ओम्कारेश्वर ज्योतिर्लिंग ~ Omkareshwar Jyotirlinga

 ओम्कारेश्वर ज्योतिर्लिंग ~ Omkareshwar Jyotirlinga

नर्मदा नदी के मध्य ओंकार पर्वत पर स्थित ओम्कारेश्वर ज्योतिर्लिंग ( Omkareshwar Jyotirlinga ) मंदिर हिंदुओं की चरम आस्था का केंद्र है। ओम्कारेश्वर ज्योतिर्लिंग ( Omkareshwar Jyotirlinga ) का यह शिव मंदिर भारत के 12 ज्योतिर्लिंगों में एक माना जाता है। ओम्कारेश्वर ज्योतिर्लिंग ( Omkareshwar Jyotirlinga ) मंदिर नर्मदा नदी के बीच मांधाता या शिवपुरी नामक द्वीप पर स्थित है।सदियों पहले भील जनजाति ने इस जगह पर लोगों की बस्तियां बसाईऔर अब यह जगह अपनी भव्यता और इतिहास से प्रसिद्ध है। यह द्वीप हिंदू पवित्र चिन्ह ऊं के आकार में बना है। यहां दो मंदिर स्थित है -ओम्कारेश्वर ज्योतिर्लिंग (Omkareshwar Jyotirlinga ) और अमरेश्वर (Amareshwar)

ओम्कारेश्वर ज्योतिर्लिंग ~ Omkareshwar Jyotirlinga

हिंदू धर्म पुराणों के अनुसार शिवजी जहां-जहां स्वयं प्रकट हुए हैं उन 12 स्थानों पर स्थित शिवलिंगों को ज्योतिर्लिंगों के रूप में पूजा जाता है। हिंदुओं में मान्यता है कि जो व्यक्ति सुबह और शाम के समय इन 12 ज्योतिर्लिंगों का नाम लेता है, उनके सात जन्मों का किया हुआ पाप इन ज्योतिर्लिंग के स्मरण मात्र से ही मिट जाता है। यहां ओम्कारेश्वर ज्योतिर्लिंग के साथ ही अमलेश्वर ज्योतिर्लिंग भी है। इन दोनों शिवलिंगों की गणना एक ही ज्योतिर्लिंग में की गई है।

 इतिहास

इस मंदिर में शिव भक्त कुबेर (देवताओं के धनपति) ने तपस्या की थी और शिवलिंग की स्थापना की थी। कुबेर के स्नान के लिए शिवजी ने अपने जटा के बाल से कावेरी नदी उत्पन्न की थी। यह नदी कुबेर मंदिर के बाजू से बह कर नर्मदा नदी में मिलती है, जिसे छोटी परिक्रमा में जाने वाले भक्तों ने प्रत्यक्ष प्रमाण के रूप में देखा है। यही कावेरी नदी ओमकार पर्वत का चक्कर लगाते हुए संगम पर वापस नर्मदा नदी से मिलती है, इसे ही नर्मदा कावेरी का संगम कहते हैं।

यहां के ज्यादातर मंदिरों का निर्माण पेशवा राजाओं के द्वारा ही किया गया है। ऐसा बताया जाता है कि भगवान ओमकारेश्वर का मंदिर भी उन्हीं पेशवाओं द्वारा बनवाया गया है। इस मंदिर में दो कमरों के बीच से होकर जाना पड़ता है, क्योंकि भीतर अंधेरा रहता है इसलिए हमेशा दीपक जलता रहता है।

ओम्कारेश्वर ज्योतिर्लिंग ~ Omkareshwar Jyotirlinga

ओमकारेश्वर मंदिर किसी मनुष्य द्वारा गढ़ा, तराशा या बनाया हुआ नहीं है, बल्कि यह प्राकृतिक शिवलिंग है। इसके चारों ओर हमेशा जल भरा रहता है। प्राय: किसी मंदिर में लिंग की स्थापना गर्भ गृह के मध्य में की जाती है और उसके ठीक ऊपर शिखर होता है, किंतु यह ओमकारेश्वर लिंग मंदिर के गुंबद के नीचे नहीं है। इसकी एक विशेषता यह भी है कि मंदिर के ऊपरी शिखर पर भगवान महाकालेश्वर की मूर्ति लगी है। कुछ लोगों की मान्यता है कि यह पर्वत ओंकार रुप में है। परिक्रमा के अंतर्गत बहुत से मंदिर विद्यमान होने के कारण भी यह पर्वत ओंकार रूप में दिखाई पड़ता है। यहां पर भगवान परमेश्वर को चने की दाल चढ़ाने की परंपरा है।

