दहेज प्रथा – एक सामाजिक अभिशाप

दहेज़ प्रथा

कन्या दान को ना जाने कब समाज के लालची लोगों ने दहेज जैसी भयावह सामाजिक कुप्रथा बना कर रख दिया पता ही नहीं चला। कन्यादान शादी के समय मां - बाप द्वारा अपनी पुत्री को दिया जाता था। आज की स्थिति तो इसके बिल्कुल विपरीत है...

दहेज प्रथा – एक सामाजिक अभिशाप

समय बीतता चला गया स्वेच्छा से कन्या को दिया जाने वाला धन धीरे-धीरे वरपक्ष का अधिकार बनने लगा और वरपक्ष के लोग तो वर्तमान समय में इसे अपना जन्मसिद्ध अधिकार ही मान बैठे हैं ।

अखबारों में अब विज्ञापन निकलते हैं कि लड़के या लडकी की योग्यता इस प्रकार हैं। उनकी मासिक आय इतनी है और उनकी पारिवारिक पृष्ठभूमि बहुत सम्माननीय है। ये सब बातें पढ़कर कन्यापक्ष का कोई व्यक्ति यदि वरपक्ष के यहाँ जाता है, तो असली चेहरा सामने आता है। वरपक्ष के लोग घुमा-फिराकर ऐसी कहानी शुरू करते हैं जिसका आशय निश्चित रूप से दहेज होता है।

दहेज मांगना और देना दोनों निन्दनीय कार्य हैं। जब वर और कन्या दोनों की शिक्षा-दीक्षा एक जैसी है, दोनों रोजगार में लगे हुए हैं, दोनों ही देखने-सुनने में सुन्दर हैं, तो फिर दहेज की मांग क्यों की जाती है? कन्यापक्ष की मजबूरी का नाजायज फायदा क्यों उठाया जाता है?

दहेज प्रथा – एक सामाजिक अभिशाप

शायद इसलिए कि समाज में अच्छे वरों की कमी है तथा योग्य लड़के बड़ी मुश्किल से तलाशने पर मिलते हैं । हिन्दुस्तान में ऐसी कुछ जातियां भी हैं, जो वर को नहीं, अपितु कन्या को दहेज देकर ब्याह कर लेते हैं; लेकिन ऐसा कम ही होता है । अब तो ज्यादातर जाति वर के लिए ही दहेज लेती हैं ।

दहेज अब एक लिप्सा हो गई है, जो कभी शान्त नहीं होती। वर के लोभी माता-पिता यह चाह करते हैं कि लड़की अपने मायके वालों से सदा कुछ-न-कुछ लाती ही रहे और उनका घर भरती रहे। वे अपने लड़के को पैसा पैदा करने की मशीन समझते हैं और बेचारी बहू को मुरगी, जो रोज उन्हें सोने का अंडा देती रहे। माता- पिता अपनी बेटी की मांग कब तक पूरी कर सकते हैं। फिर वे भी यह जानते हैं कि बेटी जो कुछ कर रही है, वह उनकी बेटी नहीं वरन् ससुराल वालों के दबाव के कारण कह रही है ।

दहेज प्रथा – एक सामाजिक अभिशाप

यदि फरमाइश पूरी न की गई तो हो सकता है कि उनकी लाड़ली बिटिया प्रताड़ित की जाए, उसे यातनाएं दी जाएं और यह भी असंभव नहीं है कि उसे मार दिया जाए। ऐसी न जाने कितनी तरुणियों को जला देने, मार डालने की खबरें अखबारों में छपती रहती हैं ।

दहेज-दानव को रोकने के लिए सरकार द्वारा सख्त कानून बनाया गया है। इस कानून के अनुसार दहेज लेना और दहेज देना दोनों अपराध माने गए हैं। अपराध प्रमाणित होने पर सजा और जुर्माना दोनों भरना पड़ता है। यह कानून कालान्तर में संशोधित करके अधिक कठोर बना दिया गया है।

दहेज प्रथा – एक सामाजिक अभिशाप

किन्तु ऐसा लगता है कि कहीं-न-कहीं कोई कमी इसमें अवश्य रह गई है। क्योंकि न तो दहेज लेने में कोई अंतर आया है और न नवयुवतियों द्वारा की जाने वाली आत्महत्याओं अथवा उनकी हत्याओं में ही कोई कमी आई है । दहेज संबंधी कानून से बचने के लिए दहेज लेने और दहेज देने के तरीके बदल गए हैं ।

