महान गणितज्ञ लीलावती / Great Mathematician Lilavati

परम विदुषी भारतीय नारी - आचार्या लीलावती

गणितज्ञ लीलावती कौन थीं और उनका बीज गणित में क्या योगदान है?

गणितज्ञ लीलावती का नाम हममें से अधिकांश लोगों ने नहीं सुना है। उनके बारे में कहा जाता है कि वो पेड़ के पत्ते तक गिन लेती थी। शायद ही कोई जानता हो कि आज यूरोप सहित विश्व के सैंकड़ो देश जिस गणित की पुस्तक से गणित को पढ़ा रहे हैं, उसकी रचयिता भारत की एक महान गणितज्ञ महर्षि भास्कराचार्य की पुत्री "लीलावती" है।

महान गणितज्ञ लीलावती / Great Mathematician Lilavati

आइए जानते हैं महान गणितज्ञ लीलावती के बारे में जिनके नाम से गणित को पहचाना जाता था।

दसवीं सदी की बात है, दक्षिण भारत में भास्कराचार्य नामक गणित और ज्योतिष विद्या के एक बहुत बड़े पंडित थे। उनकी कन्या का नाम लीलावती था। वही उनकी एकमात्र संतान थी। उन्होंने ज्यो‍तिष की गणना से जान लिया कि ‘वह विवाह के थोड़े दिनों के ही बाद विधवा हो जाएगी।’ उन्होंने बहुत कुछ सोचने के बाद ऐसा लग्न खोज निकाला, जिसमें विवाह होने पर कन्या विधवा न हो। विवाह की तिथि निश्चित हो गई। जलघड़ी से ही समय देखने का काम लिया जाता था।

एक बड़े कटोरे में छोटा-सा छेद कर पानी के घड़े में छोड़ दिया जाता था। सूराख के पानी से जब कटोरा भर जाता और पानी में डूब जाता था, तब एक घड़ी होती थी। पर विधाता का ही सोचा होता है। लीलावती सोलह श्रृंगार किए सजकर बैठी थी, सब लोग उस शुभ लग्न की प्रतीक्षा कर रहे थे कि एक मोती लीलावती के आभूषण से टूटकर कटोरे में गिर पड़ा और सूराख बंद हो गया; शुभ लग्न बीत गया और किसी को पता तक न चला। विवाह दूसरे लग्न पर ही करना पड़ा। लीलावती विधवा हो गई, पिता और पुत्री के धैर्य का बांध टूट गया। लीलावती अपने पिता के घर में ही रहने लगी।

पुत्री का वैधव्य-दु:ख दूर करने के लिए भास्कराचार्य ने उसे गणित पढ़ाना आरंभ किया। उसने भी गणित के अध्ययन में ही शेष जीवन की उपयोगिता समझी। थोड़े ही दिनों में वह उक्त विषय में पूर्ण पंडिता हो गई। पाटी-गणित, बीजगणित और ज्योतिष विषय का एक ग्रंथ ‘सिद्धांतशिरोमणि’ भास्कराचार्य ने बनाया है। इसमें गणित का अधिकांश भाग लीलावती की रचना है। पाटीगणित के अंश का नाम ही भास्कराचार्य ने अपनी कन्या को अमर कर देने के लिए ‘लीलावती’ रखा है।

महान गणितज्ञ लीलावती / Great Mathematician Lilavati

भास्कराचार्य ने अपनी बेटी लीलावती को गणित सिखाने के लिए गणित के ऐसे सूत्र निकाले थे, जो काव्य में होते थे। वे सूत्र कंठस्थ करने होते थे। उसके बाद उन सूत्रों का उपयोग करके गणित के प्रश्न हल करवाए जाते थे।कंठस्थ करने के पहले भास्कराचार्य लीलावती को सरल भाषा में, धीरे-धीरे समझा देते थे। वे बच्ची को प्यार से संबोधित करते चलते थे, “हिरन जैसे नयनों वाली प्यारी बिटिया लीलावती, ये जो सूत्र हैं…।” बेटी को पढ़ाने की इसी शैली का उपयोग करके भास्कराचार्य ने गणित का एक महान ग्रंथ लिखा, उस ग्रंथ का नाम ही उन्होंने “लीलावती” रख दिया।

आजकल गणित एक शुष्क विषय माना जाता है, पर भास्कराचार्य का ग्रंथ ‘लीलावती‘ गणित को भी आनंद के साथ मनोरंजन, जिज्ञासा आदि का सम्मिश्रण करते हुए कैसे पढ़ाया जा सकता है, इसका नमूना है। लीलावती का एक उदाहरण देखें- ‘निर्मल कमलों के एक समूह के तृतीयांश, पंचमांश तथा षष्ठमांश से क्रमश: शिव, विष्णु और सूर्य की पूजा की, चतुर्थांश से पार्वती की और शेष छ: कमलों से गुरु चरणों की पूजा की गई। अये, बाले लीलावती, शीघ्र बता कि उस कमल समूह में कुल कितने फूल थे..?‘

