहले ही देवता के लिए पुष्प तोड़ कर ला सकें)।

चिदंबरम का नटराज मंदिर / Nataraja Temple of Chidambaram

चिदंबरम के नटराज मंदिर का महत्त्व

स्वर्ण छत युक्त चिदंबरम मंदिर का पवित्र गर्भगृह है और यहां तीन स्वरूपों में देवता विराजते हैं-

रूप" - भगवान नटराज के रूप में उपस्थित मानवरूपी देवता, जिन्हें सकल थिरुमेनी कहा जाता है।

"अर्ध-रूप" - चन्द्रमौलेस्वरर के स्फटिक लिंग के रूप में अर्ध मानवरूपी देवता, जिन्हें सकल निष्कला थिरुमेनी कहा जाता है।

 "आकाररहित" - चिदंबरा रहस्यम में एक स्थान के रूप में, पवित्र गर्भ गृह के अन्दर एक खाली स्थान, जिसे निष्कला थिरुमेनी कहते हैं। यहां 51 स्वर्ण बिल्व पत्रों से बना एक हार है जिसकी पूजा की जाती है।ऐसी मान्यता है कि यहां शिव एवं पार्वती का वास है किंतु वे मानवीय नेत्रों के समक्ष अदृश्य रहते हैं। इस स्थान को सदैव लाल व काले वस्त्र के आवरण से ढक कर रखा जाता है ।यह आवरण माया का प्रतिनिधित्व करता है। यह आवरण केवल विशेष पूजा अर्चना के समय ही खोला जाता है तब इन उस स्वर्ण बिल्व पत्रों को देखा जा सकता है । यह इस मंदिर को अद्वितीय बनाता है।

चिदंबरम पंचभूत स्थलों में से एक है जहां भगवान की पूजा उनके आकाश अवतार के रूप में होती है ।

नटराज मंदिर की वास्तुकला 

गोपुरम

मंदिर में कुल 9 द्वार हैं जिनमें से चार ऊंचे गोपुरम बने हुए हैं प्रत्येक गोपुरम में पूर्व दक्षिण पश्चिम और उत्तर की ओर 7 स्तर हैं पूर्वी गोपुरम में भारतीय नृत्य शैली भरतनाट्यम की संपूर्ण 108 मुद्राएं अंकित हैं।

गोपुरम को बारीक नक्काशी से सजाया है

5 सभाएं

यह 5 सभाएं या मंच या हॉल हैं-

  • चित सभई, पवित्र गर्भगृह है जहां भगवान नटराज और उनकी सहचरी देवी शिवाग्मासुंदरी रहती हैं।
  • कनक सभई, यह चितसभई के ठीक सामने हैं, जहां से दैनिक संस्कार संपादित किए जाते हैं।
  • नृत्य सभई या नाट्य सभई, यह मंदिर ध्वजा के खंभे के दक्षिण की ओर है जहां मान्यता के अनुसार भगवान ने देवी काली के साथ नृत्य किया था।
  • राजा सभई या 1000 स्तंभों वाला हाल जो हजारों खंभों से युक्त कमल या सहस्त्रराम नामक यौगिक चक्र का प्रतीक है (जो योग में सर के प्रमुख बिंदु पर स्थित एक 'चक्र' होता है और यही वह स्थान होता है जहां आत्मा का परमात्मा से मिलन होता है। इस चक्र को 1000 पंखुरियों वाले कमल के रूप में प्रस्तुत किया जाता है। ऐसा कहा जाता है कि सहस्र चक्र पर ध्यान लगाने से परमसत्ता से मिलन की अवस्था को प्राप्त किया जा सकता है और यह यौगिक क्रियाओं का सर्वोच्च बिंदु माना जाता है)।

मंदिर की कलाकारी का महत्व

मंदिर का खाका और वास्तुकला दार्शनिक अर्थों से परिपूर्ण है-

5 में से 3 पंचभूतस्थल मंदिर जो कि काल हस्ती कांचीपुरम और चिदंबरम में है वह सभी ठीक 79' 43" के पूर्वीय देशांतर पर एक सीध में हैं-जो वास्तव में प्रौद्योगिकी, ज्योतिषीय और भौगोलिक दृष्टि से एक चमत्कार है। अन्य दो मंदिरों में से तिरुवनाइकवल इस पवित्र अक्ष पर दक्षिण की ओर 3 अंश पर और उत्तरी छोर के पश्चिम से 1अंश पर स्थित है, जबकि तिरुवन्नामलाई लगभग बीच में है।

