बाज (बाज का जीवन एक तपस्या)
आज आप सभी के साथ बाज से संबंधित कुछ रोचक तथ्य शेयर कर रही हूं, जिससे ज्यादातर लोग अनभिज्ञ होंगे। हम सभी जानते हैं कि बाज (Eagle) एक शिकारी पक्षी है, जो कि गरुण से छोटा होता है। पर बाज़ के जीवन का संघर्ष कुछ लोग ही जानते होंगे।
आमतौर पर हम चिते को उसकी तेज रफ्तार के लिए जानते हैं, मगर कई और भी पशु - पक्षी हैं, जो अपनी श्रेणियों में रफ्तार के लिए पहचाने जाते हैं। नेशनल ज्योग्राफिक चैनल द्वारा किए गए एक रिसर्च के आधार पर 10 सबसे तेज जीव - जंतुओं की सूची जारी की गई है, जिसमें से आज "बाज (Eagle)" के बारे में आपको कुछ रोचक तथ्य बताएंगे, जिसे पेरेग्लाइन फाल्कन के नाम से भी जाना जाता है। इसे हम ईगल या शाहीन भी कहते हैं।
बाज के बच्चों का मुश्किल प्रशिक्षण
जिस उम्र में बाकी परिंदों के बच्चे चीजियाना सीखते हैं, उस उम्र में एक मादा बाज अपने चूजे को पंजे में दबोच कर सबसे ऊंचा उड़ जाती है। पक्षियों की दुनिया में ऐसा मुश्किल प्रशिक्षण किसी और पक्षी का नहीं होता। मादा बाज अपने चूजे को लेकर लगभग 12 किलोमीटर ऊपर उड़ जाती है, जितने ऊपर अमूमन हवाई जहाज उड़ा करते हैं और वह दूरी तय करने में मादा बाज 7 से 9 मिनट का समय लगाती है। यहां से शुरू होती है उन नन्हें चूजों की कठिन परीक्षा। उसे अब वहां बताया जाता है कि तुम किस लिए पैदा हुए हो? तुम्हारी दुनिया क्या है? तुम्हारी ऊंचाई क्या है? तुम्हारा धर्म बहुत ऊंचा है और फिर मादा बाज उसे अपने पंजों से छोड़ देती है।
आसमान से धरती की तरफ नीचे आते वक्त लगभग 2 किलोमीटर उस चूजे को आभास भी नहीं होता है कि उसके साथ क्या हो रहा है? 7 किलोमीटर के अंतराल के बाद उस चूजे के पंख जो कंजाइन से जकड़े होते हैं, वह खुलने लगते हैं। लगभग 9 किलोमीटर आने के बाद उनके पंख पूरे खुल जाते हैं। यह जीवन का पहला दौर होता है, जब बाज का बच्चा पंख फड़फड़ाता है। अब धरती से वह लगभग 3000 मीटर की दूरी पर है, लेकिन अभी वह उड़ना नहीं सीख पाया है। अब धरती से बिल्कुल करीब आता है। जहां से वह देख सकता है, अपने इलाके को अब उसकी दूरी धरती से लगभग 700 से 800 मीटर होती है। लेकिन उसका पंख अभी इतना मजबूत नहीं होता है कि वह उड़ सके। धरती से लगभग 400 से 500 मीटर दूरी पर उसे अपने जीवन की अंतिम यात्रा दिखती है और अचानक से एक पंजा उसे आकर अपनी गिरफ्त में लेता है और अपने पंखों के दरमियां संभाल लेता है, यह गिरफ्त उसकी मां का होता है, जो ठीक उसके ऊपर चिपक कर उड़ रही होती है। बाज के चूजों की यह ट्रेनिंग निरंतर चलती रहती है, जब तक कि वह उड़ना सीख नहीं लेता है। यह ट्रेनिंग एक कमांडो की तरह होती है। तब जाकर दुनिया को एक बाज मिलता है, जो अपने से 10 गुना अधिक वजनी प्राणी का भी शिकार करता है। इनका संघर्ष अभी यहीं समाप्त नहीं होता। बाज पक्षियों का राजा यूं ही नहीं कहा जाता है। अपने शानो शौकत और स्वाभिमान के लिए वह अनंत पीड़ा सहता है।
