ईश्वर का प्रेम - Ishwar ka prem

ईश्वर का प्रेम

ईश्वर का प्रेम / Ishwar ka prem ~  Akbar Birbal Story ~ अकबर बीरबल

बादशाह अकबर सभी धर्मों के प्रति आदर भाव रखते थे। अपनी प्रजा में वे कभी धर्म के आधार पर भेदभाव नहीं करते थे। हिंदू धर्मशास्त्रों का तो उन्हें अच्छा-खासा ज्ञान था। 

उदार और सहिष्णु स्वभाव के होने के साथ वे विनोदी स्वभाव के भी थे और बीरबल के साथ हल्की-फुल्की फुलझड़ियों का आदान-प्रदान करते रहते थे।

एक दिन उन्होंने हास-परिहास के दौरान बीरबल से पूछा,   “एक बात बताओ, श्रीकृष्ण हर जगह अपने भक्तों की रक्षा करने खुद क्यों भागते थे? उनके पास कोई नौकर-चाकर नहीं थे क्या?” बादशाह की बात सुनकर बीरबल मुस्कुराए। 

वे समझ गए कि बादशाह का मजाक करने का मन है। उधर बादशाह कहते चले गए, “ये देवता बड़े फुर्तीले भी होते हैं। किसी भक्त ने बुलाया नहीं कि दौड़े चले आते हैं, जैसे फुर्सत में ही बैठे हों।’ 

बीरबल बोले, “जहांपनाह, आपके सवाल का जवाब तुरंत देना मुमकिन नहीं है। मुझे कुछ वक्त दीजिए। मैं ठीक वक्त पर आपकी बात का माकूल जवाब दूंगा।”

बादशाह हँस दिए। वैसे भी वे अपनी बात को लेकर गम्भीर नहीं थे।   बीरबल ने बादशाह के सामने अपने बात स्पष्ट करने के लिए एक योजना बनाई।

वे एक मूर्तिकार के पास पहुंचे और उसे बादशाह के पोते खुर्रम की एक मोम की मूर्ति बनाने को कहा। बादशाह को खुर्रम से बहुत प्रेम था। मूर्ति तैयार हो जाने पर वे उसे लेकर बादशाह के महल में जा पहुँचे और उनके नौकरों से उस मूर्ति को खुर्रम के कपड़े पहना देने को कहा। नौकरों ने तुरंत बीरबल की आज्ञा पर अमल किया। 

  अब कोई भी अगर दूर से खर्रम की उस मूर्ति को देखता, तो उसे असली खुर्रम ही समझता। फिर बीरबल ने नौकरों को कुछ सलाह दी। अगले दिन बीरबल बादशाह के साथ शाही बगीचे में टहलने गए। 

जैसे ही वे झील के पास आए, बीरबल ने नौकर को संकेत किया। उस मूर्ति को लेकर छिपे बैठे नौकर ने तुरंत ही वह मूर्ति झील के पानी में फेंक दी। बादशाह को दूर से देखकर ऐसा लगा, जैसे उनका पोता खुर्रम ही झील में गिर गया हो। 

एक भी पल इंतजार किए बिना बादशाह भागते हुए आगे बढे और उन्होंने झील में छलांग लगा दी। जब वे तेजी से तैरते हुए उस जगह पर पहुंचे, तो पाया कि वह तो एक मूर्ति है।

ईश्वर का प्रेम / Ishwar ka prem ~  Akbar Birbal Story ~ अकबर बीरबल

तब तक बीरबल भी वहाँ आ गए थे।   बीरबल की मदद से बादशाह झील के बाहर निकल आए। तभी बीरबल उनसे पूछ बैठे, “जहांपनाह, आपके पास नौकरों की कोई कमी तो है नहीं।

फिर इस मूर्ति को गिरते देखकर आपने पानी में खुद छलांग क्यों लगा दी?   आपको खुद पानी में कूद जाने की क्या जरूरत थी?” “क्या बात कर रहे हो, बीरबल?” बादशाह बोले, “खुर्रम हमारा प्यारा पोता है।

