कोपेश्वर मंदिर, खिद्रापुर || Kopeshwar Temple, Khidrapur

कोपेश्वर मंदिर

'कोपेश्वर' इस शब्द का अर्थ है क्रोधित शिव और यह मंदिर भगवान शिव जी के क्रोधित स्वरूप को समर्पित है, जिसमें नंदी महाराज की कोई मूर्ति स्थापित नहीं की गई है। यह मंदिर संभवतः अकेला ऐसा मंदिर है, जिसमें  भगवान शिव और भगवान विष्णु दोनों एक साथ पूजे जाते हैं। ऐसा क्यूँ है इसके पीछे एक बेहद दिलचस्प कहानी है। 

कोपेश्वर मंदिर, खिद्रापुर || Kopeshwar Temple, Khidrapur

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार राजा दक्ष प्रजापति ने अपने यहां एक यज्ञ का आयोजन किया था। इस यज्ञ में उन्होंने अपनी ही पुत्री सती और उनके पति भगवान शिव जी के अलावा अन्य सभी देवी-देवताओं को निमंत्रण भेजा था। क्योंकि राजा दक्ष शिव जी और मां सती के विवाह से खुश नहीं थे। भगवान शिव जी ने मां सती को समझाया कि बिना निमंत्रण वहाँ जाना सही नहीं होगा। लेकिन पितृमोह में निमंत्रण ना मिलने पर भी मां सती अपने पिता दक्ष प्रजापति द्वारा आयोजित यज्ञ में पति महादेव की मर्जी के बगैर नंदी पर सवार होकर चली गईं। परंतु यज्ञ में आकर उन्हें स्वयं अपने पिता द्वारा अपने और अपने पति के प्रति अपमानजनक बातें सुननी पड़ी, जो उन्हें बर्दाश्त नहीं हुआ और उन्होंने उसी यज्ञ कुंड में आत्मदाह का लिया।

मां सती के आत्मदाह की खबर सुनते ही भगवान शिव वहां पहुंचे और उन्होंने क्रोधवश राजा दक्ष का सिर ही धड़ से अलग कर दिया। भगवान विष्णु ने वहां पहुंचकर शिव जी को शांत किया। उनके कहने पर शिव जी ने राजा दक्ष को जीवन दान देते हुए सिर तो लगा दिया लेकिन बकरे का सिर लगाया। इसके बाद शिव जी के क्रोध को पूर्ण रूप से शांत करने के लिए भगवान विष्णु उन्हें अपने साथ कोल्हापुर के इसी स्थान लेकर आए। भगवान शिव के क्रोधित स्वरूप की मौजूदगी के चलते ही इस मंदिर का नाम कोपेश्वर पड़ा। उनके साथ भगवान विष्णु भी इस जगह पर आए थे, इसलिए इस मंदिर में उनकी भी मौजूदगी है। भगवान विष्णु यहां लिंग स्वरूप में मौजूद हैं और उनकी पूजा गोपेश्वर नाम से की जाती है।

शिव जी जब विष्णु जी के साथ यहां आए तो उनके साथ नंदी महाराज नहीं थे। यही वजह है कि इस मंदिर में नंदी महाराज की कोई मूर्ति स्थापित नहीं की गई है और शायद शिव मंदिरों में यह इकलौता बिना नंदी महाराज के शिव मंदिर होगा। यहां से 12 किमी दूर कर्नाटक के यदुर गांव में नंदी महाराज का मंदिर मिलता है, जो कि संभवतः एकमात्र ऐसा मंदिर है जहां पर सिर्फ नंदी महाराज की मूर्ति मौजूद है।

यह तो थी कोपेश्वर मंदिर से जुड़ी पौराणिक कहानी, इसके साथ ही मंदिर की और भी विशेषताएं हैं, जो इसको खास बनाती हैं।  इस मंदिर की संरचना को देखकर आज भी शोधकर्ता यही सोचते हैं कि आखिर कैसे इतनी जटिल वास्तुकला से ये संरचना बनाई गई है, जबकि हजारों साल पहले मशीन का तो जमाना ही नहीं था, सिर्फ हाथ से ही कारीगरी की जाती थी। इस मंदिर की वास्तुकला कोई साधारण डिजाइन नहीं है, बल्कि इसमें कई रहस्य छिपे हैं, जो आज भी रहस्य ही बने हुए है। इन्हें देखने पर 3D फिल्मों की याद आ जाएगी, मनो जैसे कोई सीन बस करीब से होकर गुजरा हो। 