 ओमकारेश्वर दर्शन

नर्मदा किनारे जो बस्ती है उसे विष्णुपुरी कहते हैं। यहां नर्मदा जी पर पक्का घाट है। सेतु अथवा नाव द्वारा नर्मदा जी को पार करके मन्धाता द्वीप पर पहुंचा जाता है। उस ओर भी पक्का घाट है। यहां घाट के पास नर्मदा जी में कोटि तीर्थ या चक्रतीर्थ माना जाता है। यहीं स्नान करके यात्री सीढ़ियों से ऊपर चढ़कर ओमकारेश्वर मंदिर में दर्शन करने जाते हैं।

धार्मिक दृष्टि से मांधाता टापू में ओमकारेश्वर की एक छोटी और एक बड़ी दो परिक्रमा की जाती हैं। ओमकारेश्वर क्षेत्र की संपूर्ण तीर्थयात्रा 3 दिनों में पूरी की जाती है। मांधाता द्वीप में कोटि तीर्थ पर स्नान करने के बाद कोटेश्वर महादेव, हाटकेश्वर त्रंबकेश्वर, गायत्रीश्वर, गोविंदेश्वर, तथा सावित्रीश्वर आदि देवों के दर्शन किए जाते हैं। तदनंतर भूरेश्वर, श्री कालिका माता और पांच मुख वाले गणपति सहित नंदी का दर्शन करने के बाद ओमकारेश्वर- मंदिर महादेव का दर्शन प्राप्त होता है। ओमकारेश्वर मंदिर में शुकदेव जी, मंधातेश्वर, मनागणेश्वर, श्री द्वारिकाधीश, नर्मदेश्वर भगवान, नर्मदा देवी, महाकालेश्वर भगवान, वैद्यनाथेश्वर, सिद्धेश्वर, रामेश्वर, जलेश्वर आदि का दर्शन करने के बाद विशल्या - संगम तीर्थ पर विशल्येश्वर का दर्शन किया जाता है।

मान्यता

नर्मदा क्षेत्र में ओमकारेश्वर सर्वश्रेष्ठ तीर्थ है। शास्त्रीय मान्यता अनुसार, कोई भी तीर्थयात्री देश के भले ही सारे तीर्थ कर ले, किन्तू जब तक हुआ ओमकारेश्वर आकर किए गए तीर्थों का जल लाकर यहां नहीं चढ़ाता, उसके किए गए सारे तीर्थ अधूरे माने जाते हैं। ओमकारेश्वर तीर्थ के साथ नर्मदा जी का भी विशेष महत्व है। शास्त्रीय मान्यता अनुसार, यमुना जी में 15 दिन का स्नान तथा गंगा जी में 7 दिन के स्नान से जो फल प्राप्त होता है उतना पुण्य फल नर्मदा जी के दर्शन मात्र से ही प्राप्त हो जाता है।

तीर्थ क्षेत्र

यहां 68 तीर्थ हैंऔर 33 कोटि देवता परिवार सहित निवास करते हैं तथा दो ज्योति स्वरूप लिंगों सहित 108 प्रभावशाली शिवलिंग हैं।

ओमकारेश्वर तीर्थ क्षेत्र में 24 अवतार, माता घाट, सीता वाटिका, धावड़ी कुंड, मार्कंडेय शिला, मार्कंडेय संयास आश्रम, अन्नपूर्णाश्रम, विज्ञान शाला, बड़े हनुमान, खेड़ापति हनुमान, ओंकार मठ, माता आनंदमई आश्रम, ऋण मुक्तेश्वर महादेव, गायत्री माता मंदिर, सिद्धनाथ गौरी, सोमनाथ, आड़े हनुमान, माता वैष्णो देवी मंदिर, चांद सूरज दरवाजे, वीर कला विष्णु मंदिर, ब्रह्मेश्वर मंदिर, गांव के गजानन महाराज का मंदिर, काशी विश्वनाथ, नरसिंह टेकरी, कुबेरेश्वर महादेव, चंद्रमोलेश्वर महादेव के मंदिर भी दर्शनीय हैं।