दहेज जैसे कुप्रथा से बाहर आने के लिए हम सब को ठोस कदम उठाने की आवश्यकता है ताकि इस पिछङी सोच से अपने समाज को बाहर निकाला जा सके। तभी हमारी बहन बेटी सुरक्षित महसूस करेंगी। 

English Translate

Dowry System – A Social Curse

It is not known when the greedy people of the society created a dreadful social evil like dowry, not knowing about the girl's donation. Kanyadan was given by the parents to their daughter at the time of marriage. Today's situation is just the opposite...

दहेज प्रथा – एक सामाजिक अभिशाप

As time went on, the money given to the girl voluntarily gradually became the right of the bride and the people of the groom have accepted it as their birthright in the present time.

Advertisements are now coming out in the newspapers that the qualifications of the boy or girl are as follows. His monthly income is such and his family background is very respectable. After reading all these things, if a person from the Virgo side goes to the bride's side, then the real face comes to the fore. The people of Varapaksha start such a story by twisting which definitely means dowry.

Both demanding and giving dowry is a condemnable act. When the education and initiation of both the bride and groom are the same, both are engaged in employment, both are beautiful in sight and hearing, then why dowry is demanded? Why is the compulsion of the Virgo side taken illegitimately?

Perhaps because there is a shortage of good grooms in the society and suitable boys are found with great difficulty on search. There are also some castes in India who get married by giving dowry to the girl and not the groom; But this rarely happens. Now most castes take dowry only for the groom.

दहेज प्रथा – एक सामाजिक अभिशाप

Dowry has now become a lust, which is never pacified. The greedy parents of the groom want that the girl should always bring something or the other from her maternal relatives and fill their house. They think of their son as a money-generating machine and the poor daughter-in-law as a chicken, who gives them golden eggs every day. How long can parents take to fulfill their daughter's demand? Then they also know that whatever the daughter is doing, she is not saying it because of pressure from her in-laws.

If the request is not fulfilled, his dear daughter may be harassed, tortured and it is not impossible that she should be killed. There are reports of many such young women being burnt and killed in the newspapers.

A strict law has been made by the government to stop the dowry demon. According to this law, both taking dowry and giving dowry are considered crimes. If the offense is proved, both punishment and fine have to be paid. This law has been amended over time to make it more stringent.

But it seems that there must be some deficiency in it somewhere. Because neither there has been any difference in taking dowry nor has there been any reduction in suicides or murders by young girls. The methods of taking dowry and giving dowry have changed to avoid dowry related laws.

To come out from the evil practice like dowry, we all need to take concrete steps so that our society can be taken out of this backward thinking. Only then our sister daughter will feel safe.


15 comments:

  1. निःसंदेह दहेज़ प्रथा समाज के लिए एक अभिशाप है। नई पीढ़ी की सोच अब कुछ हद तक बदलने लगी है।

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  2. आज मोहतरमा ने बहुत ही संवेदनशील मुद्दे को उठाया है जानते. सभी है दहेज देना और दहेज लेना दोनों ही एक निम्न दर्जे का कार्य है परंतु लोभी और लालची लोगों को इस बात से कोई फर्क नहीं पङता है ।

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  3. हमारे देश और समाज से बहुत सी कुरीतियां दूर हुई हैं लेकिन ये एक ऐसी कुरीति है जो अब भी विद्यमान है। दहेज देना तो कोई नहीं चाहता लेकिन लेना सब चाहते हैं। सबसे शर्मनाक तो यह है कि आज भी हमारे देश में दहेज हत्याएं होती हैं। पता नही इस अभिशाप से कब तक मुक्ति मिलेगी

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  4. यह हमारे समाज की एक बहुत बड़ी समस्या है, जिसका निदान निकलता हुआ दिखाई नही देता। आपसी सहमती तक तो फिर भी ठीक है कि शादी के पहले तय कल लो, अगर करना है तो करो। पर शादी के बाद प्रताड़ना देना, बार बार कुछ कुछ चीजों की डिमांड करना, मारना पीटना और तलाक देना यह सब तो सुन के भी रोंगटे खड़े हो जाते।

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  5. Mem defined extremely well. The most dangerous evil of our society.

