Sunday.. इतवार ..रविवार

इतवार (Sunday)

"बेवजह दिल पे बोझ न भारी रखिये, 
जिंदगी एक खूबसूरत जंग है, जारी रखिए.."❤ 

    *मेरा गांव*

वो सूरज की अरुणाई थी 
या धरती की तरुनाई थी ,
उन पेड़ों की उस सर सर में
जाने कैसी शहनाई थी..

कुछ ओस की भीगी बूंदों में
वो कैसी अदभुत सरगम थी ,
मन भीगा था , तन भीगा था
वसुधा थोड़ी शरमाई थी..

खेतो की पीली सरसों भी
यौवन पर इतराती थी ,
वो धान रोपती बाला भी
थोडा़ सा इठलाती थी..

पीपल  के बूढ़े पेड़ों में
एक धूप का बड़ा झरोखा था  ,
ये मेरे गांव का यौवन था
बचपन में मैंने देखा था..

काका काकी , दादा दादी
घंटो हमसे बतलाते थे ,
कुछ अपनी बाते कहते थे
कुछ नई कथा सिखलाते थे..

अब शहर शहर मै जाता हूं
पर कुछ ना ऐसा पाता हूं ,
मै शहर में आज अकेला हूं
वो गांव अभी भी मेला है ..

सुनीता गुप्ता
Sunday.. इतवार ..रविवार

 "मुश्किल कोई आ जाये तो ड़रने से क्या होगा, 
जीने की तरकिब निकालो मर जाने से क्या होगा.."❤ 

25 comments:

  1. Happy Sunday.......जिन्दगी से बङी जंग तो कुछ हो ही नही सकती है जैसा इंसान वैसी उसकी जंग कुछ हारे कुछ जीते, अब जिंदगी किसी फिल्म की इश्कृपट सी लगने लगी है.. इसके बारे मे जितना लिखों कम ही लगता है।🙏

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  2. आप सबको शुभ रविवार, जंग में तो जीत हार लगी ही रहती है और फिर जिंदगी की जंग तो सबसे बड़ी और सबके लिए है। हार से सबक और जीत से प्रेरणा लेकर आगे बढ़ना ही जीवन है। सुंदर कविता, गांव की यादें फिर ताजा हो गई।

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  3. अच्छी कविता 👌👌 वह दिन ज्यादा दूर नहीं जब लोग शहर से गांव की ओर जाएंगे सुकून ढूंढने के लिए.. रविवार और नवरात्रि की शुभकामनाएं 💐
    Very nice pic 😍

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  4. ग्रामीण दृश्य का प्राकृतिक वर्णन किया गया है ।शुभ रविवार।

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  5. बेहतरीन पंक्तियां
    शुभ रविवार।

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  6. गांव की तो बात ही है निराली
    प्रेम-स्नेह के फूलों की है डाली
    चिड़ियों की चहचहाहट है यहां
    पेड़ पर कूंकती कोयल है काली
    सरसों के पीले फुल लहराते हैं
    इठलाती रहे गैहूं कि हर बाली
    मिट्टी की महक सौंधी-सौंधी
    चहुंओर तो देखो है हरियाली
    कच्चे आंगन पर बैठ बतियाते
    पीते पुरी भरी चाय कि प्याली
    🙏नरेश"राजन"हिन्दुस्तानी🙏

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    1. बहुत सुंदर👌👌👌

      हर बात को कविता की तरह कहने का लाजवाब हुनर

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  7. वो गांव मेरा मुझे कहता है
    शहर जाकर क्यों रहता है
    वहां कि धुल-मिट्टी-ताप
    सब जाने तु क्यूँ सहता है
    गाँव मेरे तेरा मीठा पानी
    मेरे लहू संग ही बहता है
    तेरा प्यारा अपनापन तो
    मेरी धड़कन में ही रहता है
    पर क्या करूँ मजबूरी में
    ये गाँव छोड़ना पड़ा मुझे
    याद आती महक मिट्टी की
    दर्द होता रहता बड़ा मुझे
    रोजी-रोटी के चक्कर में
    होना पैरों पर खडा़ मुझे
    अपने परिवार को छोड़कर
    फैसला लेना था कड़ा मुझे🤔
    🙏नरेश"राजन"हिन्दुस्तानी🙏

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  8. Happy Sunday.. beautiful picc👌

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  9. छोटी सी कविता में बहुत कुछ समाहित है..सुंदर कविता 👌👌

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  10. Sweet sweet rupa😍😍👌👌👌❤️

    Happy Sunday....very nice poem

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  11. Very nice poem, wonderful pic 😘😘😘😘❤️

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