Sunderkand-9

सुंदरकांड 
Hanuman wrote the first Ramayana but he dumped it in ocean due to ...
हनुमानजी का रावण को समझाना
चौपाई (Chaupai – Sunderkand)
राम चरन पंकज उर धरहू।
लंका अचल राजु तुम्ह करहू॥
रिषि पुलस्ति जसु बिमल मयंका।
तेहि ससि महुँ जनि होहु कलंका॥
इसलिए तू रामचन्द्रजीके चरणकमलोंको हृदयमें धारण कर और उनकी कृपासे लंकामें अविचल राज कर॥
महामुनि पुलस्त्यजीका यश निर्मल चन्द्रमाके समान परमउज्वल है इसलिए तू उस कुलके बीचमें कलंक के समान मत हो॥ जय सियाराम जय जय सियाराम
राम नाम बिनु गिरा सोहा।
देखु बिचारि त्यागि मद मोहा॥
बसन हीन नहिं सोह सुरारी।
सब भूषन भूषित बर नारी॥
हे रावण! तू अपने मनमें विचार करके मद और मोहको त्यागकर अच्छी तरह जांचले कि रामके नाम बिना वाणी कभी शोभा नहीं देती॥
हे रावण! चाहे स्त्री सब अलंकारोसे अलंकृत और सुन्दर क्यों होवे परंतु वस्त्रके बिना वह कभी शोभायमान नहीं होती। ऐसेही रामनाम बिना वाणी शोभायमान नहीं होती॥ जय सियाराम जय जय सियाराम
राम बिमुख संपति प्रभुताई।
जाइ रही पाई बिनु पाई॥
सजल मूल जिन्ह सरितन्ह नाहीं।
बरषि गएँ पुनि तबहिं सुखाहीं॥
हे रावण! जो पुरुष रामचन्द्रजीसे विमुख है उसकी संपदा और प्रभुता पानेपर भी पानेके बराबर है। क्योंकि वह स्थिर नहीं रहती किन्तु तुरंत चली जाती है॥
देखो, जिन नदियों के मूल में कोई जलस्रोत नहीं है, वहां बरसात हो जाने के बाद फिर सब जल सुख ही जाता है, कही नहीं रहता॥ जय सियाराम जय जय सियाराम
सुनु दसकंठ कहउँ पन रोपी।
बिमुख राम त्राता नहिं कोपी॥
संकर सहस बिष्नु अज तोही।
सकहिं राखि राम कर द्रोही॥
हे रावण! सुन, मै प्रतिज्ञा कर कहता हूँ कि रामचन्द्रजीसे विमुख पुरुषका रखवारा कोई नहीं है॥
हे रावण! रामचन्द्रजीसे द्रोह करनेवाले तुझको ब्रह्मा, विष्णु और महादेव भी बचा नहीं सकते॥ जय सियाराम जय जय सियाराम
दोहा (Doha – Sunderkand)
मोहमूल बहु सूल प्रद त्यागहु तम अभिमान।
भजहु राम रघुनायक कृपा सिंधु भगवान 23
हे रावण! मोह्का मूल कारण और अत्यंत दुःख देनेवाली अभिमानकी बुद्धिको छोड़कर कृपाके सागर भगवान् श्री रघुवीरकुलनायक रामचन्द्रजीकी सेवा कर 23 जय सियाराम जय जय सियाराम
रावण ने हनुमानजी की पूँछ जलाने का हुक्म दिया
चौपाई (Chaupai – Sunderkand)
जदपि कही कपि अति हित बानी।
भगति बिबेक बिरति नय सानी॥
बोला बिहसि महा अभिमानी।
मिला हमहि कपि गुर बड़ ग्यानी॥
यद्यपि हनुमानजी रावणको अति हितकारी और भक्ति, ज्ञानधर्म और नीतिसे भरी वाणी कही, परंतु उस अभिमानी अधमके उसके कुछ भी असर नहीं हुआ॥
इससे हँसकर बोला कि हे वानर! आज तो हमको तु बडा ज्ञानी गुरु मिला॥ जय सियाराम जय जय सियाराम
मृत्यु निकट आई खल तोही।
लागेसि अधम सिखावन मोही॥
उलटा होइहि कह हनुमाना।
मतिभ्रम तोर प्रगट मैं जाना॥
हे नीच! तू मुझको शिक्षा देने लगा है. सो हे दुष्ट! कहीं तेरी मौत तो निकट नहीं गयी है?
रावणके ये वचन सुन पीछे फिरकर हनुमान्‌ने कहा कि हे रावण! अब मैंने तेरा बुद्धिभ्रम स्पष्ट रीतिसे जान लिया है॥ जय सियाराम जय जय सियाराम
सुनि कपि बचन बहुत खिसिआना।
बेगि हरहु मूढ़ कर प्राना॥
सुनत निसाचर मारन धाए।
सचिवन्ह सहित बिभीषनु आए॥
हनुमान्‌के वचन सुनकर रावणको बड़ा कोध आया, जिससे रावणने राक्षसोंको कहा कि हे राक्षसो! इस मूर्खके प्राण जल्दी लेलो अर्थात इसे तुरंत मार डालो॥
इस प्रकार रावण के वचन सुनतेही राक्षस मारनेको दौड़ें तब अपने मंत्रियोंके साथ विभीषण वहां  पहुँचे॥ जय सियाराम जय जय सियाराम
नाइ सीस करि बिनय बहूता।
नीति बिरोध मारिअ दूता॥
आन दंड कछु करिअ गोसाँई।
सबहीं कहा मंत्र भल भाई॥
बड़े विनयके साथ रावणको प्रणाम करके बिभीषणने कहा कि यह दूत है। इसलिए इसे मारना नही चाहिये; क्योंकि यह बात नीतिसेविरुद्ध है॥
हे स्वामी! इसे आप और एक दंड दे दीजिये पर मारें मत। बिभीषणकी यह बात सुनकर सब राक्षसोंने कहा कि हे भाइयो! यह सलाह तो अच्छी है॥ जय सियाराम जय जय सियाराम
सुनत बिहसि बोला दसकंधर।
अंग भंग करि पठइअ बंदर॥
रावण इस बातको सुनकर बोला कि जो इसको मारना ठीक नहीं है तो इस बंदरका कोई अंग भंग करके इसे भेज दो॥ जय सियाराम जय जय सियाराम
दोहा (Doha – Sunderkand)
कपि कें ममता पूँछ पर सबहि कहउँ समुझाइ।
तेल बोरि पट बाँधि पुनि पावक देहु लगाइ 24
सब लोगोने समझा कर रावणसे कहा कि वानरका ममत्व पूंछ पर बहुत होता है। इसलिए इसकी पूंछमें तेलसे भीगेहुए कपडे लपेटकर आग लगा दो 24
राक्षसोंने हनुमानजी की पूँछ में आग लगा दीइसलिए रावण ने लगवाई थी हनुमान की ...
चौपाई (Chaupai – Sunderkand)
पूँछहीन बानर तहँ जाइहि।
तब सठ निज नाथहि लइ आइहि॥
जिन्ह कै कीन्हिसि बहुत बड़ाई।
देखउ मैं तिन्ह कै प्रभुताई॥
जब यह वानर पूंछहीन होकर अपने मालिकके पास जायेगा, तब अपने स्वामीको यह ले आएगा॥ इस वानरने जिसकी अतुलित बढाई की है भला उसकी प्रभुताको मैं देखूं तो सही कि वह कैसा है? जय सियाराम जय जय सियाराम
बचन सुनत कपि मन मुसुकाना।
भइ सहाय सारद मैं जाना॥
जातुधान सुनि रावन बचना।
लागे रचैं मूढ़ सोइ रचना॥
रावनके ये वचन सुनकर हनुमानजी मनमें मुस्कुराए और मनमें सोचने लगे कि मैंने जान लिया है कि इस समय सरस्वती सहाय हुई है। क्योंकि इसके मुंहसे रामचन्द्रजीके आनेका समाचार स्वयं निकल गया॥
तुलसीदासजी कहते है कि वे राक्षसलोग रावणके वचन सुनकर वही रचना करने लगे अर्थात तेलसे भिगो भिगोकर कपडे उनकी पूंछमें लपेटने लगे॥ जय सियाराम जय जय सियाराम
रहा नगर बसन घृत तेला।
बाढ़ी पूँछ कीन्ह कपि खेला॥
कौतुक कहँ आए पुरबासी।
मारहिं चरन करहिं बहु हाँसी॥
उस समय हनुमानजीने ऐसा खेल किया कि अपनी पूंछ इतनी लंबी बढ़ा दी जिसको लपेटने के लिये नगरीमें कपडा, घी तेल कुछ भी बाकी रहा॥
नगरके जो लोग तमाशा देखनेको वहां आये थे वे सब लातें मार मारकर बहुत हँसते हैं॥ जय सियाराम जय जय सियाराम
बाजहिं ढोल देहिं सब तारी।
नगर फेरि पुनि पूँछ प्रजारी॥
पावक जरत देखि हनुमंता।
भयउ परम लघुरूप तुरंता॥
अनेक ढोल बज रहे हे, सबलोग ताली दे रहे हैं, इस तरह हनुमानजीको नगरीमें सर्वत्र फिराकर फिर उनकी पूंछमें आग लगा दी॥
हनुमानजीने जब पूंछमें आग जलती देखी तब उन्होने तुरंत बहुत छोटा स्वरूप धारण कर लिया॥जय सियाराम जय जय सियाराम
इसलिए रावण ने लगवाई थी हनुमान की ...

