Sunderkand-5

सुंदरकांड 
Sundarkand paath vidhi, Sunderkand ka path, Apna Panditji
त्रिजटा ने सीताजी को सान्तवना दी
सुनत बचन पद गहि समुझाएसि।
प्रभु प्रताप बल सुजसु सुनाएसि॥
निसि  अनल मिल सुनु सुकुमारी।
अस कहि सो निज भवन सिधारी॥
त्रिजटा ने तुरंत सीताजी के चरणकमल गहे और सिताजीको समझाया और प्रभु रामचन्द्रजी का प्रताप, बल और उनका सुयश सुनाया
और सिताजीसे कहा की हे राजपुत्री! अभी रात्री है, इसलिए अभी अग्नि नहीं मिल सकती। ऐसा कहा कर वहा अपने घरको चली गयी॥ जय सियाराम जय जय सियाराम
कह सीता बिधि भा प्रतिकूला।
हिमिलि  पावक मिटिहि सूला॥
देखिअत प्रगट गगन अंगारा।
अवनि आवत एकउ तारा॥
तब अकेली बैठी बैठी सीताजी कहने लगी की क्या करू दैवही प्रतिकूल हो गया। अब तो अग्नि मिले और मेरा दुःख कोई तरहसे मिट सके॥
ऐसे कह तारोको देख कर सीताजी कहती है की ये आकाशके भीतर तो बहुतसे अंगारे प्रकट दीखते है परंतु पृथ्वीपर पर इनमेसे एकभी तारा नहीं आता॥ जय सियाराम जय जय सियाराम
पावकमय ससि स्रवत आगी।
मानहुँ मोहि जानि हतभागी॥
सुनहि बिनय मम बिटप असोका।
सत्य नाम करु हरु मम सोका॥
सीताजी चन्द्रमा को देखकर कहती है कि यह चन्द्रमा का स्वरुप साक्षात अग्निमय दिख पड़ता है पर यहभी मानो मुझको मंदभागिन जानकार आगको नहीं बरसाता॥
अशोकके वृक्ष को देखकर उससे प्रार्थना करती है कि हे अशोक वृक्ष! मेरी विनती सुनकर तू अपना नाम सत्य कर। अर्थात मुझे अशोक अर्थात शोकरहित कर। मेरे शोकको दूर कर॥ जय सियाराम जय जय सियाराम
नूतन किसलय अनल समाना।
देहि अगिनि जनि करहि निदाना॥
देखि परम बिरहाकुल सीता।
सो छन कपिहि कलप सम बीता॥
हे अग्निके समान रक्तवर्ण नविन कोंपलें (नए कोमल पत्ते)! तुम मुझको अग्नि देकर मुझको शांत करो॥
इस प्रकार सीताजीको विरह से अत्यन्त व्याकुल देखकर हनुमानजीका वह एक क्षण कल्पके समान बीतता गया॥ जय सियाराम जय जय सियाराम
दोहा (Doha – Sunderkand)
कपि करि हृदयँ बिचार दीन्हि मुद्रिका डारि तब
जनु असोक अंगार दीन्ह हरषि उठि कर गहेउ 12
उस समय हनुमानजीने अपने मनमे विचार करके अपने हाथमेंसे मुद्रिका (अँगूठी) डाल दी। सो सीताजी को वह मुद्रिका उससमय कैसी दिख पड़ी की मानो अशोकके अंगारने प्रगट हो कर हमको आनंद दिया है (मानो अशोक ने अंगारा दे दिया।) सो सिताजीने तुरंत उठकर वह मुद्रिका अपने हाथमें ले ली 12
हनुमान सीताजी से मिले
Sai inspires to do Parayan of Sundarakandam and blessed devotee to ...
चौपाई (Chaupai – Sunderkand)
तब देखी मुद्रिका मनोहर।
राम नाम अंकित अति सुंदर॥
चकित चितव मुदरी पहिचानी।
हरष बिषाद हृदयँ अकुलानी॥
फिर सीताजीने उस मुद्रिकाको देखा तो वह सुन्दर मुद्रिका रामचन्द्रजीके मनोहर नामसे अंकित हो रही थी अर्थात उसपर श्री राम का नाम खुदा हुआ था॥
