हितैषी की सीख मानो : पंचतंत्र

हितैषी की सीख मानो

सुहृदां हितकामानां न करोतीह यो वचः। 
सकूम इव दुर्बुधिः काष्ठाद् भ्रष्टो विनश्यति ।। 

हितचिन्तक मित्रों की बात पर जो ध्यान नहीं देता वह मूर्ख नष्ट हो जाता है।

हितैषी की सीख मानो : पंचतंत्र


    एक तालाब में कंबूग्रिव नाम का कछुआ रहता था। उसी तालाब में प्रति दिन आने वाले दो हंस, जिनका नाम संकट और विकट था, उसके मित्र थे। तीनों में इतना स्नेह था कि रोज शाम होने तक तीनों मिलकर बड़े प्रेम से कथालाप किया करते थे।
    कूछ दिन बाद वर्षा के अभाव में वह तालाब सूखने लगा। हंसों को यह देखकर कछुए से बड़ी सहानुभूति हुई। कछुए ने भी आंखों में आंसू भरकर कहा - अब यह जीवन अधिक दिन का नहीं है। पानी के बिना इस तालाब में मेरा मरण निश्चित है। तुमसे कोई उपाय बन पाए तो करो। विपत्ति में धैर्य ही काम आता है। यत्न से सब काम सिद्ध हो जाते हैं। 


हंस और मूर्ख कछुआ की कहानी: पंचतंत्र


    बहुत विचार के बाद यह निश्चय किया गया कि दोनों हंस जंगल से एक बांस की छड़ी लाएंगे। कछुआ उस छड़ी के मध्य भाग को मुख से पकड़ लेगा। हंसों का यह काम होगा कि वे दोनों ओर से छड़ी को मजबूती से पकड़ कर दूसरे तालाब के किनारे तक उड़ते हुए पहुंचेंगे। 
    यह निश्चित होने के बाद दोनों हंसों ने कछुए को कहा - मित्र! हम तुझे इस प्रकार उड़ते हुए दूसरे तालाब तक ले जाएंगे, किंतु एक बात का ध्यान रखना कहीं बीच में लकड़ी का छोड़ मत देना, नहीं तो तुम गिर जाओगे। कुछ भी हो पूरा मौन बनाए रखना। प्रलोभनों की ओर ध्यान ना देना। यही तेरी परीक्षा का मौका है। 
    हंसों ने लकड़ी को उठा लिया। कछुए ने उसे मध्य भाग से दृढ़तापूर्वक पकड़ लिया। इस तरह निश्चित योजना के अनुसार वे आकाश में उड़े जा रहे थे कि कछुए ने नीचे झुककर नागरिकों को देखा जो गर्दन उठाकर आकाश में हंसों के बीच किसी चक्राकार वस्तु को उड़ता देखकर कौतूहलवश शोर मचा रहे थे। 
हंस और मूर्ख कछुआ की कहानी: पंचतंत्र
    उस शोर को सुनकर कंबूग्रिव से नहीं रहा गया। वह बोल उठा - अरे! यह कैसा शोर है। 
    यह कहने के लिए मुंह खोलने के साथ ही कछुए के मुंह से लकड़ी की छड़ी छूट गई और कछुआ जब नीचे गिरा तो लोगों ने उसकी बोटी बोटी कर डाली। 
    टिटिहरी ने यह कहानी सुनाकर कहा - इसलिए मैं कहती हूं कि अपने हितचिंतकों की राय पर न चलने वाला व्यक्ति नष्ट हो जाता है। बल्कि बुद्धिमान में भी वही बुद्धिमान सफल होते हैं जो बिना आई हुई विपत्ति की पहले से ही उपाय सोचते हैं और वे भी उसी प्रकार सफल होते हैं जिनकी बुद्धि तत्काल अपनी रक्षा का उपाय सोच लेती है। पर "जो होगा, देखा जाएगा" कहने वाले शीघ्र ही नष्ट हो जाते हैं। 
    टिटिहरे ने पूछा - यह कैसे ?
    टिटिहरी ने कहा - सुनो :

दूरदर्शी बनो

                                                          To be continued ...

11 comments:

  1. आज की कहानी में एकदम सही बात की गई है कि हितैषी की राय अवश्य लेनी/माननी चाहिए। परंतु इस दुनिया मे कौन आपका सच्चा हितैषी है,यह समझना भी बहुत महत्वपूर्ण है।

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  2. आजकल मुफ्त में सही सलाह देने वाले विलुप्तप्राय अवस्था में हैं 😉

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  3. आज कल हितैसी को लोग दुश्मन मानते हैं

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  4. अपनों की राय या सलाह को गंभीरता से लेते हुए स्वयं भी उस राय पर विचार करना चाहिए। अच्छी सीख देती कहानी

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  5. बहुत बढ़िया 👍👌

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