हमारी संस्कृति और सोशल मिडिया

हमारी संस्कृति और सोशल मिडिया

आज के इस आधुनिक युग के भागदौड़ भरी जिंदगी और सोशल मिडिया ने लोगों को लोगों से दूर कर दिया है, जिसका सीधा प्रभाव मनुष्य के विचारों पर पड़ने एवं दिखने लगा है। 

हमारी संस्कृति और सोशल मिडिया

जब हम अपने बुजुर्गों के साथ बैठते हैं, तो अक्सर उनके अनुभव तथा अन्य लोगों की कार्यशैली की विशेषताएं आदि सुनने को मिलते हैं, जो आज हमारे जमाने से बिल्कुल विपरित हैं। उनके  गुज़रे समय से हमें सुन कर महसूस होता है कहाँ आज हम अपनों को छोड़ कर अपने मित्रों को सिर्फ मतलब के समय याद करते हुए आज सिर्फ उंगलियों से चलने वाले आधुनिक मशीनों पर निर्भर हो गए हैं। दोस्तों  के नाम पर सिर्फ़ socail media के जुड़े हुए लोग हैं। हमारे पास प्यार के जगह सिर्फ दिखावे से भरे लोग हैं, इस छोटे से मोबाइल आईपैड और लैपटॉप में सिर्फ नम्बर ईमेल व्हाट्सएप बन कर। परन्तु वास्तव में बिना पैसे के लालच के सहयोग करने वाला हमारे पास  कोई  नहीं है।  

जानते हैं, ऐसा क्यों है? कभी विचार किया ये सब क्यों और कैसे बदला?

पहले भी लोग अपनी आजीविका के लिए कार्य किया करते थे, व्यस्त रहा करते थे, पर अपनी दैनिक दिनचर्या में अपनों के लिए, अपने परिजनों के लिए, मित्रोंं  के लिए समय अवश्य निकालते थे।  हर परिवार में एक समय का भोजन अवश्य साथ किया करते थे।

हमारी संस्कृति और सोशल मिडिया

वजह सिर्फ इतनी सी हुआ करती थी कि, परिवार के लोग आपस मे कुछ पल अपने अपने विचार, अपनी समस्या, अपनी खुशी एक दूसरे से सांझा कर सकें। लोग सुबह घूमने टहलने जाते थे जिससे मित्रों से मिल सकें, उनके जीवन में होने वाले सुख दुख के भागी बन सकें। धन - दौलत से नहीं कम से कम उसको अपना समय अपना साथ देकर सहयोग प्रदान कर सके और देखिए अपने घर के बुजुर्गों को आज भी उनके पास आपके मोबाइल में आने वाले अनुभव समस्याओं के समाधान से ज्यादा कारगर उपाय उनके पास उपलब्ध हैं। ज्ञान का भंडार है उनके पास। जहाँ एक दादी माँ के पास घरेलू उपचार की विधियां हैं, वहीं दादा जी के पास जीवन के उतार चढ़ाव में संयमित हो कर जीने की कला है। आज भी उनके पास आपसे ज्यादा मित्र हैं, जो इस उम्र में भी एक दूसरे को हौसला प्रदान करते हैं और आपके पास क्या है? सोचिएगा एक मिनिट का समय निकाल कर जरूर इस बात को ?

इंटरनेट पर हम सिर्फ समस्याओं के समाधान ढूढ पाएंगे, नए नए व्यापार के तरीके खोज पाएंगे, अपनी आमदनी बढ़ाने के प्रयोग जान पाएंगे, लोगों से सिर्फ सोशल मीडिया पर अत्यधिक जुड़ पाएंगे, पर मन का संतोष नहीं पा पाएंगे। कोई सुख दुख में दोस्त करीब नहीं खड़ा कर पाएंगे। सबसे बड़ी उलझन आज के जीवन की पहले की तरह अब बच्चों में संस्कार नहीं दे पाएंगे क्योंकि जब आपके पास स्वयं अपने ही लिए समय नहीं, अपने विचारों के लिए समय नहीं तो कैसे आप इस आधुनिकता के बढ़ते वातावरण में अपने परिबार अपने बच्चो के साथ अपने जीवन के अनुभव सांझा करँगे। वक्त है रोक लो अपने कदमों को इस भगदौड़ भरी जिंदगी में। भाग कर बहुत आगे निकलने से पहले एक बार ये अवश्य सोंचे कि कामयावी पर कोई जश्न मनाने वाला साथ न हो तो किस काम की कामयाबी क्योंकि जिस तरह हम व्यस्त होंगे हमसे जुड़े लोग हमारे दोस्त भी उसी तरह स्वयम ही स्वयम में व्यस्त हो जाएंगे। 

विचारणीय है कि श्रद्धा हो या आरोही हो या कोई सपना ये क्यों अपनी दिशा अपने संस्कृति संस्कार से विमुख हो रही हैं? क्यों किसी और पर अंधविश्वास कर रही हैं? क्यों किसी के छल को अपना भविष्य मान रही है?