उत्तर-120 कमल के फूल।

वर्ग और घन को समझाते हुए भास्कराचार्य कहते हैं ‘अये बाले,लीलावती, वर्गाकार क्षेत्र और उसका क्षेत्रफल वर्ग कहलाता है। दो समान संख्याओं का गुणन भी वर्ग कहलाता है। इसी प्रकार तीन समान संख्याओं का गुणनफल घन है और बारह कोष्ठों और समान भुजाओं वाला ठोस भी घन है।‘‘मूल” शब्द संस्कृत में पेड़ या पौधे की जड़ के अर्थ में या व्यापक रूप में किसी वस्तु के कारण, उद्गम अर्थ में प्रयुक्त होता है।

महान गणितज्ञ लीलावती / Great Mathematician Lilavati

इसलिए प्राचीन गणित में वर्ग मूल का अर्थ था ‘वर्ग का कारण या उद्गम अर्थात् वर्ग एक भुजा‘। इसी प्रकार घनमूल का अर्थ भी समझा जा सकता है। वर्ग तथा घनमूल निकालने की अनेक विधियां प्रचलित थीं। लीलावती के प्रश्नों का जबाब देने के क्रम में ही “सिद्धान्त शिरोमणि” नामक एक विशाल ग्रन्थ लिखा गया, जिसके चार भाग हैं- (1) लीलावती (2) बीजगणित (3) ग्रह गणिताध्याय और (4) गोलाध्याय।

‘लीलावती’ में बड़े ही सरल और काव्यात्मक तरीके से गणित और खगोल शास्त्र के सूत्रों को समझाया गया है।बादशाह अकबर के दरबार के विद्वान फैजी ने सन् 1587 में “लीलावती” का फारसी भाषा में अनुवाद किया।अंग्रेजी में “लीलावती” का पहला अनुवाद जे. वेलर ने सन् 1716 में किया।

कुछ समय पहले तक भी भारत में कई शिक्षक गणित को दोहों में पढ़ाते थे। जैसे कि पन्द्रह का पहाड़ा…तिया पैंतालीस, चौके साठ, छक्के नब्बे… अट्ठ बीसा, नौ पैंतीसा…। इसी तरह कैलेंडर याद करवाने का तरीका भी पद्यमय सूत्र में था, “सि अप जूनो तीस के, बाकी के इकतीस, अट्ठाईस की फरवरी चौथे सन् उनतीस!” इस तरह गणित अपने पिता से सीखने के बाद लीलावती भी एक महान गणितज्ञ एवं खगोल शास्त्री के रूप में जानी गयी।

महान गणितज्ञ लीलावती / Great Mathematician Lilavati

मनुष्य के मरने पर उसकी कीर्ति ही रह जाती है। आज गणितज्ञो को गणित के प्रचार और प्रसार के क्षेत्र में "लीलावती पुरस्कार" से सम्मानित किया जाता है।

16 comments:

  1. मकर संक्रांति की आप सभी को हार्दिक शुभकामनाएं ।
    खास बात यह है कि मकर संक्रांति कल है
    सूर्य देव के मकर राशि में प्रवेश की घटना को मकर संक्रांति कहा जाता है जो कि आज रात 8 बजकर 20 मिनट पर होगा
    इसलिए यह पर्व कल मनाएं अपने वास्तविक समय पर
    नमस्कार 🙏🏻🚩

    ReplyDelete
  2. लीलावती के बारे में आपने ऐसी जानकारी दी जो हमारे जैसे बहुतसे लोगों को पता नही होगी। हमारी प्राचीन वैदिक गणित बहुत ही समृद्ध है। हम लोग ही तथाकथित आधुनिकता के चक्कर मे फंसकर इसे भुला बैठे हैं। आपके ब्लॉग समाज मे बदलाव की बयार भी बहा सकते हैं।
    मकर संक्रांति के बारे में तकनीकी जानकारी देने के लिए साधुवाद।

    ReplyDelete
  3. अच्छी जानकारी

    ReplyDelete
  4. लीलावती की उत्कट जिज्ञासा ने उसे सुप्रसिद्ध गणितज्ञ बना दिया।

    ReplyDelete
  5. भास्कराचार्य के बारे में सुनें थे,पर कभी उनके विषय में विस्तार से जानने को कभी मिला नहीं,आज अवगत हुईं हूं,
    धन्यवाद, हमें ऐसी-ऐसी अनेक प्रकार की जानकारी देने के लिए 👌👌👍👍🙏🙏

    ReplyDelete
  6. इन्हीं सब कारणों से हमारा देश महान कहलाता है इस देश महा पुरुषों के साथ साथ बङे बङे वैज्ञानिक भी. पैदा हुए हैं हम सब को उनके बारे में पढना चाहिए और जानना चाहिए।

    ReplyDelete
  7. बहुत सी ऐसी जानकारियां हैं, जिससे हमलोग अनभिज्ञ हैं। भाष्कराचार्य को तो सभी जानते हैं, पर लीलावती से कम लोग ही परिचित होंगे। आपके माध्यम से बहुत अच्छी जानकारी मिली। ऐसे ही अच्छी अच्छी और देश की विदुषी महिलाओं से अवगत करते रहो।

    ReplyDelete
  8. हमारे देश का वैदिक गणित बहुत ही विकसित था और ऐसी ऐसी गणनाएं वैदिक काल की हैं जो आज के वैज्ञानिक युग में भी सही पाई गई हैं। भास्कराचार्य के विषय में सुना था लेकिन उनकी पुत्री की जानकारी नहीं थी।
    अच्छी जानकारी

    ReplyDelete