मैं अक्सर सोचती हूं

मैं अक्सर सोचती हूं

Rupa Oos ki ek Boond
"आओ बैठो कभी किसी इतवार को
मैं वैसी नहीं हूँ जैसा मिलती हूँ, सोमवार को..❣️"

मैं अक्सर सोचती हूं कि तुमने 

थोड़ा और प्रयास क्यों नहीं किया 

क्यों जाने दिया अपनी रुह को

नज़र भर देखने के लिए 

मिलों का सफर तय करते थे 

तुम्हारी भरोसेमंद साथी

साईकिल मुझे आज भी याद है 

गली का नुक्कड़ आज भी टकटकी लगाकर तुम्हारी राह देखता है 

क्यों नहीं ज़ाहिर किया अपना प्रेम 

अपने सपनों की उड़ान के साथ 

क्यों नहीं मेरे भी सपने जोड़े 

मुकाम पर क्या तुम्हें

अकेले ही जाना था ?

मिट्टी सान ली तुमने प्रेम की

बस मूर्ति बनाना भूल गए 

कोई और गढ़ ले, गया

तुम्हारी मूर्ति को 

पर नया मूर्तिकार मूर्ति की

 मुस्कुराहट गढ़ना भूल गया 

न जाने क्या विवशता रही होगी तुम्हारी 

क्या-क्या सोचा होगा अकेले तुमने 

समाज परिवार रुतबा

 या फिर कुछ और 

मुझे कभी इन प्रश्नों के

 उत्तर नहीं मिलते है?

स्वयं ही तुमने निर्धारित कर ली 

मेरी सीमाओं को 

प्रेम करना मेरा अधिकार है 

उसे जीवंत करना तुम्हारा क्षेत्र था 

नवीन कोंपलें अब नहीं आती है 

अब क्यों कर कोशिश करते हो 

विकल्प कोई तलाशते हो 

या तुम्हारी भी मुस्कुराहट गढ़ी नहीं गई

प्रेम बस प्रथम और 

वहीं अंतिम होता है 

अब संभव न होगा 

ये किस्सा अब यूं ही 

अधूरा रहेगा

शायद कभी तुम 

मेरे प्रश्नों के उत्तर दे सको 

आखिर क्यों तुमने प्रयास नहीं किया?

Rupa Oos ki ek Boond
"आती नहीं हैं आहटें अब उस पार से
 फिर भी हम हैं कि सरगोशियां करते जाते हैं..❣️"


12 comments:

  1. ❤️❤️🌹🌹hpy sunday

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  2. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द सोमवार 23 सितंबर 2024 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !

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    1. पांच लिंकों के आनन्द में इस रचना को स्थान देने के लिए आपका हार्दिक आभार।

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  3. भावपूर्ण सुंदर रचना

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  4. 🙏🙏💐💐शुभरात्रि 🕉️
    🚩🚩जय श्री राधे कृष्ण🚩🚩
    🚩🚩राधे राधे 🚩🚩
    👍👍👍बहुत सुन्दर रचना 🙏
    🙏🙏आप का बहुत बहुत धन्यवाद 💐💐
    🙏ये जीवन है..... अपना और अपनों का ख्याल रखिये🙏

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  5. वाह क्या बात है रूपा जी बहुत ही सुंदर 👌🏻😊

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