वृद्ध आश्रम / Old Age Home

वृद्ध आश्रम / Old Age Home

"बढ़ते वृद्ध आश्रम घटते जीवन मूल्यों के प्रतीक हैं.."

उन आंखों ने भी देखे होंगे कुछ ख्वाब, 
ख्वाब एक भरे पूरे परिवार का 
बच्चों के प्यार और अपनेपन का 
ख्वाब खुद के सम्मान का 
जीवन के अंतिम पलों में तनाव रहित जिंदगी का..

वृद्ध आश्रम / Old Age Home

आज का विषय वृद्ध आश्रम बहुत ही संवेदनशील है। हर इंसान की सोच अलग होती है, चाहत अलग होती है। सभी की मंजिलें भी अलग-अलग होती हैं और इस समाज में कुछ ऐसे भी लोग हैं, जो अपनी मंजिल पर पहुंचने के लिए अपने बूढ़े मां - पिता को ही अपनी मंजिल का रोड़ा मान कर उनको किनारे कर देते हैं। वृद्ध अवस्था के दर्द की एक छोटी सी कहानी :

दो बूढ़े पेड़ आपस में बातें कर रहे थे। एक ने कहा - "एक समय था, जब सभी बच्चे धूप से बचने के लिए मेरे छाया में खेलने के लिए आते थे। मैं उन्हें उस समय घनी छाया देता था, जो उनके बहुत काम आते थे। वह सब बहुत खुश होते थे।" दूसरे पेड़ ने कहा - "हम सभी वही तो करते हैं, जो तुमने किया। " फिर पहले पेड़ ने कहा -"लेकिन अब कोई नहीं आता।" इतने में कुछ बच्चे उन पेड़ों के पास से गुजरे। उन्हें देखकर पहले पेड़ ने उनसे पूछा - "बच्चों अब तुम मेरे पास खेलने क्यों नहीं आते हो?" एक बच्चा बोला अब तो तुम्हारे पास छाया नहीं है,फूल नहीं है, फल नहीं है और कुछ भी नहीं है देने के लिए। यह सुनकर पेड़ बहुत दुखी हुआ। पेड़ ने कहा - "हां अब मेरे पास मेरी छाल ही बची है, चाहो तो यह भी ले लो। मैं तो जर्जर हो चला हूं।" यह सुनकर बालक चुपचाप चला गया। दूसरा पेड़ उसे सांत्वना देता हुआ बोला - "चलो दोस्त! इनकी दुनिया ऐसी ही है।"

वृद्ध आश्रम / Old Age Home

अगर हम मानवीय जीवन पर दृष्टि डालें तो लगता है कि यह लघुकथा शायद उन सभी वृद्धों की सच्ची दास्तां बयान करती है, जिन्हें अपनी जीवन संध्याकाल में वृद्धाश्रम की शरण लेनी पड़ती है। क्योंकि वह शारीरिक रूप से सर्वथा अशक्त व असहाय हो चुके होते हैं, जो अपनी संतान से दूर एकाकी निराशापूर्ण जीवन व्यतीत कर रहे होते हैं। वह आत्म सुरक्षा हेतु या फिर अपने आत्मसम्मान की रक्षा हेतु अपनी संतान पर आश्रित नहीं होना चाहते।  अपना शेष जीवन आश्रमों के सेवादारों की छत्रछाया में ही व्यतीत करते हैं। जहां वे अपने नए साथियों के साथ शारीरिक और मानसिक व्यथा तथा अपने विचारों को बांट सकते हैं। 

एक कड़वा सच यह भी है कि वृद्ध आश्रमों की बढ़ती संख्या इस बात का जीता जागता उदाहरण है कि बच्चे वृद्धों की देखभाल करने की बजाय उन्हें इन आश्रमों में भेज देते हैं। या फिर उन्हें इतना परेशान किया जाता है कि वह स्वयं जाने को मजबूर हो जाते हैं। परिवार व समाज में बुजुर्गों की अहमियत चरण स्पर्श तक सीमित रह गई है।

वृद्ध आश्रम / Old Age Home

जिन मात - पिता ने हमें हाथ पकड़कर चलना सिखाया, जब उनके कदम डगमगाने लगे तो उन्हें असहाय छोड़कर बेघर कर देना किस हद तक सही है?  उन बच्चों की आत्मा कहां मर चुकी है, जो इतना बड़ा पाप करते वक्त जरा भी लज्जित महसूस नहीं करते। ऐसा करके हम अपनी संस्कृति को तो कलंकित कर ही रहे हैं, साथ ही साथ माता-पिता को पीड़ा देकर ईश्वर के भी अपराधी बन रहे हैं।

आधुनिकता के नाम पर हम अपने कर्तव्य से विमुख हो गए हैं। जहां परिवार एक दूसरे के सुख दुख बांट लेता था, उस देश में यह उलटी गंगा बह रही है। पश्चिमी देश हमारी संस्कृति को अपनाने के लिए तरस रहे हैं और हम आंखें बंद करके भौतिक सुख-सुविधा के पीछे भाग रहे हैं और पश्चिमी सभ्यता को अपनाते चले जा रहे हैं। 

"बढ़ते वृद्ध आश्रम घटते जीवन मूल्यों के प्रतीक हैं.."