  • इसके 9 द्वार मनुष्य के शरीर के 9 विवरों  की ओर संकेत करते हैं।
  • चितसभई पवित्र गर्भगृह हृदय का प्रतीक है(जिस प्रकार हृदय शरीर की बाईं ओर होता है ठीक उसी प्रकार चिदंबरम में गर्भगृह भी कुछ बाएं तरफ स्थित है) जहां पर पांच सीढ़ियों द्वारा पहुंचा जाता है, इन्हें पंचाटचारा पदी कहते हैं- पंच अर्थात 5 अक्षर शाश्वत शब्दांश- "शि वा य ना मा"
  • पवित्र गर्भगृह 28 स्तंभों द्वारा खड़ा है जो 28 आगम या भगवान शिव की पूजा के लिए निर्धारित नीतियों के प्रतीक हैं ।
  •  छत पर 64 आड़ी कास्ठ निर्मित धरन हैं जो 64 कलाओं का प्रतीक हैं।
  •  छत का निर्माण 21600 स्वर्ण टाइलों के द्वारा किया गया है जिन पर शब्द "शिवायनाम" लिखा है, यह संख्या 1 दिन में एक व्यक्ति द्वारा ली गई सांसो की संख्या को व्यक्त करती है।
  • यह स्वर्ण टाइलें लकड़ी की छत पर 72000 स्वर्ण कीलों की सहायता से लगाई गईं हैं, जो मनुष्य शरीर में उपस्थित नाड़ियों की संख्या का प्रतीक है। 
  • छत के ऊपर 9 पवित्र कलश (तांबे से निर्मित) स्थापित किए गए हैं जो नौ शक्तियों के प्रतीक हैं।
  • 8 मंडप में 6 खंबे हैं जो छह शास्त्रों के प्रतीक हैं।
  • अर्थ मंडप के बगल वाले मंडप में 18 खंबे हैं जो अठारह पुराणों के प्रतीक हैं।
  • चित सभा के छात्र 4 खंभों की सहायता से खड़ी है जो चार वेदों के प्रतीक हैं।

चिदंबरम, यह शब्द चित एवं अंबर इन दो शब्दों के संयोजन से बना है। इसका शाब्दिक अर्थ है चेतना का अकाश। मंदिर के गर्भ गृह के भीतर यह दोनों तत्व प्रदर्शित होते हैं।

चिदंबरम का नटराज मंदिर / Nataraja Temple of Chidambaram

मंदिर का रथ

चिदंबरम मंदिर का रथ संभवत संपूर्ण तमिलनाडु में किसी मंदिर के रथ का सबसे सुंदर उदाहरण है।यह रथ,जिस पर भगवान नटराज वर्ष में दो बार बैठते हैं, त्योहारों के दौरान असम के भक्तों द्वारा खींची जाती है।

नटराज मंदिर का कार्यभार दीक्षितर समुदाय संभालता है।एक दीक्षितर ब्राह्मण को विवाह उपरांत अपने परिवार से अर्चक की उपाधि विरासत में प्राप्त होती है।यद्यपि ऐसी मान्यता है कि इन ब्राह्मणों को स्वयं पतंजलि कैलाश पर्वत से यहां लेकर आए थे तथापि यह केरल के नंबूदिरि से अधिक संबंध रखते प्रतीत होते हैं।

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Nataraja Temple of Chidambaram

Site of Shiva's Ananda Tandava

 Located about 240 km south of Chennai and about 60 km from Puducherry, there are many big and small temples in Chidambaram Nagar. The famous Nataraja temple is located in Chidambaram itself, also known as Chidambaram temple. This temple is spread over an area of ​​40 acres. The temple complex is surrounded by five layers of prakaras or courtyards, with the innermost being the sanctum sanctorum. The temple is entirely made of Dravidian architecture but the sanctum sanctorum is clearly of Kerala or Malabari style.