ओम्कारेश्वर ज्योतिर्लिंग ~ Omkareshwar Jyotirlinga

ओम्कारेश्वर ज्योतिर्लिंग की कथा

ओम्कारेश्वर ज्योतिर्लिंग को शिव महापुराण में 'परमेश्वर लिंग' कहा गया है। यह परमेश्वर लिंग इस तीर्थ में कैसे प्रकट हुई अथवा इसकी स्थापना कैसे हुई, इस संबंध में शिवपुराण की कथा इस प्रकार है-

एक बार मोनी श्रेष्ठ घूमते हुए गिरिराज विंध्य पर पहुंचे । विंध्य ने बड़े आदर सम्मान के साथ उनकी पूजा की। 'मैं सर्वगुण संपन्न हूं , मेरे पास हर संपदा है, किसी वस्तु की कोई कमी नहीं', इस प्रकार के भाव को मन में लिए विंध्याचल नारद जी के समक्ष खड़े हो गए। अहंकार नाशक श्री नारद जी विंध्याचल की अभिमान भरी बातें सुनकर बोले-"तुम्हारे पास सब कुछ है, किंतु मेरु पर्वत तुमसे बहुत ऊंचा है, उस पर्वत के शिखरों का भाग देवताओं के लोकों तक पहुंचा हुआ है। मुझे लगता है तुम्हारे शिखर के भाग वहां तक नहीं पहुंच पाएंगे।"इस प्रकार कहकर नारद जी वहां से चले गए। उनकी बात सुनकर विंध्याचल को बहुत पछतावा हुआ और वह मन ही मन शोक करने लगा। उसने निश्चय किया कि अब वह विश्वनाथ भगवान सदाशिव की आराधना और तपस्या करेगा। इस प्रकार विचार करने के बाद वह भगवान शंकर की सेवा में चला गया, जहां पर साक्षात ओंकार विद्यमान हैं। उस स्थान पर पहुंच कर उसने प्रसन्नता और प्रेमपूर्वक शिव के पार्थिव मूर्ति (मिट्टी की शिवलिंग) बनाई और पूजन करने लगा।

वह शिवजी की आराधना- पूजा करने के बाद निरंतर उनके ध्यान में तल्लीन हो गया और अपने स्थान से इधर-उधर नहीं हुआ। उसके कठोर तपस्या को देखकर भगवान शिव प्रसन्न हो गए। उन्होंने विंध्याचल को अपने दिव्य स्वरुप प्रकट कर दिखाया, जिसका दर्शन बड़े-बड़े योगियों के लिए भी अत्यंत दुर्लभ होता है।

सदाशिव भगवान प्रसन्नतापूर्वक विंध्याचल से बोले

-"विंध्य मैं तुम पर प्रसन्न हूं मैं अपने भक्तों को उनका अभिष्ट वर प्रदान करता हूं, इसलिए तुम वर मांगो।"विंध्य ने कहा -'देवेश्वर महेश, यदि आप मुझ पर प्रसन्न है तो हमारे कार्य को सिद्ध करने वाली वह अभीष्ट बुद्धि हमें प्रदान करें'। विंध्याचल की याचना को पूरा करते हुए भगवान शिव ने उसे कहा कि,-पर्वतराज में तुम्हें व उत्तम वर (बुद्धि) प्रदान करता हूं, तुम जिस प्रकार का काम चाहो वैसा कर सकते हो, मेरा आशीर्वाद तुम्हारे साथ है!

भगवान शिव ने विंध्य को जब उत्तम वर दे दिया तब कुछ देवतागण और ऋषि भी वहां पहुंच गए।इन सभी अनुरोध किया कि वहां स्थित ज्योतिर्लिंग 200 रूपों में विभक्त हो जाए। इन के अनुरोध पर ही ज्योतिर्लिंग  दो स्वरूपों में विभक्त हुआ। जिसमें एक प्रणव लिंग ओमकारेश्वर तथा दूसरा पार्थिव लिंग ममलेश्वर ज्योतिर्लिंग के नाम से प्रसिद्ध हुआ।