उस मुद्रिकाको देखतेही सीताजी चकित होकर देखने लगी। आखिर उस मुद्रिकाको पहचान कर हृदय में अत्यंत हर्ष और विषादको प्राप्त हुई और बहुत अकुलाई॥ जय सियाराम जय जय सियाराम
जीति को सकइ अजय रघुराई।
माया तें असि रचि नहिं जाई॥
सीता मन बिचार कर नाना।
मधुर बचन बोलेउ हनुमाना॥
यह क्या हुआयह रामचन्द्रजीकी नामांकित मुद्रिका यहाँ कैसे आयी? या तो उन्हें जितनेसे यह मुद्रिका यहाँ  सकती है, किंतु उन अजेय रामचन्द्रजीको जीत सके ऐसा तो जगतमे कौन है? अर्थात उनको जीतनेवाला जगतमे है ही नहीं। और जो कहे की यह राक्षसोने मायासे बनाई है सो यह भी नहीं हो सकता। क्योंकि मायासे ऐसी बन नहीं सकती॥
इस प्रकार सीताजी अपने मनमे अनेक प्रकार से विचार कर रही थी। इतनेमें ऊपरसे हनुमानजी ने मधुर वचन कहे॥ जय सियाराम जय जय सियाराम
रामचंद्र गुन बरनैं लागा।
सुनतहिं सीता कर दुख भागा॥
लागीं सुनैं श्रवन मन लाई।
आदिहु तें सब कथा सुनाई॥
हनुमानजी रामचन्द्रजीके गुनोका वर्णन करने लगे। उनको सुनतेही सीताजीका सब दुःख दूर हो गया॥
और वह मन और कान लगा कर सुनने लगी। हनुमानजीने भी आरंभसे लेकर सब कथा सीताजी को सुनाई॥ जय सियाराम जय जय सियाराम
श्रवनामृत जेहिं कथा सुहाई।
कही सो प्रगट होति किन भाई॥
तब हनुमंत निकट चलि गयऊ।
फिरि बैठीं मन बिसमय भयऊ॥
हनुमानजीके मुखसे रामचन्द्रजीका चरितामृत सुनकर सीताजीनेकहा कि जिसने मुझको यह कानोंको अमृतसी मधुर लगनेवाली कथा सुनाई है वह मेरे सामने आकर प्रकट क्यों नहीं होता?
सीताजीके ये वचन सुनकर हनुमानजी चलकर उनके समीप गए तो हनुमानजी का वानर रूप देखकर सीताजीके मनमे बड़ा विस्मय हुआ की यह क्या! सो कपट समझकर हनुमानजी को पीठ देकर बैठ गयी॥ जय सियाराम जय जय सियाराम
राम दूत मैं मातु जानकी।
सत्य सपथ करुनानिधान की॥
यह मुद्रिका मातु मैं आनी।
दीन्हि राम तुम्ह कहँ सहिदानी॥
तब हनुमानजीने सीताजीसे कहा की हे माता! मै रामचन्द्रजीका दूत हूं। मै रामचन्द्रजीकी शपथ खाकर कहता हूँ की इसमें फर्क नहीं है॥
और रामचन्द्रजीने आपके लिए जो निशानी दी थी, वह यह मुद्रिका (अँगूठी) मैंने लाकर आपको दी है॥ जय सियाराम जय जय सियाराम
नर बानरहि संग कहु कैसें।
कही कथा भइ संगति जैसें॥
तब सिताजी ने कहा की हे हनुमाननर और वानरोंके बीच आपसमें प्रीति कैसे हुई वह मुझे कह। तब उनके परस्परमे जैसेप्रीति हुई थी वे सब समाचार हनुमानजी ने सिताजीसे कहे॥ जय सियाराम जय जय सियाराम
दोहा (Doha – Sunderkand)
कपि के बचन सप्रेम सुनि उपजा मन बिस्वास
जाना मन क्रम बचन यह कृपासिंधु कर दास 13
हनुमानजीके प्रेमसहित वचन सुनकर सीताजीके मनमे पक्का भरोसा  गया और उन्होंने जान लिया की यह मनवचन और कायासे कृपासिंधु श्रीरामजी के दास है॥
हनुमान ने सीताजी को आश्वासन दिया
Hanuman Meets Mother Sita - Miniature Painting– www.gangesindia.com