सोशल मिडिया का समाज पर प्रभाव

हमारी संस्कृति और सोशल मिडिया

अब यहाँ इस लेख से तात्पर्य यह बिल्कुल नहीं है कि आधुनिकता के इस दौर में हम हम पीछे रह जाएं। जहां, सोशल मीडिया मानव जीवन का एक अभिन्न अंग बन चूका है, स्थिति यह हो गई है कि सोशल मीडिया के बगैर कोई अपने दिनचर्या की कल्पना भी नहीं कर सकता। सोशल मीडिया की ताकत का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है, कि वह किसी भी समाज की दशा को सुधार भी सकता है और बिगाड़ भी सकता है। वहां, यह उपयोगकर्ता पर निर्भर करता है कि वह सोशल मीडिया का उपयोग किस तरह कर रहा है। यदि कुछ जानने और सीखने के उद्देश्य से इसका उपयोग किया जाए, तो एक उच्च और आदर्श जीवन की कल्पना की जा सकती है। परंतु वहीं अगर केवल मनोरंजन और टाइम पास करने के लिए इसका उपयोग किया जाए, तो हम अपने कीमती समय को गंवा बैठेंगे और कुछ भी नहीं सीख पाएंगे।

19 comments:

  1. आधुनिक युग मे बढ़ते गैजेट्स का चलन जितना सुविधा जनक है उससे अधिक घातक है

    ReplyDelete
  2. पवन कुमारDecember 7, 2022 at 11:47 AM

    बहुत ही सुंदर और सोंचने वाली बात लिखी हैं आपने । दादी नानी के नुस्खे और कहानियां
    तथा उनका अनुभव बहुत कुछ सिखाती थी।
    बुजुर्गों से संस्कार सीखने को मिलती थी ।
    समाज मे कैसे एक दूसरे की सुख दुख में
    सब एक साथ खरे रहने की प्रेरणा देते थे।
    पैसे से ज्यादा इंसान की कीमत उनसे सीखने
    को मिलती थी । प्रेम और भाईचारा उनसे
    सीखने को मिलती थी । सोशल मीडिया तो
    हरेक परिवार में दूरी पैदा करवा दी है।
    बहुत ही अच्छी और अनुकरणीय लेख🙏

    ReplyDelete
  3. Hum log bachpan se padhte aa rahe hain...vigyan vardaan ya abhishaap...

    Yahan bhi wahi baat hai...taqniki ka bhi ager buddhi vivek ke saath sadupyog Kiya

    ReplyDelete
  4. Jaye to yah vardan hai aur galat upyog ho to abhishaap ..

    ReplyDelete
  5. लोगों को अपनी संस्कृति में जीना सीखना होगा वासुदैव कुटुंबकम 👍🏻

    ReplyDelete
  6. इसके दुष्प्रभाव को समझना होगा

    ReplyDelete
  7. बिल्कुल सही कहा आपने।

    ReplyDelete
  8. सोशल मीडिया के साथ सामाजिकता एवम संस्कार भी आवश्यक हैं।

    ReplyDelete
  9. अच्छा आलेख

    ReplyDelete
  10. Time, the time that flies by, does not allow for a moment to think about what we are doing, what path we choose, where it will lead us, what we lose along the way, whether we hurt others along the way... It is wonderful to go through life in such a way, so that no one would cry because of us, that's what my grandparents used to say, today we miss the closeness of other people, we miss their wisdom.
    Most of the time we live in the present moment.
    The perfect ending - a summary of the topic.
    Social media - if we use them only to entertain and kill time, we will lose our precious time forever and we will not be able to learn anything.
    Going through life I learn all the time - that's why I really appreciate your work and what you write - because it is an inspiration to look for something new that I don't know yet. Thank you.

    ReplyDelete
  11. Very nice.👌👌

    ReplyDelete