माता वैष्णो देवी || Mata Vaishno Devi ||

माता वैष्णो देवी (Mata Vaishno Devi)

वैष्णो देवी मंदिर शक्ति को समर्पित पवित्रतम हिंदू मंदिरों में से एक है, जो भारत के जम्मू और कश्मीर में त्रिकुटा या त्रिकूट पर्वत पर स्थित है। इस धार्मिक स्थल की आराध्या देवी वैष्णो देवी को सामान्यतः माता रानी और वैष्णवी के नाम से भी जाना जाता है।

माता वैष्णो देवी || Mata Vaishno Devi ||

यह मंदिर जम्मू कश्मीर राज्य के उत्तर भाग में कटरा नगर के समीप अवस्थित है। यह उत्तरी भारत में सबसे पूज्यनीय पवित्र स्थलों में से एक है। मंदिर 5200 फीट की ऊंचाई पर कटरा से लगभग 12 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।हर वर्ष लाखों तीर्थयात्री इस मंदिर का दर्शन करते हैं और यह भारत में तिरुमला वेंकटेश्वर मंदिर के बाद दूसरा सर्वाधिक देखे जाने वाला तीर्थस्थल है। इस मंदिर की देखरेख श्री माता वैष्णो देवी श्राइन बोर्ड करता है।

माता वैष्णो देवी की उत्पत्ति

पौराणिक कथा के अनुसार जब माता असुरों का संहार करने में व्यस्त थीं, तो माता के 3 मूल रूप माता महाकाली, माता महालक्ष्मी और माता महासरस्वती एक दिन इकट्ठे हुए और उन्होंने अपने दिव्य आध्यात्मिक शक्ति योग यानी अपने तेज को एकत्रित करके परस्पर मिला दिया, तभी उस स्थान से जहां तीनों के तेज मिलकर एकरूप हुए, आश्चर्यचकित करने वाली दिव्य ज्योति ने स्वरूप धारण कर लिया और उन तीनों के तेज के मिलने से अति सुंदर कन्या प्रकट हुईं। प्रकट होते ही उस कन्या ने उनसे पूछा- "मुझे क्यों बनाया गया है"? देवियों ने उन्हें समझाया, उन्होंने उसे धरती पर रहकर सद्गुरु एवं सदाचार के स्थापना, प्रचार-प्रसार एवं रक्षा हेतु अपना जीवन बिताने के लिए बनाया है।देवियों ने कहा -"अब तुम भारत के दक्षिण में रह रहे हमारे परम भक्त रत्नाकर और उनकी पत्नी के घर जन्म लेकर धरती पर आकर सत्य एवं धर्म की स्थापना करो, और स्वयं भी अध्यात्मिक साधना में लीन होकर चेतना के उच्चतम स्तर को प्राप्त करो। एक बार जब तुमने चेतना के उच्चतम स्तर को प्राप्त कर लिया तो विष्णु जी में मिलकर उनमें लीन होकर एक हो जाओगी।" ऐसा कहकर तीनों देवियों ने कन्या को वरदान दिए। कुछ समय उपरांत रत्नाकर और उनकी पत्नी के घर कन्या ने जन्म लिया।

माता वैष्णो देवी || Mata Vaishno Devi ||

पति-पत्नी ने कन्या का नाम वैष्णवी रखा।कन्या में अपने शैशव काल से ही ज्ञान अर्जित करने की जिज्ञासा रही। ज्ञान प्राप्त करने की उसकी भूख ऐसी थी कि किसी भी प्रकार की शिक्षा दीक्षा से उसे संतुष्ट ना होती। अंततः वैष्णवी ने ज्ञान प्राप्ति के लिए अपने मन में चिंतन लीन होना आरंभ कर दिया और शीघ्र ही ध्यान लगाने की कला सीख ली और समझ गई कि चिंतन मनन और पश्चाताप स्वरूप तपस्या से ही वह अपने महान लक्ष्य तक पहुंच सकेगी। इस तरह वैष्णवी ने घरेलू सुखों का त्याग कर दिया और तपस्या के लिए घने जंगलों में चली गई। उन्हीं दिनों भगवान राम अपने14 वर्ष के वनवास काल में वैष्णवी से आकर मिले तो, वैष्णवी ने उन्हें एकदम पहचान लिया कि, वह साधारण व्यक्ति नहीं बल्कि भगवान विष्णु के अवतार हैं‌। वैष्णवी ने पूरी कृतज्ञता के साथ उनसे उन्हें अपने आप में मिला लेने का निवेदन किया ताकि वह परम सृजक में मिलकर एकम-एक हो जाए।