चिदंबरम का नटराज मंदिर / Nataraja Temple of Chidambaram

History and legends

All historical references relating to the Tillai Nataraja temple indicate that the temple has been in practice since at least the 6th century. According to the information obtained from the Sangam literature, Viduvelvidugu Peruntakkan, who is a descendant of the traditional Vishwakarma community, has contributed as a major architectural scholar in the restoration of the temple. In the poems of Appar and Sambandh, there is a mention of God seated in the dancing posture of Chidambaram. Around the 10th century, Chidambaram was the capital of the Chola dynasty and Nataraja was their deity. Later they shifted their capital to Thanjavur.

Many dynasties like Pallavas, Pandavas, Ya Cholas, Cheras and Vijayanagaras of South India have contributed significantly in the maintenance and expansion of this temple during their period. Signs of the style of each dynasty can be seen in different parts of the temple.

Many years before the establishment of the temple here, this land was a vast forest area. This forest was named Tillai forest after the name of Tillai Mangrove. This forest was inhabited by sages, who were always conducting various rituals. Over time, he started having such an illusion that he could even control Lord Shiva by the powerful mantra. As a result, Lord Shiva decided to make them aware of the reality. One day he took the form of a monk and came here to meet those sages, taking Lord Vishnu in the form of Mohini. Seeing the beautiful form of Lord Shiva, the sage wives were infatuated with him. Enraged by this, the sages rained snakes on Shiva. Lord Shiva respectfully accepted those snakes and wore them as ornaments on his body. He left the tiger on Shiva, Lord Shiva liberated the tiger and wore the tiger skin on his neck. Seeing this, the sages gathered all their spiritual powers and invoked the asura, who was a symbol of complete ignorance and pride. Lord Shiva made him motionless by standing on Muyalkan, after which he started performing the infinite Tandava dance and revealed his true form to the sages. The sages became fully aware of their ignorance and bowed down to Lord Shiva.

Since then Lord Shiva started being worshiped here in the form of Nataraja.

चिदंबरम का नटराज मंदिर / Nataraja Temple of Chidambaram

According to another legend, Patanjali, who was meditating in the Himalayas during the Krita period, wandered in the Khilai forest with another saint, Vyaghrapathar or Pulikalamuni, and worshiped Lord Shiva in the form of a Shivalinga, the Lord who is today known as Thirumala Dhaneshwar. According to mythology, it is believed that Lord Shiva performed his dance of eternal bliss (Ananda Tandava) for these two sages in the form of Nataraja in the Tamil month of Thai (January-February) of the Poosam constellation. day done.

Vyaghrapathar/Pulkamuni Vyaghra/Puli means "tiger" and path/kaal means "step" - this alludes to the story of how the saint was able to achieve the vision and claws of a tiger so that he could see the dawn. climb trees long before they happen and pluck flowers for the deity before the bees touch the flowers).

Significance of Nataraja Temple of Chidambaram

The sanctum sanctorum of the Chidambaram temple with golden roof is and the deity resides here in three forms-

Roop" - the anthropomorphic deity present in the form of Lord Nataraja, who is called Sakal Thirumeni.

"Ardha-roop" - the half-human deity in the form of a crystal linga of Chandramouleshwarar, who is called Sakal Nishkala Thirumeni.

 "Shapeless" - as a space in the Chidambara Rahasyam, an empty space inside the sacred sanctum, called Nishkala Thirumeni. There is a necklace made of 51 golden bilva leaves which is worshipped. It is believed that Shiva and Parvati reside here but they remain invisible before human eyes. This place is always kept covered with red and black cloth. This cover represents Maya. This cover is opened only at the time of special worship, then these golden bilva leaves can be seen. This makes this temple unique.

Chidambaram is one of the Panchabhuta sites where the Lord is worshiped in the form of His sky incarnation.

चिदंबरम का नटराज मंदिर / Nataraja Temple of Chidambaram

Nataraja Temple Architecture

gopuram

The temple has a total of 9 gates, out of which four high gopurams are made, each gopuram has 7 levels towards east, southwest and north, the eastern gopuram has 108 mudras of Bharatanatyam, the Indian dance form.

