गीदड़ गीदड़ ही रहता है : पंचतंत्र || Gidar Gidar hi rahta hai: Panchtantra ||

गीदड़ गीदड़ ही रहता है

यस्मिन् कुले त्वमुत्पन्नो गजस्तत्र न हन्यते ।

गीदड़ का बच्चा शेरनी का दूध पीकर भी गीदड़ ही रहता है।

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एक जंगल में शेर-शेरनी का युगल रहता था। शेरनी के दो बच्चे हुए। शेर प्रतिदिन हिरनों को मारकर शेरनी के लिए लाता था। दोनों मिलकर पेट भरते थे। एक दिन जंगल में बहुत घूमने बाद भी शाम होने तक शेर के हाथ कोई शिकार न आया। वह खाली हाथ वापस आ गया था। तो उसे रास्ते में गीदड़ का बच्चा मिला। बच्चे को देखकर उसके मन में दया आ गई; जीवित ही अपने मुख में सुरक्षापूर्वक लेकर वह घर आ गया और शेरनी के सामने उसे रखते हुए बोला- प्रिय ! आज भोजन तो कुछ मिला नहीं। रास्ते में गीदड़ का बच्चा खेल रहा था, उसे जीवित ही ले आया हूँ।

तुझे भूख लगी है तो इसे खाकर पेट भर ले कल दूसरा शिकार लाऊंगा। शेरनी बोली- प्रिय! जिसे तुमने बालक जानकर नहीं मारा, उसे मारकर मैं कैसे पेट भर सकती हूँ। में भी इसे बालक मानकर ही पाल लूँगी। समझ लूँगी कि यह मेरा तीसरा बच्चा है। गीदड़ का बच्चा भी शेरनी का दूध पीकर खूब पुष्ट हो गया, और शेर के अन्य दो बच्चों के साथ खेलने लगा। शेर-शेरनी तीनों को प्रेम से एक समान रखते थे।

कुछ दिन बात उस वन में एक मस्त हाथी आ गया। उसे देखकर शेर के दोनों बच्चे हाथी पर गुर्राते हुए उसकी ओर लपके। गीदड़ के बच्चे ने दोनों को ऐसा करने से मना करते हुए कहा- यह हमारा कुल-शत्रु है। इसके सामने नहीं जाना चाहिए। शत्रु से दूर रहना ही ठीक है। यह कहकर वह घर की ओर भागा। शेर के बच्चे भी निरुत्साहित होकर पीछे लौट आए।

घर पहुँचकर शेर के दोनों बच्चों ने माँ-बाप से गीदड़ के बच्चे के भागने की शिकायत करते हुए उसकी कायरता का उपहास किया। गीदड़ का बच्चा इस उपहास से बहुत क्रोधित हो गया। लाल-लाल आँखें करके और होंठों को फड़फड़ाते हुए वह दोनों को जली-कटी सुनाने लगा। तब, शेरनी ने उसे एकान्त में बुलाकर कहा कि इतना प्रलाप करना ठीक नहीं, वे तो तेरे छोटे भाई हैं, उनकी बात टाल देना ही अच्छा है।

गीदड़ का बच्चा शेरनी के समझाने-बुझाने पर और भी भड़क उठा और बोला- मैं बहादुरी में, विद्या में या कौशल में उनसे किस बात में कम हूँ, जो वे मेरी हँसी उड़ाते हैं, मैं उन्हें इसका मज़ा चखाऊँगा, उन्हें मार डालूँगा।

यह सुनकर शेरनी ने हँसते-हँसते कहा- तू बहादुर भी है, विद्वान भी सुन्दर भी है, लेकिन जिस कुल में तेरा जन्म हुआ है उसमें हाथी नहीं है, मारे जाते। समय आ गया है कि अब तुझसे सच बात कह ही देनी चाहिए। तू वास्तव में गीदड़ का बच्चा है। मैंने तुझे अपना दूध पिलाकर पाला है। अब इससे पहले कि तेरे भाई इस सचाई को जानें, तू यहाँ से भागकर अपने स्वजातियों से मिल जा, अन्यथा वे तुझे जीता नहीं छोड़ेंगे।

यह सुनकर वह डर से काँपता हुआ अपने गीदड़-दल में आ मिला। इसी तरह राजा ने कुम्भकार से कहा कि तू भी, इससे पहले कि अन्य राजपुत्र तेरे कुम्हार होने का भेद जानें और तुझे मार डालें तू यहाँ से भागकर कुम्हारों से मिला जा ।

कहानी सुनाने के बाद बन्दर ने मगरमच्छ से कहा-पूर्ती तूने स्त्री के कहने पर मेरे साथ विश्वासघात किया। स्त्रियों का विश्वास नहीं करना चाहिए। उसके लिए जिसने सब कुछ का परित्याग कर दिया था उसे वह छोड़ गई थी।

मगर ने पूछा- कैसे?

बन्दर ने इसकी पुष्टि में लंगड़े और ब्राह्मणी की यह प्रेम-कथा सुनाई:

स्त्री का विश्वास

To be continued ...

14 comments:

  1. कहानियों का संग्रह, पंचतंत्र को फिर से जीवित कर रही हैं आप।👌

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  2. अच्छी कहानी 👌👍

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  3. पवन कुमारNovember 26, 2022 at 3:25 PM

    बहुत ही ज्ञानवर्धक कहानी है। गनीमत यह
    रहा कि शेरनी माँ का फर्ज निभाते हुए उसे
    सही सलामत छोर दिया।
    🌹🙏गोविंद🙏🌹

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  4. बेहद शिक्षाप्रद कहानी 👍🏻

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  5. अपनी वास्तविकता को नहीं भूलना चाहिए,बल्कि गर्व करना चाहिए।

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  6. बढ़िया कथा

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