आशा का मीठा फल । जातक कथा

आशा का मीठा फल 

पूर्वकाल मैं जब काशी मैं ब्रह्मद॒त्त राज्य करता था,  बोधिसत्व का जन्म एक ग्रामीण ब्राह्मण के परिवार में हुआ। बड़े होने पर उन्होंने तक्षशिला मैं जाकर विद्याध्ययन किया और फिर संन्यास लेकर हिम्रालय पर्वत पर जाकर तप और ध्यान में मग्न हो गए। 

आशा का मीठा फल । जातक कथा

उस समय तैंतीस कोटि देवताओं के स्वर्ग मैं एक आत्मा का पतन हुआ और उसने एक सरोवर के बीच में एक कमल के भीतर कन्या रुप मैं जन्म लिया बोधिसत्व प्रत्तिदिन उस सरोवर में स्नान करने जाते थे। उन्होंने देखा कि अन्य सब कमल मुरझा कर झड़ जाते हैं, परन्तु एक नित्य बढ़ता ही रहता है। उन्होंने कौतूहल वश उसके पास जाकर देखा तो उसमें एक परम रूपवती कन्या दिखाई दी। बोधिसत्व उसे अपनी कुटी मैं ले गए और पुत्री की भाति उसका पालन करने लगे। 

इन्द्र ने देखा कि बोचिसत्व को कन्या के पालने मैं कष्ट होता होगा, अत वह उनके समीप आकर बोला “भगवान, मुझे क्या आदेश होता है?" बोधिसत्व ने कहा, “इस कन्या के लिये समुचित प्रबंध कर दो॥” इन्द्र के आदेश से आकाश से एक सुन्दर महल नीचे उतरा, जिसमें सब प्रकार के सुख साधन थे और वह कन्या उसमें रहने लगी। बोचिसत्व को कमल के विषय मैं आशंका होने पर ही यह कन्या मिली थी, अतः उन्होंने उसका नाम आशंका रख दिया। 

एक दिन एक लकड़हारा बोधिसत्व के आश्रम में दर्शनों के लिये आया। वहा उसने उस कन्या को देखा। यह लकड़हारा काशी का रहने वाला था। अपने नगर में जाकर उसने राजा से सब हाल कहा। कन्या के रूप की बड़ाई सुनकर राजा सेना लेकर उसे प्राप्त करने चल पड़ा। लकड़हारे ने मार्ग बताया। 

बोधिसत्व के आश्रम में जाकर राजा ने उनको प्रणाम किया। उनके साथ बातचीत करके और उपदेश सुनकर जब राजा चलने लगा, उस समय उसने बोधिसत्व से उस कन्या कै विषय में पूछा। बोधिसत्व ने कहा "वह मेरी पुत्री है ” राजा ने निवेदन किया, "है "तपस्वी! वन में रहकर कनयाओं का पालन पौषण ठीक रीति से नहीं हो सकता है। यदि इस सुकुमारी कन्या को आप मुझे दे दें तो मैं इसे सब प्रकार से सुखी कर सकता हूँ।''

बोधिसत्व ने कहा, “हे राजा! यदि तू इस कन्या का नाम जानता हो तो मुझै बता। मैं उसे तेरे हवाले कर दूगा।“ राजा ने मंत्रियों की सलाह से सुन्दर सुन्दर नामों की सूचियाँ प्रस्तुत कीं, परन्तु बोधिसत्व ने सबको “यह नहीं है'' कहकर अमान्य कर दिया 

एक वर्ष तक राजा अपनी सेना सहित उस ठडे बर्फीले हिमालय पर्वत पर आशा लगाए पड़ा रहा। उसके हाथी घोड़े और बहुत से मनुष्य सर्दी के कारण मर गए। कुछ को जन्गली जानवर खा गये। कुछ रोग ग्रस्त हो गए और कुछ अच्छे औजन के अभाव से अधमरे हो गए। 