English Translate


Omkareshwar Jyotirlinga

 Omkareshwar Jyotirlinga Temple situated on the Omkar Parvat in the middle of the Narmada River is the center of extreme faith of Hindus. This Shiva temple of Omkareshwar Jyotirlinga (Omkareshwar Jyotirlinga) is considered one of the 12 Jyotirlingas in India. Omkareshwar Jyotirlinga (Omkareshwar Jyotirlinga) temple is situated on an island called Mandhata or Shivpuri amidst the river Narmada. The Bhil tribe settled people in this place centuries ago and now this place is famous for its grandeur and history. The island is built in the shape of the Hindu sacred symbol Hoon. There are two temples located here - Omkareshwar Jyotirlinga (Omkareshwar Jyotirlinga) and Amareshwar (Amareshwar)

ओम्कारेश्वर ज्योतिर्लिंग ~ Omkareshwar Jyotirlinga

 According to Hinduism Puranas, Shiva lingas are worshiped as Jyotirlingas located at the 12 places where Shiva appeared himself. There is a belief among Hindus that the person who takes the name of these 12 Jyotirlingas in the morning and evening, the sins committed by his seven births are erased only by the remembrance of these Jyotirlingas. Here is Omkareshwar Jyotirlinga as well as Amaleshwar Jyotirlinga. Both these Shivalingas have been counted in the same Jyotirlinga.

History

 In this temple, the Shiva devotee Kubera (Dhanapati of the Gods) did penance and established the Shivalinga. To bathe Kubera, Shiva created the river Kaveri from the hair of his jata. This river flows from the side of the Kubera temple and joins the Narmada River, which is seen by the devotees going in small circles as a direct evidence. This Kaveri river revolves around Omkar Parvat and meets the river Narmada at the confluence, it is called the confluence of the Narmada Kaveri.

 Most of the temples here have been built by the Peshwa kings. It is said that the temple of Lord Omkareshwar has also been built by the same Peshwas. In this temple one has to go through two rooms, because there is darkness inside, so the lamp always keeps on burning.

 The Omkareshwar temple is not carved, carved or built by any human, but is a natural Shivalinga. There is always water around it. Often in a temple, the linga is established in the middle of the sanctum sanctorum and has a peak just above it, but it is not under the dome of the Omkareshwar Linga temple. It is also a feature that the statue of Lord Mahakaleshwar is placed on the upper peak of the temple. Some people believe that this mountain is in Onkar form. Due to the presence of many temples under the parikrama, this mountain also appears in the form of Omkar. There is a tradition of offering gram dal to Lord Parmeshwar here.

 Omkareshwar Darshan

 The settlement which is on the banks of Narmada is called Vishnupuri. There is a firm ghat on Narmada ji. Narmada ji is crossed by the bridge or boat and reached the island of Mandhata. There is a firm ghat on that side too. The Narmada near the Ghat is considered to be the Koti Tirtha or Chakratirtha. After taking a bath here, the passengers climb up the stairs and go to see Omkareshwar temple.

 In religious terms, a small and a big two circumambulation of Omkareshwar is done in Mandhata island. The entire pilgrimage to Omkareshwar region is completed in 3 days. After bathing at Koti Tirtha in Mandhata Island, deities like Koteshwar Mahadev, Hatkeshwar Trimbakeshwar, Gayatrieshwar, Govindeshwar, and Savitrieshwar are seen. Subsequently, after seeing Nandi with Bhureshwar, Shri Kalika Mata and five-faced Ganapati, one gets a glimpse of Omkareshwar-Mahadev temple. After visiting Shukdev ji, Mandhateshwar, Managaneswar, Sri Dwarikadhish, Narmadeshwar Bhagwan, Narmada Devi, Mahakaleshwar Bhagwan, Vaidyanatheshwar, Siddheshwar, Rameshwar, Jaleshwar etc. in the Omkareshwar temple after visiting Vishalya-Sangam shrine.

 Recognition

 Omkareshwar is the best shrine in the Narmada region. According to classical belief, any pilgrim may do all the pilgrimages of the country, but till the time that Omkareshwar does not bring the water of the pilgrims here and offer it, all the pilgrimages done there are considered incomplete. Narmada ji also has special significance with Omkareshwar Tirtha. According to classical belief, the fruit that is obtained by taking a 15-day bath in Yamuna ji and a 7-day bath in Ganga ji, is achieved only by the sight of Narmada ji.

 Pilgrimage area

 There are 68 pilgrimages and 33 people residing with the Koti Devata family and 108 impressive Shivalingas with two Jyoti Swarga lingas.

