घर का न घाट का: पंचतंत्र || Ghar ka na Ghat ka : Panchtantra ||

घर का न घाट का

विचित्रचरिताः स्त्रियः

स्त्रियों का चरित्र बड़ा अजीब होता है। स्वजजनों को छोड़कर परकीयों के पास जाने वाली स्त्रियाँ परकीयों से भी ठगी जाती हैं।

घर का न घाट का: पंचतंत्र || Ghar ka na Ghat ka : Panchtantra ||

एक स्थान पर किसान पति-पत्नी रहते थे। किसान वृद्ध था। पत्नी जवान। अवस्था-भेद से पत्नी का चरित्र दूषित हो गया था, उसके चरित्रहीन होने की बात गाँव-भर में फैल गई थी।

एक दिन उसे एकान्त में पाकर एक जवान ठग ने कहा - सुंदरी! मैं विधुर हूँ और तुम्हारे बारे में मैंने बहुत कुछ सुन रखा है। चलो, हम यहाँ से दूर भागकर प्रेम से रहें। किसान-पत्नी को यह बात पसन्द आ गयी। वह दूसरे ही दिन घर से सारा धन आभूषण लेकर आ गई और दोनों दक्षिण दिशा की ओर वेग से चल पड़े। अभी दो कोस ही गए थे कि नदी आ गई।

वहाँ दोनों ठहर गए। जवान ठग के मन में पाप था। वह किसान-पत्नी के धन पर हाथ साफ करना चाहता था। उसने नदी को पार करने के लिए यह सुझाव रखा कि पहले वह सम्पूर्ण धन-ज़ेवर की गठरी बाँधकर दूसरे किनारे रख आएगा, फिर आकर सुन्दरी को सहारा देते हुए पार पहुँचा देगा। किसान-पत्नी मूर्ख थी, वह बात मान गई। धन-आभूषणों के साथ वह उसके कीमती कपड़े भी ले गया। किसान पत्नी निपट नग्न रह गई ।

इतने में वहाँ एक गीदड़ी आई। उसके मुख में माँस का टुकड़ा था। वहाँ आकर उसने देखा कि नदी के किनारे एक मछली बैठी है। उसे देखकर वह माँस के टुकड़े को वहीं छोड़ मछली मारने किनारे तक गई। इसी बीच एक गिद्द आकाश से उतरा और झपटकर माँस का टुकड़ा दबोचकर ले गया। उधर मछली भी गीदड़ी को आता देख नदी में कूद पड़ी। गीदड़ी दोनों ओर से खाली हो गई। माँस का टुकड़ा भी गया और मछली भी गई। उसे देख नग्न बैठी किसान-पत्नी ने कहा- गीदड़ी! गिद्द तेरा माँस ले गया और मछली पानी में कूद गई, अब आकाश की ओर क्या देख रही है? गीदड़ी ने भी प्रत्युत्तर देने में शीघ्रता की। वह बोली-तेरा भी तो यही हाल है। न तेरा पति तेरा अपना रहा और नही वह सुन्दर युवक तेरा बना। वह तेरा धन लेकर चला जा रहा है।

मगर यह कहानी सुना ही रहा था कि एक दूसरे मगर ने आकर सूचना दी कि मित्र! तेरे घर पर भी दूसरे मगरमच्छ ने अधिकार कर लिया है। यह सुनकर मगर और भी चिन्तित हो गया। उसके चारों ओर विपत्तियों के बादल उमड़ रहे थे। उन्हें दूर करने का उपाय पूछने के लिए वह बन्दर से बोला- मित्र ! मुझे बता कि साम-दाम-भेद आदि में से किस उपाय से अपने घर पर फिर अधिकार करूँ ।

बन्दर - कृतघ्न! में तुझे कोई उपाय नहीं बताऊँगा। अब मुझे मित्र भी मत कह। तेरा विनाश-काल आ गया है। सज्जनों के वचन पर जो नहीं चलता उसका विनाश अवश्य होता है। जैसे घण्टोष्ट्र का हुआ था। मगर ने पूछा-कैसे? तब बन्दर ने यह कहानी सुनाई-

घमंड का सिर नीचा

To be continued ...

15 comments:

  1. बहुत सुन्दर लिखा है जो हकीकत है

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  2. रोचक उदारहण सहित अच्छी शिक्षा

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  3. बहुत सुंदर और ज्ञानवर्धक और सत्य

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  4. Very Nice Information

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  5. अच्छी कहानी

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  6. 🙏🏻🪷 जय श्री राधे कृष्णा रूपा जी 🪷🙏🏻
    Very Nice 👌🏻👍

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  7. सुंदर रचना

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  8. शिक्षप्रद कहानी।

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  9. बहुत ही ज्ञानवर्धक

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