क्या हम उसे झील में डूबने से बचाने के लिए अपने नौकरों का इंतजार करते? अगर इसी बीच वह डूब जाता तो? वह तो अच्छा हुआ कि यह बुत ही था!” यह मूर्ति मैंने ही बनवाई थी!” बीरबल ने खुलासा किया। “क्यों?” बादशाह ने बड़ी हैरत से पूछा। 

“आपने खुर्रम को बचाने के लिए नौकरों का इंतजार नहीं किया, क्योंकि आप उससे बहुत मोहब्बत करते हैं। इसी तरह देवता भी अपने भक्तों से प्रेम करते हैं और उनकी रक्षा के लिए दौड़े आते हैं। भक्तों को बचाने के लिए देवता समय भी नहीं देखते।” बीरबल ने अपनी बात स्पष्ट की।


English Translate

Ishwar ka prem

Emperor Akbar had respect for all religions.  He never discriminated on the basis of religion among his subjects.  He had a lot of knowledge of Hindu theology.

 Being of a generous and tolerant nature, he was also of a humorous nature and used to exchange light-hearted Sparklers with Birbal.

ईश्वर का प्रेम / Ishwar ka prem ~  Akbar Birbal Story ~ अकबर बीरबल

 One day he asked Birbal during a joke, "Tell me one thing, why did Shrikrishna run away to protect his devotees everywhere?"  Didn't they have any servants? "  Birbal smiled on hearing the king.

 They understood that the king had a mind to make fun of.  On the other hand, the emperor went on to say, "These gods are also very agile.  No devotee has called that the runes come, as if sitting in leisure. '

 Birbal said, "Jahanpanah, it is not possible to answer your question immediately.  Give me some time  I will respond to your speech at the right time. "

 The emperor laughed.  Anyway, he was not serious about what he said.  Birbal made a plan to make his point clear to the emperor.

 He approached a sculptor and asked him to make a wax statue of Khurram, the grandson of the emperor.  The emperor loved Khurram very much.  When the idol was ready, he took it to the king's palace and asked his servants to put the idol in Khurram's clothes.  The servants immediately obeyed Birbal's orders.

   Now if anyone would have seen that idol of kharram from a distance, he would have considered it to be the real Khurram.  Birbal then gave some advice to the servants.  The next day Birbal went for a walk in the royal garden with the emperor.

 As they approached the lake, Birbal signaled to the servant.  The servant sitting hidden with that idol immediately threw the idol in the lake water.  Looking at the emperor from a distance, it seemed as if his grandson Khurram had fallen into the lake.

 Without waiting a single moment, the king rushed forward and leaped into the lake.  When they swam to the spot, they found that it was an idol.

 By then Birbal had also arrived there.  With the help of Birbal, the king came out of the lake.  Then Birbal asked him, “Jahanpanah, do you have any shortage of servants.

 Then why did you jump in the water yourself after seeing this idol fall?  Why did you need to jump into the water yourself? "  "What are you talking, Birbal?"  The king said, "Khurram is our beloved grandson.

 Would we wait for our servants to save her from drowning in the lake?  Had he drowned in the meantime?  It was good that it was a fetish! "  This idol was made by me only! "  Birbal revealed.  "Why?"  The king asked with great surprise.

 “You did not wait for the servants to save Khurram, because you love him a lot.  Similarly, the gods also love their devotees and come to their rescue.  The gods do not even see time to save the devotees. "  Birbal made his point clear.

20 comments:

  1. सचमुच आज की कहानी बेहतरीन है और सनातन धर्म की विराटता का संदेश देती है।

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  2. उत्तम लिखाबट कहानी की,,धन्यबाद जी

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  3. अकबर को समझाने के लिए बीरबल बड़ा ही सटीक उपाय ढूंढ लेते हैं👌👌👍

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  4. Birbal ka jwab nahi...kya tareeka doondhte the baaton ko samjhane ka👏👏👏

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  5. बीरबल की हाजिरजवाबी तथा बुद्धिमत्ता लाज़वाब है।

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  6. Majedaar Story 👏👏👏👏👏

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