पंचतंत्र । Panchtantra ~ प्रथम तंत्र - मित्र भेद

पंचतंत्र । Panchtantra

पंचतंत्र की कहानियां 5 भागों में बटी हुई हैं 

  1. मित्र भेद (मित्रों में मनमुटाव एवं अलगाव)
  2. मित्र लाभ या मित्र संप्राप्ति
  3. काकोलुकियम (कौवे एवं उल्लू की कथा)
  4. लब्धप्रणाश (हाथ लगी चीज का हाथ से निकल जाना)
  5. अपरिक्षित कारक (जिसको पर खा नहीं गया हो, उसे करने से पहले सावधान रहें।)
पंचतंत्र । Panchtantra ~ प्रथम तंत्र - मित्र भेद

प्रथम तंत्र - मित्र भेद 

महिलारोप्य नाम के नगर में वर्धमान नाम का एक वणिक पुत्र रहता था। उसने धर्मयुक्त रीति से व्यापार में पर्याप्त धन एकत्र किया था। किंतु उतने से उसे संतुष्टी नहीं थी उसे और भी अधिक धन कमाने की इच्छा थी। छः उपाय से ही धनोपार्जन किया जाता है। भिक्षा, राज्यसेवा, खेती, विद्या, सूद और व्यापार से। इनमें से व्यापार का साधन ही सर्वश्रेष्ठ है। व्यापार के भी अनेक प्रकार हैं। उनमें सबसे अच्छा यही है कि परदेश से उत्तम वस्तुओं का संग्रह करके स्वदेश में उन्हें बेचा जाए। यही सोचकर वर्धमान ने अपने नगर से बाहर जाने का संकल्प किया। 

मथुरा जाने वाले मार्ग के लिए उसने अपना रथ तैयार करवाया। रथ में दो सुंदर सुदृढ़ बैल लगवाया। उनके नाम थे - संजीवक और नंदन। वर्धमान का रथ जब यमुना किनारे पहुंचा, तो संजीवक नाम का बैल नदी तट की दलदल में फंस गया। वहां से निकलने की चेष्टा में उसका एक पैर भी टूट गया। वर्धमान को यह देखकर बड़ा दुख हुआ। 

पंचतंत्र । Panchtantra ~ प्रथम तंत्र - मित्र भेद

तीन रात उसने बैल के स्वस्थ होने की प्रतीक्षा की। बाद में उसके सारथी ने कहा कि इस वन में अनेक हिंसक जंतु रहते हैं। यहां उनसे बचाव का कोई उपाय नहीं है। संजीवक के अच्छा होने में बहुत दिन लग जाएंगे। इतने दिन यहां रहकर प्राणों का संकट नहीं उठाया जा सकता है। इस बैल के लिए अपने जीवन को मृत्यु के मुख में क्यों डालते हैं?

तब वर्धमान ने संजीवक की रखवाली के लिए रक्षक रखकर आगे प्रस्थान किया। रक्षकों ने भी जब देखा कि जंगल अनेक शेर, बाघ, चीता से भरा पड़ा है तो वह भी दो एक दिन बाद ही वहां से प्राण बचाकर भागे और वर्धमान के सामने यह झूठ बोल दिया कि "स्वामी! संजीवक तो मर गया। हमने उसका दाह संस्कार कर दिया।" वर्धमान यह सुनकर बड़ा दुखी हुए किंतु अब कोई उपाय न था। 

इधर संजीवक यमुना तट की शीतल वायु के सेवन से कुछ स्वस्थ हो गया। नदी के किनारे की दूब का अग्रभाग पशुओं के लिए बहुत बलदायी होता है। उसे निरंतर खाने के बाद वह खूब मांसल और हृष्ट - पुष्ट हो गया। दिनभर नदी के किनारों को सिंघों से पाटना और मदमस्त होकर गरजते हुए किनारों की झाड़ियों से सिंह उलझा कर खेलना ही उसका एक काम था। 

एक दिन उसी यमुना तट पर पिंगलक नाम का एक शेर पानी पीने आया। वहां उसने दूर से ही संजीवक की गंभीर हुँकार सुनी। उसे सुनकर वह भयभीत हो गया और सिमटकर झाड़ियों में जा छिपा। 

शेर के साथ दो गीदड़ भी थे - करकट और दमनक। यह दोनों सदा शेर के पीछे पीछे रहते थे। उन्होंने जब अपने स्वामी को भयभीत देखा तो आश्चर्य में डूब गए। वन में स्वामी का इस तरह भयातुर होना सचमुच बड़े अचंभे की बात थी। आज तक पिंगलक कभी इस तरह भयभीत नहीं हुआ था। दमनक ने अपने साथी गीदड़ को कहा - करटक! हमारा स्वामी वन का राजा है। सब पशु उससे डरते हैं। आज वही इस तरह सिमटकर डरा सा बैठा है। प्यासा होकर भी वह पानी पीने के लिए यमुना तट पर जाकर लौट आया। इसका क्या कारण है? 

करटक ने उत्तर दिया - दमनक! कारण कुछ भी हो, हमें क्या? दूसरों के काम में हस्तक्षेप करना ठीक नहीं। जो ऐसा करता है, वह उसी बंदर की तरह तड़प तड़प कर मरता है, जिसने दूसरों के काम में कौतूहल वश व्यर्थ ही हस्तक्षेप किया था। दमनक ने पूछा - यह क्या बात कही तुमने। करटक ने कहा सुनो:

इसके बाद करटक दमनक को एक कहानी सुनाता है...... 

अनाधिकार चेष्टा (बंदर और लकड़ी के खूंटे की कथा)

                                                                                                                                        To be continued ...

13 comments:

  1. अति सुंदर रचना.।

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  2. गजब की मेहनत से पोस्ट डालती है
    आपको सादर पिरणाम

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  3. बढ़िया कहानी... अनाधिकार चेष्टा के इंतजार में👍🏻

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  4. अनाधिकार चेष्टा नहीं करना चाहिए ।

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  5. अगली कहानी के इंतजार में...😃

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  6. अच्छी कहानी।

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  7. Good story.... waiting for next

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