अब राजा एकदम निराश हो गया और वापिस लौटने की तयारी करने लगा। वह महल के नीचे इसलिए टहल रहा था कि यदि वह लड़की खिड़की से झाके तो उसे अपने लॉट जाने की बात बता दे। हुआ भी वैसा ही। जब लड़की खिड़की पर आई तो उसने अपनी यात्रा की बात उससे कही।

उस समय उस लड़की ने ऊपर दी हुई गाथा सुनाई जिसे सुनकर वह फिर एक वर्ष के लिये ठहर गया। नन्दन कानन में आशावती नामक लता है, जिसमें एक हजार वर्ष के पश्चात फल लगते हैं। देवता उन फलों के लिये धैयैपूर्वक प्रतीक्षा करते हैं। हे राजा! आशा रख! आशा का फल मधुर होता है। एक पक्षी आशा लगाए रहता हैं और कभी पराजय स्वीकार नहीं करता। अभीप्सित चाहे कितनी ही दूर हो, परन्तु अन्त मैं उसे विजय अवश्य मिलती है। है राजा! आशा रख! आशा का फल मघुर होता है। 

इसी प्रकार वह तीन वर्ष तक बोधिसत्व के आश्रम में रहा। जब भी वह निराश होकर चलने की बात सोचता तभी वह लड़की उसे आशा और प्रयत्न विषयक कोई गाथा सुना देती थी और वह ठहर जाता था। इस बार वह बिलकुल निराश हो गया था। हजारों नामों की सूचिया बना बनाकर उसने बोधिसत्व के सामने रखीं, परन्तु वे सब व्यर्थ गई। उस लड़की का नाम जानना एक बहुत कठिन पहेली हो गया। अतः लौट जाने का निश्चय करके वह खिड़की के सामने उस लड़की से अंतिम बात कहने के लिए गया। लड़की के आने पर उसने कहा, “मेरी सेना नष्ट हो गई है। मेरे खाद्य भंडार समाप्त हो गए हैं। मुझे आशंका है कि कहीं मेरा जीवन ही नष्ट न हो जाय। लौट जाने में ही मेरा मंगल है।" 

लड़की खिडकी पर से खिल खिलाकर हंस पड़ी। 

अरे! मेरा नाम तो तुम जानते हो। फिर इतने परेशान क्यों हो रहै हो। राजा ने कहा, “कहाँ? कौन सा नाम?" 

लड़की ने कहा, “अभी अभी तो तुमने मेरा नाम लिया था।” 

राजा ने अपने शब्दों पर ध्यान सै विचार किया और समझ गया कि इस लड़की का नाम आशंका के अतिरिक्त और कुछ नहीं हो सकता। वह प्रसन्‍न होता हुआ बोधिसत्व के पास आया और उन्होंने उनकी पुत्री का नाम बताया। बोधिसत्व ने कहा, “जिस समय तुम्हें उसका नाम मालूम हो गया उसी समय सै मेरे वचन के अनुसार मेरी पुत्री तुम्हें समर्पित हो गई। जाओ उसे ले जाकर सुख पूर्वक जीवन व्यत्तीत करो।” 

राजा महल में गया और थोड़ी ही देर में आशंका के साथ आकर बोधिसत्व को प्रणाम किया और उनका आशीर्वाद प्राप्त कर अपने बचे हुये साथियों के साथ काशी लौट गया। उसे आशा का फल मिल चुका था।

English Translate

Sweet fruit of hope

In the past, when Brahmadatta ruled in Kashi, the Bodhisattva was born in the family of a rural Brahmin. When he grew up, he went to Takshashila and studied and then after taking sannyas, he went to the Himalaya mountain and became engrossed in austerity and meditation.

At that time a soul fell in the heaven of thirty-three categories of deities and took birth in the form of a girl inside a lotus in the middle of a lake. Bodhisattvas used to go to bathe in that lake every day. He saw that all the other lotuses wither and fall off, but one continues to grow. When he went to him out of curiosity, he saw a supremely beautiful girl in him. The Bodhisattva took her to his hut and followed her like a daughter.

