जब मां सरस्वती ने चूर किया कालिदास का घमंड
कालीदास का प्रारंभिक जीवन मूर्खतापूर्ण हरकतों से भरा हुआ था, मगर समय का पहिया घूमता है और वह महामूर्ख कालीदास महापंडित कालीदास बन जाते हैं। अपने शास्त्रार्थ के दम पर उन्होंने दुनिया के कई विद्वानों को परास्त किया। उन्हें दुनिया के सबसे विद्वान व्यक्तियों में मान लिया गया। तमाम मान-सम्मान पाकर कालीदास को मतिभ्रम हो गया कि उन्होंने सारी दुनिया को जीत लिया है। अब उन्हें कुछ पाना शेष नहीं रहा।
एक दिन पड़ोसी देश से उन्हें शास्त्रार्थ के लिए बुलावा आया। कालीदास सम्राट विक्रमादित्य से अनुमति लेकर अपने घोड़े पर सवार होकर गंतव्य की ओर रवाना हुए। चटखती गरमी का मौसम था। निरंतर यात्रा से कालीदास थक कर चूर-चूर हो चुके थे। उन्होंने सोचा कहीं प्यास बुझाकर आगे बढ़ेंगे तो आगे का रास्ता आसान हो जाएगा। थोड़ी देर तलाश करने के बाद उन्हें एक झोपड़ी नजर आई। उन्होंने अपना घोड़ा झोपड़े के सामने रोका। झोपड़े के पास ही एक कुंआ था। कुएं पर एक वृद्धा पानी भर रही थी।
कालिदास बोले - माते! पानी पिला दीजिए बङा पुण्य होगा।
स्त्री बोली - बेटा मैं तुम्हें जानती नहीं, अपना परिचय दो। मैं अवश्य पानी पिला दूंगी।
कालीदास ने कहा - मैं पथिक हूँ, कृपया पानी पिला दें।
स्त्री बोली - तुम पथिक कैसे हो सकते हो, पथिक तो केवल दो ही हैं सूर्य व चन्द्रमा, जो कभी रुकते नहीं हमेशा चलते रहते। तुम इनमें से कौन हो सत्य बताओ।
कालिदास ने कहा - मैं मेहमान हूँ, कृपया पानी पिला दें।
स्त्री बोली - तुम मेहमान कैसे हो सकते हो, संसार में दो ही मेहमान हैं, पहला धन और दूसरा यौवन। इन्हें जाने में समय नहीं लगता। सत्य बताओ कौन हो तुम?
(अब कालिदास सारे तर्क से पराजित हताश तो हो ही चुके थे। )
कालिदास बोले - मैं सहनशील हूं। अब आप पानी पिला दें।
स्त्री ने कहा - नहीं, सहनशील तो दो ही हैं। पहली, धरती जो पापी-पुण्यात्मा सबका बोझ सहती है। उसकी छाती चीरकर बीज बो देने से भी अनाज के भंडार देती है। दूसरे पेड़ जिनको पत्थर मारो फिर भी मीठे फल देते हैं। तुम सहनशील नहीं। सच बताओ तुम कौन हो?
(कालिदास लगभग मूर्च्छा की स्थिति में आ गए और तर्क-वितर्क से झल्लाकर बोले)
कालिदास बोले - मैं हठी हूँ ।
स्त्री बोली - फिर असत्य. हठी तो दो ही हैं- पहला नख और दूसरे केश, कितना भी काटो बार-बार निकल आते हैं। सत्य कहें ब्राह्मण कौन हैं आप?
कालिदास ने कहा - फिर तो मैं मूर्ख ही हूँ ।
स्त्री ने कहा - नहीं तुम मूर्ख कैसे हो सकते? मूर्ख दो ही हैं, पहला राजा जो बिना योग्यता के भी सब पर शासन करता है और दूसरा दरबारी पंडित जो राजा को प्रसन्न करने के लिए ग़लत बात पर भी तर्क करके उसको सही सिद्ध करने की चेष्टा करता है।
(कुछ बोल न सकने की स्थिति में कालिदास वृद्धा के पैर पर गिर पड़े और पानी की याचना में गिड़गिड़ाने लगे)
वृद्धा ने कहा - उठो वत्स (आवाज़ सुनकर कालिदास ने ऊपर देखा तो साक्षात माता सरस्वती वहां खड़ी थी, कालिदास पुनः नतमस्तक हो गए)
माता ने कहा - शिक्षा से ज्ञान आता है न कि अहंकार। तूने शिक्षा के बल पर प्राप्त मान और प्रतिष्ठा को ही अपनी उपलब्धि मान लिया और अहंकार कर बैठे। इसलिए मुझे तुम्हारे चक्षु खोलने के लिए ये स्वांग करना पड़ा।
कालिदास को अपनी गलती समझ में आ गई और भरपेट पानी पीकर वे आगे चल पड़े।
शिक्षा :- विद्वत्ता पर कभी घमण्ड न करें, यही घमण्ड विद्वत्ता को नष्ट कर देता है।
🙏🙏
ReplyDelete🙏🙏💐💐सुप्रभात 🕉️
ReplyDelete🙏ॐ शं.शनिश्चयाय नमः🚩🚩🚩
🙏जय श्री शनिदेव 🚩🚩🚩
🙏आप का दिन मंगलमय हो 🚩🚩🚩
🚩🚩जय माँ सरस्वती 🚩🚩
👌👌👌वाह, बहुत सुन्दर प्रस्तुति, आप का बहुत बहुत धन्यवाद 💐💐
Very nice
ReplyDeleteबढिया
ReplyDeleteकालिदास ☝️ कभी भी देवी सरस्वती के सामने घमंड ना करना
ReplyDeleteJai Ho
ReplyDeleteसुंदर प्रस्तुति
ReplyDeleteऔर उससे भी सुंदर शिक्षा
बहुत जी अच्छी कहानी
ReplyDeleteजय माँ सरस्वती
मां तो मां ही होती है अगर पुत्र से गलती हो रही हो वह गलत रास्ते पर जा रहा है तो मां ही सही मार्गदर्शन कराती है। कालिदास के साथ भी ऐसा
ReplyDeleteही हुआ। हमलोगों के लिए सीख भी यही है की
विद्या पा कर विनम्र बनना चाहिए🙏🙏🙏
Bahut acha
ReplyDeleteविद्वता पर घमंड नहीं।
ReplyDeleteVery nice
ReplyDeleteVery nice
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना भावार्थ सहित 👌👌🙏🚩🙌❣️।
ReplyDeleteविद्या के आगे सब बालक हैं 🕉️।
विद्या है महाधन.. वालके करो उपार्जन 🙏🚩🙌।
जय माँ वीणा पाणी 🪔🌺🐾🙏🚩🏹⚔️📙⚔️🔱🙌🐅
Very nice
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