चौपाई (Chaupai – Sunderkand)
हरिजन जानि प्रीति अति गाढ़ी।
सजल नयन पुलकावलि बाढ़ी॥
बूड़त बिरह जलधि हनुमाना।
भयहु तात मो कहुँ जलजाना॥
हनुमानजी को हरिभक्त जानकर सीताजीके मन में अत्यंत प्रीतिबढ़ी, शरीर अत्यंत पुलकित हो गया और नेत्रोमे जल भर आया॥
सीताजीने हनुमान से कहा की हे हनुमान! मै विरहरूप समुद्रमें डूब रही थी, सो हे तात! मुझको तिरानेके लिए तुम नौका हुए हो॥ जय सियाराम जय जय सियाराम
अब कहु कुसल जाउँ बलिहारी।
अनुज सहित सुख भवन खरारी॥
कोमलचित कृपाल रघुराई।
कपि केहि हेतु धरी निठुराई॥
अब तुम मुझको बताओ कि सुखधाम श्रीराम लक्ष्मणसहितकुशल तो है॥
हे हनुमानरामचन्द्रजी तो बड़े दयालु और बड़े कोमलचित्त है।फिर यह कठोरता आपने क्यों धारण कि है? जय सियाराम जय जय सियाराम
सहज बानि सेवक सुखदायक।
कबहुँक सुरति करत रघुनायक॥
कबहुँ नयन मम सीतल ताता।
होइहहिं निरखि स्याम मृदु गाता॥
यह तो उनका सहज स्वभावही है कि जो उनकी सेवा करता है उनको वे सदा सुख देते रहते है॥ सो हे हनुमान! वे रामचन्द्रजी कभी मुझको भी याद करते है?
कभी मेरे भी नेत्र रामचन्द्रजीके कोमल श्याम शरिरको देखकर शीतल होंगे॥ जय सियाराम जय जय सियाराम
बचनु  आव नयन भरे बारी।
अहह नाथ हौं निपट बिसारी॥
देखि परम बिरहाकुल सीता।
बोला कपि मृदु बचन बिनीता॥
सीताजीकी उस समय यह दशा हो गयी कि मुखसे वचन निकलना बंद हो गया और नेत्रोमें जल भर आया इस दशा में सीताजीने प्रार्थना की, कि हे नाथ! मुझको आप बिल्कुल ही भूल गए॥
सीताजीको विरह्से अत्यंत व्याकुल देखकर हनुमानजी बड़े विनयके साथ कोमल वचन बोले॥ जय सियाराम जय जय सियाराम
मातु कुसल प्रभु अनुज समेता।
तव दुख दुखी सुकृपा निकेता॥
जनि जननी मानह जियँ ऊना।
तुम्ह ते प्रेमु राम कें दूना॥
हे माता! लक्ष्मणसहित रामचन्द्रजी सब प्रकार से प्रसन्न है,केवल एक आपके दुःख से तो वे कृपानिधान अवश्य दुखी है। बाकी उनको कुछ भी दुःख नहीं है॥
हे माता! आप अपने मनको उन मत मानो (अर्थात रंज मत करोमन छोटा करके दुःख मत कीजिए), क्योंकि रामचन्द्रजीका प्यारआपकी और आपसे भी दुगुना है॥ जय सियाराम जय जय सियाराम
दोहा (Doha – Sunderkand)
रघुपति कर संदेसु अब सुनु जननी धरि धीर।
अस कहि कपि गदगद भयउ भरे बिलोचन नीर 14
हे माता! अब मै आपको जो रामचन्द्रजीका संदेशा सुनाता हूं सो आप धीरज धारण करके उसे सुनो ऐसे कह्तेही हनुमानजी प्रेम से गदगद हो गए और नेत्रोमे जल भर आया 14 जय सियाराम जय जय सियाराम
Lord Hanuman | God HD Wallpapers - Part 2
जय श्री राम , जय जय हनुमान 

11 comments:

  1. श्री राम जय राम जय जय राम 🙏

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  2. Jai Hanuman ��

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  3. ॐ हनुमंते नमः।

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  4. सुधा पाण्डेयJune 9, 2020 at 2:55 PM

    जय श्री हनुमानजी, माता सीता एवं हनुमानजी का परस्पर संवाद अत्यंत ह्र्दयग्राही है

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  5. Sunderkand ki sunder prastuti

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