कोपेश्वर मंदिर एक अद्भुत वास्तुकला

यह मंदिर चालुक्य वंश की उत्कृष्ट वास्तुकला को दर्शाती है। यह मंदिर चालुक्यों द्वारा बनाए बाकी इमारतों की तरह प्रसिद्ध तो नहीं हो पाया लेकिन इसकी वास्तुकला ही इसे देखने पर मजबूर कर देती है। महाराष्ट्र और कर्नाटक के सीमा पर स्थित यह मंदिर 12वीं शाताब्दी (1109-78 ईस्वी के बीच) में शैलाहार वंश के राजा गंधारादित्य द्वारा बनवाया गया था। 

कोपेश्वर मंदिर, खिद्रापुर || Kopeshwar Temple, Khidrapur

मंदिर परिसर में कई शिलालेख (करीब 12) हैं, जो प्राचीन इतिहास से रूबरू करवाते हैं। हालांकि, अब इसमें से सिर्फ कुछ ही शिलालेख (शायद 2 या 3) बचे हैं, जिनकी स्थिति अभी भी ठीक है। इनमें कुछ राजाओं और उनके अधिकारियों के नाम अंकित है। एक (संस्कृत - देवनागरी) को छोड़ बाकी सभी शिलालेख कन्नड़ भाषा में लिखित हैं। एक शिलालेख पर देवगिरी के यादव शासकों द्वारा इसके जीर्णोद्धार का जिक्र जरूर मिलता है। जो यह साबित करता है कि कोपेश्वर मंदिर का अस्तित्व कम से कम 1000 साल पुराना तो है ही। मंदिर में स्थित दो शिवलिंग हैं, इनमें एक भगवान शिव और दूसरा भगवान विष्णु को समर्पित है। मंदिर का ऊपरी छत खुला है, जिससे सूर्य की किरणें हर रोज महादेव का सूर्याभिषेक करती हैं।

महाराष्ट्र का सबसे अमीर मंदिर है कोपेश्वर मंदिर

कहा जाता है कि यह मंदिर महाराष्ट्र का सबसे अमीर मंदिर है। इस मंदिर में उपयोग किया जाने वाला पत्थर कठोर बेसाल्ट चट्टान है, जो सह्याद्री पर्वत श्रृंखला में पाई जाती है। यह चट्टान मंदिर से 100 किमी के अंदर में ही स्थित है, जिससे अनुमान लगाया जा सकता है कि पंच गंगा और कृष्णा नदियों के माध्यम से पत्थर को यहां लाया गया होगा। क्योंकि प्राचीन समय में हमारे अखंड भारत में जलमार्ग का उपयोग किया जाता था।

कोपेश्वर मंदिर की बेजोड़ बनावट को निम्नलिखित 3 हिस्सों में बांटा जा सकता है

स्वर्ग मंडप:- 

लोगों का मानना है कि स्वर्ग मंडप में प्रवेश में बाद स्वर्ग लोक में पहुंच जाने का बेहद अनोखा अनुभव होता है। स्वर्ग मंडप में प्रवेश के लिए कुल चार प्रवेशद्वार बनाए गए हैं। इसकी संरचना मुख्यतः तीन घेरों के जरिए की गई हैं। पहले घेरे में 12 स्तंभ, दूसरे घेरे में 16 स्तंभ और फिर तीसरे घेरे में 12 स्तंभ बने हुए हैं। इसके साथ ही आधार के लिए मंडप के चारों तरफ 2-2 स्तंभ खड़े हैं। मंडप की परिधि में आप भगवान गणेश, कार्तिकेय स्वामी, भगवान कुबेर, भगवान यमराज, भगवान इंद्र की मूर्तियों को उनके वाहक मोर, चूहे, हाथी आदि बने हुए हैं। इसके अतिरिक्त स्वर्ग मंडप में 9 ग्रहों को समर्पित 9 कलाकृतियां भी देखने लायक हैं।

