आहिस्ता आहिस्ता करके
आहिस्ता आहिस्ता करके,
पिघलना पड़ता है,
आसान नहीं मुहब्बत,
बहुत जलना पड़ता है।
बुझती भी नहीं आग दिल की,
जलकर राख भी नहीं होता है।
एक बार हो जाए मुहब्बत तो,
जिंदगी भर गिर गिर कर,
संभलना पड़ता है।
सदियों से रहा है दुश्मन,
जमाना मुहबत का
घर वालों की नजर से भी,
आंसू बनकर निकलना पड़ता है।
खुब सोचना समझना
किसी का होने से पहले
क्योंकि हो जाए इश्क़ तो,
ताउम्र हाथ मलना पड़ता है।
इतिहास गवाह है मुहब्बत में,
मंजिल नहीं मिलती,
सूरज की तरह रोज,
निकलकर ढलना पड़ता है।
Excellent and also 100% true🙏
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में" सोमवार 25 मार्च 2024 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !
ReplyDelete"पांच लिंकों के आनन्द में" इस रचना को स्थान देने के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद।
Deleteइश्क मोहब्बत प्रेम प्यार💓
ReplyDeleteइस पर टिका है सारा संसार🎇
प्यार को परिभाधित करती बेहतरीन कविता।
ReplyDeleteशुभ रविवार
Nice
ReplyDeleteशुभ रविवार
ReplyDeleteBahut achi kavita
ReplyDeleteHappy Sunday
ReplyDeleteअति सुन्दर रचना
ReplyDeleteExcellent
ReplyDeleteV nice
ReplyDeleteWaaaaaaahh kya bat hai Rupa Ji Very Nice 😍🙏🏼
ReplyDeleteबहुत बहुत सुन्दर
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना 🙏
ReplyDeleteवाह
ReplyDeleteVery nice
ReplyDeleteHappy Holi Rupa ji
ReplyDeleteWahhhhhhjh
ReplyDeleteवाह , बहुत उम्दा ।
ReplyDeleteवाह , बहुत उम्दा ।
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