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  6. बढ़िया लेखन, अब लोग जागरूक हो रहे हैं..पर ये जहर हम सभी के बीच काफी समय इस तरह फैला है कि इसकी आदत सी लग गई है, अगर कोई बहु आती है तो उसके साथ उसके लाए सामान के साथ उसको देखा जाता है..कि अच्छे हैसियत वाले घर की है..या फिर कम.. क्वालिफिकेशन बाद में आता है। थोड़ा और नीचे तबके में जाएं तो कहीं कहीं बहुओं को मार भी दिया जाता है दहेज के लिए..ये सिलसिला वर्षों से चला आ रहा और अभी वर्षों लग जाएंगे पूरी तरह से खत्म होने में..

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    1. दौलत के अमीर *कन्यादान में
      बेटी को भेंट *अनमोल देते है
      दौलत के *लालची लोग उस
      कन्यादान को *दहेज कहते है
      *दौलतमंद लोगों ने ही तो इस
      *क्रुर-दहेज को दिया है बढ़ावा
      *दहेज के लोभी लड़की के घर
      *दौलत के लिए बोलते हैं धावा
      बहू को समझने लगते है *बोझ
      नई-नई *मांग करते है वो रोज
      दहेज का *लोभ और *लालच
      लोगों पर इस कदर *चढ़ा है
      कम होने के बजाय ये *लालच
      दिन-पर-दिन तो और बढ़ा है
      खींचते रहते हैं वो हर बहू के
      बेबस *मां-बाप की रोज टांग
      आए दिन *बढ़ाते रहते अपनी
      जायज-नाजायज हर एक *मांग
      कब सीखेगा इन हादसों से *मानव
      रोज पांव पसार रहा *दहेज दानव
      🙏नरेश"राजन"हिन्दुस्तानी🙏

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  7. दौलत के अमीर *कन्यादान में
    बेटी को भेंट *अनमोल देते है
    दौलत के *लालची लोग उस
    कन्यादान को *दहेज कहते है
    *दौलतमंद लोगों ने ही तो इस
    *क्रुर-दहेज को दिया है बढ़ावा
    *दहेज के लोभी लड़की के घर
    *दौलत के लिए बोलते हैं धावा
    बहू को समझने लगते है *बोझ
    नई-नई *मांग करते है वो रोज
    दहेज का *लोभ और *लालच
    लोगों पर इस कदर *चढ़ा है
    कम होने के बजाय ये *लालच
    दिन-पर-दिन तो और बढ़ा है
    खींचते रहते हैं वो हर बहू के
    बेबस *मां-बाप की रोज टांग
    आए दिन *बढ़ाते रहते अपनी
    जायज-नाजायज हर एक *मांग
    कब सीखेगा इन हादसों से *मानव
    रोज पांव पसार रहा *दहेज दानव
    🙏नरेश"राजन"हिन्दुस्तानी🙏

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  8. दौलत के अमीर *कन्यादान में
    बेटी को भेंट *अनमोल देते है
    दौलत के *लालची लोग उस
    कन्यादान को *दहेज कहते है
    *दौलतमंद लोगों ने ही तो इस
    *क्रुर-दहेज को दिया है बढ़ावा
    *दहेज के लोभी लड़की के घर
    *दौलत के लिए बोलते हैं धावा
    बहू को समझने लगते है *बोझ
    नई-नई *मांग करते है वो रोज
    दहेज का *लोभ और *लालच
    लोगों पर इस कदर *चढ़ा है
    कम होने के बजाय ये *लालच
    दिन-पर-दिन तो और बढ़ा है
    खींचते रहते हैं वो हर बहू के
    बेबस *मां-बाप की रोज टांग
    आए दिन *बढ़ाते रहते अपनी
    जायज-नाजायज हर एक *मांग
    कब सीखेगा इन हादसों से *मानव
    रोज पांव पसार रहा *दहेज दानव
    🙏नरेश"राजन"हिन्दुस्तानी🙏

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  9. Yes, only then our sisters and daughters will feel safe. It can not be otherwise!

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