Sunday.. इतवार ..रविवार

 इतवार (Sunday)

Sunday.. इतवार ..रविवार
"खामोशियां बेवजह नहीं होती,
कुछ दर्द आवाज छीन लिया करते हैं..❤"

स्वप्न-स्मृति

आँख लगी थी पल-भर
देखा, नेत्र छलछलाए दो
आए आगे किसी अजाने दूर देश से चलकर
मौन भाषा थी उनकी, किन्तु व्यक्त था भाव

एक अव्यक्त प्रभाव
छोड़ते थे करुणा का अन्तस्थल में क्षीण
सुकुमार लता के वाताहत मृदु छिन्न पुष्प से दीन
भीतर नग्न रूप था घोर दमन का

बाहर अचल धैर्य था उनके उस दुखमय जीवन का
भीतर ज्वाला धधक रही थी सिन्धु अनल की
बाहर थीं दो बूँदें- पर थीं शांत भाव में निश्चल
विकल जलधि के जर्जर मर्मस्थल की

भाव में कहते थे वे नेत्र निमेष-विहीन
अन्तिम श्वास छोड़ते जैसे थोड़े जल में मीन
हम अब न रहेंगे यहाँ, आह संसार
मृगतृष्णा से व्यर्थ भटकना, केवल हाहाकार

तुम्हारा एकमात्र आधार
हमें दु:ख से मुक्ति मिलेगी- हम इतने दुर्बल हैं
तुम कर दो एक प्रहार

– सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला'
Sunday.. इतवार ..रविवार
"जीवन में कोई भी काम तब तक कठिन लगता है,
जब तक उसे करने के लिए हम अपना कदम नही बढ़ाते..❤"

24 comments:

  1. इतवार को और भी अधिक खुशनुमा बनाती प्रेरक कविता।

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  2. बेहद भावुक कविता और अच्छी तस्वीर 👌👌👌🥰😍
    शुभ रविवार 💐💐

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  3. Ek boond aansoon ki poem ka shirshak hona chahiye tha ****asha

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  4. Happy Sunday & beautiful Rupa very nice poem

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  5. आगे कदम बढ़ाता
    कभी अचानक
    पीछे हट जाता
    सोच-सागर में
    विलीन होता
    सब अपनों से
    कट जाता
    व्यस्त न रहता
    फिर भी काम से
    मैं घबराता हूं
    मंजिल के करीब
    पहुंच वापस
    लौट आता हूं
    पर सोचता हूं
    उस नन्हें जीव
    को देखकर जो
    प्रयास अनगिनत
    करता है फिर
    तू तो मानव है
    क्यों प्रयास से
    तु डरता है

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  6. प्रेरणाप्रद कविता। शुभ रविवार।

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