कोपेश्वर मंदिर, खिद्रापुर || Kopeshwar Temple, Khidrapur

कुल 48 स्तंभों पर आधारित गोलाकार मंडप की छत खाली छोड़ दी गई है, जिसका व्यास 13 फीट का है। इस 13 फीट के खाली स्थान से रात के वक्त सितारों से भरा खाली आसमान दिखता है, जो स्वर्ग का आभास करता है। शायद इसलिए इसे स्वर्ग मंडप कहा जाता है। 13 फीट व्यास वाला यह खाली इलाका दरअसल हम भारतीयों के अद्भुत वास्तुकला के साथ ही खगोलशास्त्र और ज्योतिष विज्ञान के मामले में अति-आधुनिकता की भी निशानी है। कहा जाता है कि हर साल कार्तिक पूर्णिमा की रात को चंद्रमा स्वर्ग मंडप के एकदम मध्य में आ जाता है। इस दर्शनीय लेकिन बेहद दुर्लभ नजारे का साक्षीदार बनने की खातिर कार्तिक पूर्णिमा के दिन मंदिर परिसर में भक्तों की तांता लग जाता है।

सभा मंडप:- 

सभा मंडप में प्रवेश के लिए तीन प्रवेशद्वार बनाए गए हैं। पहला तो स्वर्ग मंडप से बना हुआ है और अन्य दो प्रवेशद्वार मंदिर के उत्तर तथा दक्षिण दिशा में मौजूद हैं। सभा मंडप के प्रवेशद्वार की दीवार पर मां सरस्वती की नक्काशीदार मूर्ति बनाई गई है। इसके अतिरिक्त इसके ऊपरी हिस्से में भी पूर्ण कलश की सुंदर नक्काशी की गई है। प्रवेशद्वार पर दोनों तरफ 5-5 द्वारपालों की नक्काशी है। विदेशी हमलावरों के चलते इनका गदा भले टूट गया हो, लेकिन आक्रमणकारियों की लाख हमलों के बावजूद इनकी खूबसूरती बरकरार है। सभा मंडप को भी कुछ कुछ स्वर्ग मंडप की ही तरह बनाया गया है। इसे 3 घेरों के जरिए 60 स्तंभ के आधार पर खड़ा किया गया है। इसकी दीवारों पर नक्काशी के जरिए पौराणिक कथाओं को भी अंकित किया गया है।

गर्भगृह:- 

मंदिर के गर्भगृह में आकर भगवान शिवजी के क्रोधित स्वरूप के प्रतीक लिंग के दर्शन होते हैं। जिनकी पूजा यहां पर कोपेश्वर महादेव के रूप में की जाती है। इनके ठीक बगल में एक और लिंग, जो कि भगवान विष्णु जी के शांत स्वरूप को प्रदर्शित करता है। यही एक बात इस मंदिर को और ज्यादा खास बना देती है कि एक ही स्थान पर सृष्टि के पालनहार और सृष्टि के संहारक दोनों की पूजा की जाती है। गर्भगृह में ही एक अंधेरी गुफा है, जो कि यहां बैठकर ध्यान लगाने के उद्देश्य से बनाई गई है।

कोपेश्वर मंदिर, खिद्रापुर || Kopeshwar Temple, Khidrapur

अंदर की कलाकृतियों के बाद बाहर चलते हैं। इस दौरान आपको 12 हाथियों वाला एक पैनल नजर आता है, जिसे देखकर ऐसा लगता है मानों इनपर लादकर मंदिर को कहीं ले जाया जा रहा है। वैसे मंदिर के निर्माण में जिन कठोरतम चट्टानों का इस्तेमाल किया गया है, वो मंदिर से करीब 100 किमी दूर सह्याद्री पहाड़ से काटकर ही लाए गए होंगे। तो संभव है कि उनको पत्थरों को ढोकर लाने में इन हाथियों का इस्तेमाल किया गया हो। करीब से इन हाथियों को देखने से लगता है कि हर हाथी को अलग तरह से तराशा गया है और उनके ऊपर विराजमान देवता भी अलग-अलग ही हैं। इसके अलावा सभा मंडप की बाह्य दीवारों पर ब्रह्मा, विष्णु, गणपति, कृष्ण, शिव जैसे देवताओं और देवियों की मूर्ति के साथ ही रामायण तथा महाभारत की कहानी को प्रदर्शित करती अतुलनीय नक्काशी भी मौजूद है।