माता वैष्णो देवी || Mata Vaishno Devi ||

जबकि राम ने इसे उचित समय ना जानकर वैष्णवी को रोक दिया और उत्साहित करते हुए कहा कि वह उसे वनवास खत्म होने पर दोबारा मिलेंगे और उस समय यदि उसने उन्हें पहचान लिया तो वह उसकी इच्छा पूर्ण कर देंगे। अपने वचनों को सत्य करते हुए युद्ध जीतने के बाद राम उसे दोबारा मिले परंतु इस बार राम एक बूढ़े आदमी के भेष में मिले। दुर्भाग्य से इस बार वैष्णवी उन्हें पहचान ना पाई और खींझ कर उन्हें भला-बुरा कहने लगी और दुखी हो गईं। इस पर भगवान राम ने उन्हें सांत्वना दी कि सृजक से मिलकर उनमें एक हो जाने का अभी उसके लिए उचित समय नहीं आया है और अंततः वह समय कलयुग में आएगा, जब वह (राम) कल्कि का अवतार धारण करेंगे। भगवान राम ने उसे तपस्या करने का निर्देश दिया और त्रिकुटा पर्वत श्रेणियों की तलहटी में आश्रम स्थापित करने और अपनी आध्यात्मिक शक्ति का स्तर उन्नत करने और मानव मात्र को आशीर्वाद देने और निर्धनों और वंचित लोगों के दुखों को दूर करने की प्रेरणा दी और कहा कि तभी विष्णु उसे अपने में समाहित करेंगे। उसी समय वैष्णवी उत्तर भारत की ओर चल पड़ी और अनेक कठिनाइयों को चीरती हुई त्रिकुटा पर्वत की तलहटी में आ पहुंची। वहां पहुंचकर वैष्णवी ने आश्रम स्थापित किया और चिंतन मनन करते हुए तपस्या में लीन रहने लगीं। 

माता वैष्णो देवी || Mata Vaishno Devi ||

जैसा कि राम जी ने भविष्यवाणी की थी उनकी महिमा दूर-दूर तक फैल गई और झुंड के झुंड लोग उनके पास आशीर्वाद लेने के लिए उनके आश्रम में आने लगे। समय बीतने पर महायोगी गुरु गोरखनाथ जी जिन्होंने बीते समय में भगवान राम और वैष्णवी के बीच घटित संवाद को घटते हुए देखा था, वह यह जानने के लिए उत्सुक हो उठे कि क्या वैष्णवी अध्यात्मिक उच्चता को प्राप्त करने में सफल हुईं हैं या नहीं। यह सच्चाई जानने के लिए उन्होंने अपने विशेष कुशल शिष्य भैरवनाथ को भेजा। आश्रम को ढूंढ कर भैरवनाथ ने छिपकर वैष्णवी की निगरानी करना आरंभ कर दिया और जान गया कि यद्यपि वह साध्वी हैं, पर हमेशा अपने साथ धनुष-बाण रखती हैं और हमेशा लंगूर एवं भयंकर दिखने वाले शेर से घिरी रहती हैं। भैरवनाथ वैष्णवी की असाधारण सुंदरता पर आसक्त हो गया वह अपनी सारी सद्बुद्धि को भूलकर वैष्णवी पर विवाह के लिए दबाव डालने लगा। इसी समय वैष्णवी के परम भक्त श्रीधर ने सामूहिक भंडारे का आयोजन किया जिससे समूचे गांव और महायोगी गुरु गोरखनाथ जी को उनके सभी अनुयायियों को भैरवनाथ सहित निमंत्रण दिया गया। सामूहिक भोज के दौरान भैरवनाथ ने वैष्णवी का अपहरण करना चाहा परंतु वैष्णवी ने भरसक यत्न करके उसे झिंझोड़कर  धकेल दिया। अपने यत्न में असफल रहने पर वैष्णवी ने पर्वतों में पलायन कर जाने का निर्णय कर लिया ताकि बिना किसी विघ्न-बाधा के अपनी तपस्या कर सके। फिर भी भैरवनाथ ने उस लक्ष्य स्थान तक उनका पीछा किया।