5 meetings

These are 5 meetings or forums or halls-

  • Chit Sabhai is the sacred sanctum where Lord Nataraja and his consort Devi Shivagmasundari reside.
  • Kanaka Sabhai, it is right in front of Chitsabhai, from where the daily rituals are performed.
  • Nritya Sabhai or Natya Sabhai, this temple is on the south side of the Dhwaja pillar where the god is believed to have danced with Goddess Kali.
  • Raja Sabhai or the Hall of 1000 Pillars which symbolizes the thousands of pillared lotus or the compound chakra called Sahastraram (which in yoga is a 'chakra' located at the principal point of the head and is the place where the soul meets the Supreme Soul) This chakra is presented in the form of a lotus with 1000 petals. It is said that by meditating on the Sahasrara Chakra one can attain the state of union with the Supreme Being and is considered the highest point of yogic actions) .

importance of temple art

The design and architecture of the temple is full of philosophical meanings.

3 of the 5 Panchabhootasthala temples at Kala Hasti Kanchipuram and Chidambaram are all aligned exactly at 79' 43" East Longitude - a truly technological, astrological and geographical miracle. Out of the other two temples, Thiruvanaikaval is located on this sacred axis at 3 degrees to the south and 1 degree to the west of the northern end, while Tiruvannamalai is almost in the middle.

  • Its 9 gates point to the 9 holes of the human body.
  • Chitasbhai sacred sanctum is the symbol of the heart (just as the heart is on the left side of the body, in the same way the sanctum sanctorum in Chidambaram is also located on the left side) where it is reached by five steps, these are called Panchatachara padi - Pancha means 5 letters eternal Syllable- "shi vay na ma"
  • The sacred sanctum sanctorum is erected by 28 pillars which symbolize the 28 agamas or policies prescribed for the worship of Lord Shiva.
  •  There are 64 horizontal wooden beams on the roof, which are symbols of 64 arts.
  •  The roof is made of 21600 gold tiles with the word "Shivayanaam" written on it, the number representing the number of breaths a person takes in a day.
  • These golden tiles are fixed on the wooden ceiling with the help of 72000 golden nails, which symbolize the number of nadis present in the human body.
  • There are 9 sacred Kalash (made of copper) installed on top of the roof which symbolizes the nine powers.
  • There are 6 pillars in the 8 mandapas which symbolize the six scriptures.
  • The mandapa next to the Arth Mandap has 18 pillars which are symbols of the eighteen Puranas.
  • The students of the Chit Sabha are standing with the help of 4 pillars which symbolize the four Vedas.
  • Chidambaram, this word is made from the combination of these two words Chit and Amber. It literally means the sky of consciousness. Both these elements are displayed inside the sanctum sanctorum of the temple.
चिदंबरम का नटराज मंदिर / Nataraja Temple of Chidambaram

temple chariot

The chariot of the Chidambaram temple is probably the most beautiful example of a temple chariot in the whole of Tamil Nadu. This chariot, on which Lord Nataraja sits twice a year, is pulled by devotees of Assam during festivals.

The Nataraja temple is managed by the Dikshitar community. A Dikshitar Brahmin inherits the title of Archaka from his family after marriage. Although it is believed that these Brahmins were brought here by Patanjali himself from Mount Kailash, it is from Namboodiri in Kerala. seem to be more related.

17 comments:

  1. A quite good article written to reveal the ancient culture।. People are certainly enjoying the same.

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  2. भगवान नटराज के मंदिर के बारे में दुर्लभ जानकारी।

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  3. तुम्हारे ब्लाग का हिस्सा न होते तो इतना सबकुछ विस्तार से जानने को न मिलता…
    इतने बड़े क्षेत्र में फैला मंदिर और इसकी अद्वभुत वास्तुकला को पढ़कर देखने का मन करता है…
    अच्छा लेख 👌👍

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    1. भगवान शिव का नटराज स्वरुप का उद्गम स्थल भी यहीं से है…ऐसा लग रहा

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  4. ब्लॉग का ये अंश हमें हमारी सनातन संस्कृति का ज्ञान देती है और हमें गौरवान्वित महसूस कराती है।
    नटराज महादेव मन्दिर की विस्तृत जानकारी मिली

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  5. Something beautiful. Philosophical meanings - extraordinary. Thank you.

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  6. बहुत सुंदर..प्राचीन भारत के धरोहर में ऐसे ऐसे रत्न हैं, जिनके विषय में पढ़ कर जानकर आश्चर्य की सीमा नहीं रह जाती।

    Great post

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  7. Har har mahadev ��, I am revising my history GS paper 1,is anyone here as upsc aspirant?
    Thank you di for wonderful article.

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    1. Other than you, i don't think so we have anyone else preparing for UPSC.

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