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Kopeshwar Temple

The word 'Kopeshwar' means angry Shiva and this temple is dedicated to the angry form of Lord Shiva, in which no idol of Nandi Maharaj has been installed. This temple is probably the only temple in which both Lord Shiva and Lord Vishnu are worshipped together. There is a very interesting story behind why this is so.
कोपेश्वर मंदिर, खिद्रापुर || Kopeshwar Temple, Khidrapur
According to mythological beliefs, King Daksha Prajapati had organized a yagya at his place. In this yagya, he had invited all the gods and goddesses except his own daughter Sati and her husband Lord Shiva. Because King Daksha was not happy with the marriage of Lord Shiva and Mother Sati. Lord Shiva explained to Mother Sati that it would not be right to go there without invitation. But due to her love for her father, despite not getting the invitation, Mother Sati went to the yagya organized by her father Daksha Prajapati, riding on Nandi without the consent of her husband Mahadev. But after coming to the yagya, she herself had to listen to insulting things about herself and her husband from her father, which she could not tolerate and she committed suicide in the same yagya kund.

On hearing the news of self-immolation of Maa Sati, Lord Shiva reached there and in anger, he beheaded King Daksha. Lord Vishnu reached there and pacified Lord Shiva. On his request, Lord Shiva gave life to King Daksha and put his head on his body but put the head of a goat. After this, to completely pacify Lord Shiva's anger, Lord Vishnu brought him with him to this place in Kolhapur. Due to the presence of the angry form of Lord Shiva, this temple was named Kopeshwar. Lord Vishnu also came to this place with him, so he is also present in this temple. Lord Vishnu is present here in the form of Linga and he is worshipped by the name Gopeshwar.

When Lord Shiva came here with Vishnu Ji, Nandi Maharaj was not with him. This is the reason why no idol of Nandi Maharaj has been installed in this temple and perhaps this is the only Shiva temple without Nandi Maharaj among the Shiva temples. Nandi Maharaj's temple is found in Yadur village of Karnataka, 12 km from here, which is probably the only temple where only Nandi Maharaj's idol is present.

This was the mythological story related to Kopeshwar temple, along with this the temple has many other features, which make it special. Seeing the structure of this temple, even today researchers wonder how this structure has been built with such a complex architecture, whereas thousands of years ago there was no era of machines, the work was done only by hand. The architecture of this temple is not a simple design, but it has many secrets hidden in it, which remain a mystery even today. Seeing them will remind you of 3D films, as if a scene has just passed by closely.

This temple shows the excellent architecture of the Chalukya dynasty. This temple could not become famous like the other buildings built by the Chalukyas, but its architecture itself compels one to see it. Situated on the border of Maharashtra and Karnataka, this temple was built in the 12th century (between 1109-78 AD) by King Gandaraditya of the Shailahara dynasty.

There are many inscriptions (about 12) in the temple complex, which tell us about the ancient history. However, now only a few inscriptions (probably 2 or 3) are left, whose condition is still good. These contain the names of some kings and their officials. Except for one (Sanskrit - Devanagari), all the other inscriptions are written in Kannada language. On one inscription, there is a mention of its renovation by the Yadava rulers of Devagiri. Which proves that the existence of Kopeshwar temple is at least 1000 years old. There are two Shivlingas located in the temple, one of which is dedicated to Lord Shiva and the other to Lord Vishnu. The upper roof of the temple is open, due to which the rays of the sun perform Suryabhishek of Mahadev every day.
कोपेश्वर मंदिर, खिद्रापुर || Kopeshwar Temple, Khidrapur

Kopeshwar Temple is the richest temple of Maharashtra

It is said that this temple is the richest temple of Maharashtra. The stone used in this temple is hard basalt rock, which is found in the Sahyadri mountain range. This rock is located within 100 km from the temple, from which it can be guessed that the stone must have been brought here through the Panch Ganga and Krishna rivers. Because in ancient times waterways were used in our undivided India.

