बहुत उलझनें हैं राहों में

बहुत उलझनें हैं राहों में

Rupa Oos ki ek Boond

कुछ दबी हुई ख़्वाहिशें है, 
कुछ मंद मुस्कुराहटें..
कुछ खोए हुए सपने है, 
कुछ अनसुनी आहटें..
कुछ सुकून भरी यादें हैं,
कुछ दर्द भरे लम्हात..
कुछ थमें हुए तूफ़ाँ हैं, 
कुछ मद्धम सी बरसात..
कुछ अनकहे अल्फ़ाज़ हैं, 
कुछ नासमझ इशारे..
कुछ ऐसे मंझधार हैं, 
जिनके मिलते नहीं किनारे..
बहुत उलझनें है राहों में..
कुछ अनकही सी बात,
कुछ खामोशियों को चीरती आवाज..
कुछ आंसू पलकों पे,
कुछ जज्बात दफन हैं सीने में..
कुछ जलते हुए से अंगारे हैं,
कुछ शीतल मन्द बयार..
कुछ जागती आंखों के सपने हैं,
कुछ दिल में धधकते अरमां..
कुछ इन कदमों की आहटें हैं,
कुछ अनसुलझे से सवालात..
जिसका नहीं कोई जवाब ..
एक बेगानी सी डगर है,
जिसकी नहीं कोई मंजिल..
बहुत उलझनें हैं राहों में 
Rupa Oos ki ek Boond

17 comments:

  1. बहुत खूबसूरत रचना

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  2. उस बिन मेरा हर शब्द अधूरा,
    मेरी कविता का छन्द हो जैसे।

    उस बिन ये जीवन मेरा.....,
    बिना शीर्षक का निबन्ध हो जैसे

    उस बिन मेरी कोई बहार नही.
    मेरे जीवन का बसन्त हो जैसे
    उस बिन मेरा जीवन अधूरा
    जिंदगी का अर्थ हो जैसे

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  3. 👌👌👍🤞🙏🚩।
    हृदय र शून्यता ❣️🍃

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  4. Very emotional touch....nice poem...

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  5. उलझन सुलझे ना, रस्ता सूझे ना।
    बहुत सुंदर रचना 👌👌👌

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  6. संजय कुमारSeptember 12, 2023 at 8:37 AM

    🙏🙏💐💐सुप्रभात 🕉️
    🙏ॐ नमः शिवाय 🚩🚩🚩
    🙏जय शिव शम्भू 🚩🚩🚩
    🙏महादेव का आशीर्वाद आप और आपके परिवार पर हमेशा बना रहे 🙏
    👌👌🙏🙏💐💐बहुत बहुत धन्यवाद

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  7. जिन्दगी के इस सफर में हम भी अकेले
    ख्वाब,ख्वाईश और तन्हाइयों के मेले है
    मंज़िल पर पहुंच कर लिखेंगे इस सफर की कहानी
    अभी तो बस हम चल रहे है ।।
    प्रेषक
    निरंजन सिंह
    एडवोकेट
    हाई कोर्ट लखनऊ
    7784083802

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  8. Very painful poem 🥲🥲
    There are a lot of entanglements on the way.

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  9. Bahut badhiya👌🏻👌🏻
    Have a great day 🌹🌹🌹🌹

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  10. बहुत उलझनें इन राहों में
    फिर भी मैं चलता रहती हूँ
    रोशन करने अपनों का जहाँ
    दीये की तरह जलती रहती हूंँ
    कुछ ख्वाब थे जो दिल के
    वो ख्वाब अब तक अधूरे हैं
    कोशिशें बरसों से जारी है
    फिर भी कहाँ ख्वाब पूरे हैं
    दिल में उठते हुए जज्बात
    कई-कई बार हमने टटोले
    पर ना तो मुंह से कुछ बोले
    ना हमने अपने लब खोले
    मन में उठता हर बार ज्वार
    बस वो अंतर्मन में ही फुटा
    नाकाम हुई सारी कोशिशें
    दुबारा कोई ज्वार ना उठा
    जिंदगी की कशमकश में
    खामोश हुआ ज्वालामुखी
    जी रहे जैसे भी ये जिंदगी
    क्या करेंगे अब होके दुखी
    अब तो किसी से कोई भी
    शिकवा या शिकायत नहीं
    दिल में मेरे अब तो वैसे भी
    उठती कोई भी चाहत नहीं
    एक उम्र तक मेरे दिल में
    उमड़ती थी कई ख्वाहिशें
    अब उम्र के इस दौर में हम
    क्या रखे कोई फरमाइशें
    🙏नरेश"राजन"हिन्दुस्तानी🙏

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