 24 avatars in Omkareshwar pilgrimage area, Mata Ghat, Sita Vatika, Dhavadi Kund, Markandeya Shila, Markandeya Sanyas Ashram, Annapurnashram, Vigyan Shala, Bade Hanuman, Khedapati Hanuman, Omkar Math, Mata Anandamai Ashram, Loan Mukteshwar Mahadev, Gayatri Mata Mandir, Siddhanath The temples of Gauri, Somnath, Adde Hanuman, Mata Vaishno Devi Temple, Chand Suraj Doors, Veer Kala Vishnu Temple, Brahmeshwar Temple, Village Gajanan Maharaj's Temple, Kashi Vishwanath, Narasimha Tekri, Kubereshwar Mahadev, Chandramoleshwar Mahadev Temple are also worth visiting.

Story of Omkareshwar Jyotirlinga

 Omkareshwar Jyotirlinga has been called 'Parmeshwar Linga' in Shiva Mahapuran. The story of Shivpuran in relation to how this Parmeshwar Linga appeared in this shrine or how it was established is as follows-

 Once Moni Shrestha reached Giriraj Vindhya while walking. Vindhya worshiped him with great respect. 'I am full of all virtues, I have all the wealth, there is no shortage of anything', Vindhyachal stood in front of Narada ji with this kind of feeling in mind. Hearing the boisterous words of Shri Narada, Vindhyachal, the egoist said, "You have everything, but Mount Meru is much higher than you, the top of the peaks of that mountain has reached the realms of the gods. I think the portions of your summit are there." Will not reach. ”Saying thus Narada ji left from there. Hearing his words, Vindhyachal was very sorry and he started mourning in his heart. He decided that now he would worship and meditate on Vishwanath Lord Sadashiva. After considering this way, he went to the service of Lord Shankar, where Sakshat Omkar is present. Upon reaching that place, he delighted and lovingly made the Parthiv Murti (clay Shivalinga) of Shiva and started worshiping.

 After worshiping Lord Shiva, he was constantly engrossed in his meditation and did not move from his place. Lord Shiva was pleased to see his harsh penance. He showed his divine form to Vindhyachal, whose philosophy is very rare even for big yogis.

 Sadashiva God happily spoke to Vindhyachal

 - "Vindhya I am pleased with you. I offer my devotees their favored groom, so you ask for the bride." Vindhya said - 'Deveshwar Mahesh, if you are happy with me, that desired wisdom that can prove our work to us. give'. While completing the petition of Vindhyachal, Lord Shiva said to him that, in the Parvataraja, I give you the best groom (wisdom), you can do whatever kind of work you want, my blessings are with you!

 When Lord Shiva gave the best groom to Vindhya, then some gods and sages also reached there. All these requested that the Jyotirlinga situated there should be divided into 200 forms. On the request of these, the Jyotirlinga divided into two forms. In which one Pranav Linga Omkareshwar and the other Parthiv Linga became famous as Mamaleshwar Jyotirlinga.

21 comments:

  1. Har har Mahadev...Detail information about Omkareshwar Jyotirlinga Temple ... Apni bhartiya Sanskrity ka aise Prachar Prasar karte rahe...Om Namah Shiway...

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  2. Om Namah Shiway...Detail information....

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  3. Jai bhole ki... mahashivratri b aane wali ha

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  4. जय महाकाल, हर हर महादेव
    महाकाल के साथ ही लोग ओंकारेश्वर महादेव का भी दर्शन करते हैं। ओंकारेश्वर महादेव मंदिर की बहुत ही विस्तृत और ज्ञानवर्धक जानकारी। दर्शन तो लोग कर लेते हैं लेकिन पुरातात्विक, पौराणिक और ऐतिहासिक जानकारी कम लोगों को ही होती है। ब्लॉग के माध्यम से हमें अवगत कराने के लिए बहुत बहुत बधाई और आभार

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  5. हर हर महादेव

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  6. जय शिव शंभू...🙏🙏

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  7. ओम नमः शिवाय..

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  8. जय भोले....

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  9. Har har mahadev ��, Bhagwan Shiv ki sab pr kripa yun hi bni rhe.

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  10. नर्मदा नदी तट पर स्थापित ओम्कारेश्वर महादेव ज्योतिर्लिंग का विस्तृत वर्णन किया गया है।श्रद्धालुओं के लिए आस्था एवं विश्वास का केंद्र है।

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