The unique structure of Kopeshwar Temple can be divided into the following 3 parts.

Swarg Mandap:-

People believe that after entering the Swarg Mandap, there is a very unique experience of reaching heaven. A total of four entrances have been made to enter the Swarg Mandap. Its structure is mainly done through three circles. There are 12 pillars in the first circle, 16 pillars in the second circle and then 12 pillars in the third circle. Along with this, there are 2-2 pillars standing around the Mandap for the base. Within the periphery of the mandap you will find idols of Lord Ganesha, Kartikeya Swami, Lord Kubera, Lord Yamraj, Lord Indra along with their carriers like peacock, rat, elephant etc. Apart from this, 9 artworks dedicated to the 9 planets are also worth seeing in the Swarga mandap.
कोपेश्वर मंदिर, खिद्रापुर || Kopeshwar Temple, Khidrapur
The roof of the circular pavilion, which is based on a total of 48 pillars, has been left empty, which has a diameter of 13 feet. From this 13 feet empty space, the empty sky full of stars is visible at night, which gives the feel of heaven. Perhaps that is why it is called Swarg Mandap. This empty area with a diameter of 13 feet is actually a sign of the amazing architecture of us Indians as well as ultra-modernity in terms of astronomy and astrology. It is said that every year on the night of Kartik Purnima, the moon comes right in the middle of Swarg Mandap. To witness this spectacular but extremely rare sight, devotees flock to the temple premises on the day of Kartik Purnima.

Sabha Mandap:-

Three entrances have been made for entering the Sabha Mandap. The first one is made from Swarg Mandap and the other two entrances are present on the north and south side of the temple. A carved statue of Maa Saraswati has been made on the wall of the entrance of the Sabha Mandap. Apart from this, a beautiful carving of a full Kalash has also been done on its upper part. There are carvings of 5-5 Dwarpals on both sides of the entrance. Their mace may have been broken due to foreign invaders, but despite lakhs of attacks by the invaders, their beauty remains intact. The Sabha Mandap has also been built somewhat like the Swarg Mandap. It has been erected on the basis of 60 pillars through 3 circles. Mythological stories have also been inscribed on its walls through carvings.

Garbha Griha:-

Coming to the sanctum sanctorum of the temple, one can see the Linga, the symbol of the angry form of Lord Shiva. Who is worshipped here in the form of Kopeshwar Mahadev. Right next to them is another Linga, which displays the calm form of Lord Vishnu. This is the only thing that makes this temple more special that both the creator and destroyer of the universe are worshipped at one place. There is a dark cave in the sanctum sanctorum, which has been built for the purpose of sitting and meditating here.
कोपेश्वर मंदिर, खिद्रापुर || Kopeshwar Temple, Khidrapur
After the artworks inside, let's go outside. During this time you see a panel with 12 elephants, which looks as if the temple is being carried somewhere by loading them on them. By the way, the hardest rocks used in the construction of the temple must have been cut and brought from the Sahyadri mountain, which is about 100 km away from the temple. So it is possible that these elephants were used to carry the stones. Looking at these elephants closely, it seems that each elephant has been carved differently and the deities seated on them are also different. Apart from this, on the outer walls of the Sabha Mandap, there are statues of gods and goddesses like Brahma, Vishnu, Ganapati, Krishna, Shiva, along with incomparable carvings depicting the story of Ramayana and Mahabharata.

6 comments:

  1. 🙏🙏💐💐शुभदोपहर 🕉️
    🙏ॐ नमः शिवाय 🚩🚩🚩
    🙏जय शिव शम्भू 🚩🚩🚩
    🙏आप का दिन मंगलमय हो 🙏
    🙏हर हर महादेव 🚩🚩🚩
    🙏महादेव का आशीर्वाद आप और आपके परिवार पर हमेशा बना रहे 🙏
    👍👍👍बहुत महत्वपूर्ण जानकारी शेयर करने के लिए आप का बहुत बहुत धन्यवाद 💐💐

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  2. हर हर महादेव 🙏🏻

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  3. She is beautiful. Like all temples in India.

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