माता वैष्णो देवी || Mata Vaishno Devi ||

आजकल के बाणगंगा, चरण पादुका और अर्ध -कुंवारी स्थानों पर पड़ाव के बाद अंततः देवी पवित्र गुफा मंदिर में जा पहुंची। जब भैरवनाथ ने देवी का संघर्ष से बचने के उनके प्रयासों के बावजूद पीछा करना ना छोड़ा तो देवी भी उसका वध करने के लिए विवश हो गयीं। जब माता गुफा के मुहाने के बाहर थीं तो उन्होंने भैरवनाथ का सिर धड़ से अलग कर दिया और अंततः भैरवनाथ मृत्यु को प्राप्त हुआ। भैरवनाथ का सिर दूर की पहाड़ी की चोटी पर धड़ाम से गिरा। अपनी मृत्यु के समय भैरव नाथ ने अपने उद्देश्य की व्यर्थता को पहचान लिया और देवी से क्षमा प्रार्थना करने लगा। सर्वशक्तिमान माता को भैरवनाथ पर दया आ गई और उन्होंने उसे वरदान दिया कि देवी के प्रत्येक श्रद्धालु की देवी के दर्शनों के बाद भैरव नाथ के दर्शन करने पर ही यात्रा पूर्ण होगी।ओ इसी बीच वैष्णवी ने अपने भौतिक शरीर को त्याग देने का निर्णय किया और तीन पिण्डियों वाली एक शिला के रूप में परिवर्तित हो गईं और सदा के लिए तपस्या में तल्लीन हो गईं।

इस तरह तीन सिरों वाली या तीन पिण्डियों वाली साढ़े 5 फुट की लंबी शिला स्वरूप वैष्णवी के दर्शन श्रद्धालुओं की यात्रा का अंतिम पड़ाव होता है। इस तरह पवित्र गुफा में ये तीन पिण्डियां पवित्रतम स्थान है। यह पवित्र गुफा माता वैष्णो देवी जी के मंदिर के रूप में विश्व प्रसिद्ध है, और सभी लोगों में सम्मान प्राप्त कर रही है।

माता वैष्णो देवी || Mata Vaishno Devi ||

आज नवरात्रि का पांचवां दिन है

🙏🏻माँ स्कंदमाता🙏🏻
ज्योतिषीय मान्यताओं के अनुसार देवी स्कंदमाता बुध ग्रह को नियंत्रित करती हैं। देवी की पूजा से बुध ग्रह के बुरे प्रभाव कम होते हैं।
🙏🏻मंत्र
ॐ देवी स्कन्दमातायै नमः॥
🙏🏻प्रार्थना
सिंहासनगता नित्यं पद्माञ्चित करद्वया।
शुभदास्तु सदा देवी स्कन्दमाता यशस्विनी॥
🙏🏻स्तुति
या देवी सर्वभू‍तेषु माँ स्कन्दमाता रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
🚩जय माता दी🚩🙏🏻

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20 comments:

  1. जय मां वैष्णो देवी।
    🕉️🚩💐🙏

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  2. जय माता दी
    जय हो मां वैष्णो देवी जी

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  3. जय माँ वैष्णो देवी

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  4. जय माता दी
    माता रानी के आशीर्वाद से आप और आपका परिवार सदैव खुश, तंदुरुस्त और सभी दुखों से दूर रहे

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    1. बहुत बहुत शुक्रिया। माता रानी की कृपा सबपर बनी रहे।

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  5. जय मां वैष्णो देवी 🙏🙏

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  6. Very good. Yor article takes to correct path.

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  7. प्रेम से बोलो जय माता दी🙏

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