 अगर आप कभी वृद्धाश्रम जाए तो वहां पर उपस्थित वृद्धों से पूछना कि आपके बेटे क्या करते हैं? तो उत्तर मिलेगा कि वह ऑफिसर है, डॉक्टर है, वकील है, इंजीनियर है, मजिस्ट्रेट है, टीचर है। पर एक भी वृद्ध आपको नहीं मिलेगा जो कहे कि मेरा बेटा अनपढ़ या गरीब है। क्योंकि अनपढ़ या गरीब के मां-पिता कभी वृद्ध आश्रम तक नहीं पहुंचते, यह आधुनिक युग का सत्य है।

सन 1978, आज से लगभग 43 साल पहले जब हेल्प एज इंडिया (HelpAge India) वृद्धा आश्रम तैयार किए थे, तो लोगों ने इसका विरोध करते हुए इसे पश्चिमी तरीका कहा था, लेकिन मौजूदा परिवेश में बहुत से वृद्ध इन आश्रमों पर ही आश्रित हो चुके हैं। आज यही हमारे देश की भी हकीकत बन चुकी है। सड़कों पर भटकते हुए बुजुर्गों के लिए यह वृद्ध आश्रम एक वरदान से कम नहीं जहां उन्हें सिर छुपाने को छत और दो वक़्त का खाना उपलब्ध हो जाता है।

"बढ़ते वृद्ध आश्रम घटते जीवन मूल्यों के प्रतीक हैं.."

वृद्ध आश्रमों की संख्या बढ़ने का मुख्य कारण संयुक्त परिवारों का टूटना है। समाज शास्त्रियों का मानना है कि नौजवानों में आधुनिक तरीके से जीने की ललक और व्यक्तिगत जिंदगी की आजादी से जीने की सोच के कारण बुजुर्ग अकेलापन महसूस कर रहे हैं और वृद्ध आश्रमों में जाने को मजबूर हैं या फिर अपने ही बच्चों के द्वारा वहां भेज दिए जा रहे हैं।

जिन बुजुर्गों के आगे पीछे कोई भी नहीं है, जो सड़कों पर भीख मांगने को मजबूर हैं, उनके लिए तो  वृद्धाश्रम बेशक एक वरदान है, परंतु बच्चों के व्यवहार से दुखी होकर यदि भरे पूरे घर परिवार को त्याग कर बुजुर्ग वृद्ध आश्रम पर आश्रित हो रहे हैं तो ऐसे बुजुर्गों के लिए निश्चित ही यह बहुत दुखद है।

"बढ़ते वृद्ध आश्रम घटते जीवन मूल्यों के प्रतीक हैं.."

HelpAge India is an Indian organization focused on the concerns of elders. Established in 1978, its mission is “to work for the cause and care of disadvantaged older persons and to improve their quality of life”. Wikipedia

Old Age Home

"The growing old age homes are a symbol of the declining values of life.."
Today's topic old age ashram is very sensitive. Every person's thinking is different, wants are different. Everyone's destinations are also different and there are some people in this society who, in order to reach their destination, consider their old parents as an obstacle to their destination and put them aside. A short story of the pain of old age:
"बढ़ते वृद्ध आश्रम घटते जीवन मूल्यों के प्रतीक हैं.."

Two old trees were talking among themselves. One said - "There was a time, when all the children used to come to play in my shade to avoid the sun. I used to give them thick shade at that time, which was very useful for them. They were all very happy." The second tree said - "We all do what you did." Then the first tree said - "But now no one comes." In the meantime some children passed by those trees. Seeing them, the first tree asked them - "Children, why don't you come to play with me now?" A child said now you have no shade, no flowers, no fruit and nothing to give. Hearing this, the tree was very sad. The tree said - "Yes, now I have only my bark left, if you want, take it too. I have become shabby." Hearing this, the boy left silently. Another tree consoled him and said - "Come on friend! Their world is like this."

If we look at human life, then it seems that this short story probably tells the true story of all those old people who have to take shelter in old age home during their evening life. Because they have become physically handicapped and helpless, who are leading a lonely, hopeless life away from their children. They do not want to be dependent on their children for self-protection or to protect their self-esteem. He spends the rest of his life under the umbrella of the servicemen of the ashrams. Where they can share their physical and mental pain and their thoughts with their new comrades.
"बढ़ते वृद्ध आश्रम घटते जीवन मूल्यों के प्रतीक हैं.."