निबुकि चढ़ेउ कप कनक अटारीं।
भईं सभीत निसाचर नारीं॥
और बंधन से निकलकर पीछे सुवर्णकी अटारियोंपर चढ़ गए, जिसको देखतेही तमाम राक्षसोंकी स्त्रीयां भयभीत हो गयी॥ जय सियाराम जय जय सियाराम
दोहा (Doha – Sunderkand)
हरि प्रेरित तेहि अवसर चले मरुत उनचास।
अट्टहास करि गर्जा कपि बढ़ि लाग अकास 25
उस समय भगवानकी प्रेरणासे उनचासो पवन बहने लगे और हनुमानजीने अपना स्वरूप ऐसा बढ़ाया कि वह आकाशमें जा लगा फिर अट्टहास करके बड़े जोरसे गरजे 25 जय सियाराम जय जय सियाराम
SAF Lord Hanuman Ji SAFR3299 Sparkle Coated Digital Print Painting ...

13 comments:

  1. बजरंग बली की जय

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  2. अंजनी पुत्र पवन सुत नामा 🙏

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  3. अंजनी पुत्र पवन सुत नामा 🙏

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  4. जय हनुमान जी

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  5. महावीर विक्रम बजरंगी

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  6. सुधा पाण्डेयJuly 7, 2020 at 4:37 PM

    पवनसुत हनुमानजी की जय, जय सियाराम जय जय सियाराम

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