Indra saw that the Bochisattva would be in trouble for the girl, so he came near her and said, "Lord, what order do I have?" The Bodhisattva said, "Make proper arrangements for this girl." On the orders of Indra, a beautiful palace came down from the sky, which had all kinds of pleasures and that girl started living in it. Bodhisatva got this girl only after having doubts about the lotus, so he named her as Aapkheb.

One day a woodcutter came to the ashram of a Bodhisattva to have darshan. There he saw that girl. This woodcutter was a resident of Kashi. Going to his city, he told the king everything. Hearing the magnificence of the girl's form, the king took the army and went to get her. The woodcutter told the way.

Going to the ashram of the Bodhisattva, the king bowed to him. After talking with them and listening to the sermon, when the king started walking, at that time he asked the Bodhisattva about that girl. The Bodhisattva said, "She is my daughter." The king requested, "He is an ascetic! Staying in the forest, girls cannot be nurtured properly. If you give this sweet girl to me, I will be happy in every way. I can do.''

The Bodhisattva said, "O king! If you know the name of this girl, then tell me. I will hand it over to you." The king, on the advice of ministers, presented lists of beautiful names, but the Bodhisattva rejected them all saying "it is not".

For a year, the king along with his army remained hopeful on that cold snowy Himalayan mountain. His elephants, horses and many humans died because of the cold. Some were eaten by wild animals. Some got diseased and some became infirm due to lack of good food.

Now the king was very disappointed and started preparing to return. He was walking under the palace so that if the girl looked through the window, she would tell him about going to his lot. The same thing happened. When the girl came to the window, she told her about her journey.

At that time the girl narrated the above story, listening to which she again stayed for a year. In Nandan Kanan there is a creeper named Ashavati, which bears fruits after one thousand years. The gods wait patiently for those fruits. O king! Have hope! The fruit of hope is sweet. A bird keeps hope and never accepts defeat. No matter how far the aspirant may be, but in the end he must win. It's king! Have hope! The fruit of hope is sweet.

Similarly he stayed in the ashram of the Bodhisattva for three years. Whenever he thought of walking in despair, that girl would tell him a story about hope and effort and he would stop. This time he was completely disappointed. He made a list of thousands of names and placed them in front of the Bodhisattva, but all of them were in vain. Knowing the name of that girl became a very difficult puzzle. So, deciding to return, he went in front of the window to say the last thing to the girl. When the girl came, she said, "My army is destroyed. My food stores have run out. I fear that my life may be destroyed. It is my pleasure to return."

The girl burst out laughing at the window.

Hey! You know my name. Then why are you getting so upset? The king said, "Where? which name?"

The girl said, "You took my name just now."

The king considered his words carefully and understood that the name of this girl could be nothing but apprehension. He was pleased and came to the Bodhisattva and told the name of his daughter. The Bodhisattva said, "The moment you came to know her name, at that very moment my daughter was surrendered to you according to my word. Go take it and live your life happily."

The king went to the palace and in no time came with apprehension and bowed down to the Bodhisattva and after receiving his blessings returned to Kashi with his remaining companions. He had got the fruits of hope.

16 comments:

  1. गड़बड़ी लिंकडिन की है

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  2. निराशा की आशंका में आशा मिल गयी..😊

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  3. इन कथाओं में भगवान बुद्ध के पूर्व जन्मों की कथाएं हैं और हर कथाओं के माध्यम से कोई ना कोई संदेश दिया गया है। जातक कथाएं बौद्ध ग्रंथ त्रिपिटक का भाग हैं। जातक कथाओं को विश्व की प्राचीनतम लिखित कहानियों में गिना जाता है। जिसमें लगभग 550 कहानियों का संग्रह है। इन कथाओं की निश्चित संख्या का बोध नहीं है। इन कथाओं में मनोरंजन के माध्यम से नीति और धर्म को समझाने का प्रयास किया गया है।

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