There is also a bitter truth that the increasing number of old age homes is a living example of the fact that instead of taking care of the old people, children send them to these homes. Or they are so harassed that they are forced to go on their own. The importance of elders in the family and society has been limited to the touch of feet.

To what extent is it right to leave the parents who taught us to walk by holding hands, leaving them helpless when their feet stagger? Where has the soul of those children died, who do not feel ashamed at all while committing such a big sin? By doing this we are not only tarnishing our culture, but at the same time we are also becoming guilty of God by tormenting our parents.

In the name of modernity, we have turned away from our duty. Where the family used to share each other's happiness and sorrows, in that country this reverse Ganges is flowing. Western countries are yearning to adopt our culture and we are blindly running after material comforts and adopting western civilization.
"बढ़ते वृद्ध आश्रम घटते जीवन मूल्यों के प्रतीक हैं.."

 If you ever go to an old age home, ask the elders present there, what do your sons do? So the answer will be that he is an officer, a doctor, a lawyer, an engineer, a magistrate, a teacher. But you will not find a single old man who says that my son is illiterate or poor. Because the parents of illiterate or poor never reach old age ashram, this is the truth of modern age.

In 1978, about 43 years ago, when HelpAge India had prepared old age homes, people opposed it and called it the western way, but in the current environment many old people have become dependent on these ashrams. Huh. Today this has become the reality of our country as well. For the elderly wandering on the streets, this old age ashram is no less than a boon, where they get a roof to cover their heads and food for two times.

The main reason for the increase in the number of old age homes is the breakdown of joint families. Sociologists believe that due to the urge to live in a modern way in the youth and the thought of living independently of personal life, the elderly are feeling lonely and are forced to go to old age homes or are being sent there by their own children. are.

Old age home is undoubtedly a boon for the elders who have no one behind them, who are forced to beg on the streets, but after being saddened by the behavior of the children, if the whole house is abandoned and the elderly are dependent on the old age ashram. If so, it is definitely very sad for such elders.
"बढ़ते वृद्ध आश्रम घटते जीवन मूल्यों के प्रतीक हैं.."

21 comments:

  1. Mem your articles are very heart touching. It reveals the past and futuristic human problems, and social evels. Your depiction real society situations attracts us.

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  2. दूर पहाड़ की लहर पर

    तैरता सूरज

    क्षितिज-सा डूब गया

    शाम ने

    दूर-दूर तक पुकारा

    जगह-जगह पीछे छूटी शामें

    पुकार में एक-एक करके आ गईं

    किसी विलुप्त शाम की चिड़िया आई

    आया अव्यक्त पेड़

    निराकार घोंसला आया

    पेड़े से उड़ी चिड़िया

    कई शामों के पार पीछे

    खो गई अपार

    दूर अँधेरे की लहर पर तैरता

    पहाड़ डूब गया

    तारे आए प्राचीन

    मैं प्राचीन हो गया धरती पर

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  3. बचपन और बुढापा दोनों ही अवस्थाओं में सनेह और प्रेम की अवश्यकता होती है।

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  4. संवेदनशील मुद्दा.. कुछ मामलों में जहां बुजुर्गों के आगे पीछे कोई नहीं तब तो वृद्धाश्रम बहुत अच्छे हैं। पर जो बुजुर्ग घर परिवार से संपन्न हैं, उनको बच्चों की उपेक्षा सहकर अगर जीवन के इस मोड़ पर वृद्धाश्रम जाना पड़ रहा है, तो यह बहुत ही दुखद है।

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  5. तुमने उन्हीं को दरबदर किया
    जिन्होंने तुम्हें जीने की राह दी
    अपनी खुशियों का गला दबा
    तुम्हारी खुशियों की परवाह की
    दुख तुम्हारे जो थे वो सारे लिए
    तकलीफें सही बस तुम्हारे लिए
    तुमने उन्हें गया-गुजरा समझा
    जो खड़े खुशी के सितारे लिए
    उनके एहसान का मान रखो
    बुढ़ापे में तो उनका ध्यान रखो
    तुमसे बढ़कर उनका दुख नहीं
    फिर भी हर दर्द पर कान रखो
    हर तकलीफ का हिस्सा बनोगे
    तो फिर उनका आशीर्वाद होगा
    उनकी सेवा का फल-फलित हो
    आशीर्वाद से जहां आबाद होगा
    भगवान स्वरूप वो मां-बाप है
    उनका दिल दुखाना तो पाप है
    🙏नरेश"राजन"हिन्दुस्तानी🙏

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    1. बहुत सुंदर रचना नरेश जी

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  6. अपने देश मे वृद्धाश्रमो की बढ़ती संख्या देखकर मन विचलित हो जाता है।

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  7. बच्चों की उपेक्षा से वृद्धाश्रम जाना, बहुत ही कष्टदायी है…
    अच्छा लेख

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  8. वृद्धों की सेवा करिए। उनके बुढ़ापे का सहारा बनिए।

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