बाज की उम्र 70 साल होती है लेकिन इसके जीवन में मोड़ तब आता है जब वह 40 साल का होता है
अब बाज 40 की उम्र में मरने का चुनाव कर सकता है, परंतु बाज ऐसा नहीं करता। उम्र के इस पड़ाव में बाज अपने इलाके के सबसे ऊंची चोटी पर जाता है और अपनी चोंच को पत्थर पर मार मारकर लहूलुहान हो जाता है। बाज इस दौरान अनंत पीड़ा से कराह रहा होता है। पर वह पीड़ा सहता है और अंत में अपने चोंच तोड़ देता है। उसकी कहानी यहीं खत्म नहीं होती। उसके पैरों के नाखूनों की भी यही कहानी है। वह अपने नाखूनों को पत्थर पर रगड़ रगड़ कर उन्हें भी तोड़ देता है। अंततः बाज को अपनी तपस्या का फल मिलता है और प्रकृति माता उसे उसके चोंच और नाखून फिर से वरदान स्वरुप देती है। कहानी अभी यहीं खत्म नहीं होती। अब बारी है उसके भारी पंखों की। अपने नये चोंच से बाज अपने ही पंखों को नोच नोच कर जिस्म से अलग कर देता है। इस दौरान वह असहनीय पीड़ा को सहता है। पीड़ा इतनी कि कोई भी अपने प्राण दे दे, पर इतनी पीड़ा ना सके। पर बाज अपने स्वाभिमान के लिए वह पीड़ा भी सकता है। करीबन 6 महीने बाद उसे अपने नए पंखों स्वरूप एक नया जीवन मिलता है और फिर वह अपनी बाकी की जिंदगी उसी शानो शौकत से जीता है।
कठिन विकल्प का चुनाव
बाज लगभग 70 वर्ष जीता है ....
परन्तु अपने जीवन के 40वें वर्ष में आते-आते उसे एक महत्वपूर्ण निर्णय लेना पड़ता है। उस अवस्था में उसके शरीर के 3 प्रमुख अंग निष्प्रभावी होने लगते हैं। पंजे लम्बे और लचीले हो जाते है, तथा शिकार पर पकड़ बनाने में अक्षम होने लगते हैं ।चोंच आगे की ओर मुड़ जाती है और भोजन में व्यवधान उत्पन्न करने लगती है। पंख भारी हो जाते हैं, और सीने से चिपकने के कारण पूर्णरूप से खुल नहीं पाते हैं, उड़ान को सीमित कर देते हैं। भोजन ढूँढ़ना, भोजन पकड़नाऔर भोजन खाना, ये तीनों प्रक्रियायें अपनी धार खोने लगती हैं।
1. देह त्याग देना
2. अपनी प्रवृत्ति छोड़ गिद्ध की तरह त्यक्त भोजन पर निर्वाह करे
3. या फिर "स्वयं को पुनर्स्थापित करे" आकाश के निर्द्वन्द एकाधिपति के रूप में।
स्वयं को पुनर्स्थापित करना
जहाँ पहले दो विकल्प सरल और त्वरित हैं। अंत में बचता है तीसरा लम्बा और अत्यन्त पीड़ादायी रास्ता ।
बाज चुनता है तीसरा रास्ता और स्वयं को पुनर्स्थापित करता है। वह किसी ऊँचे पहाड़ पर जाता है, एकान्त में अपना घोंसला बनाता है और तब स्वयं को पुनर्स्थापित करने की प्रक्रिया प्रारम्भ करता है।
सबसे पहले वह अपनी चोंच चट्टान पर मार मार कर तोड़ देता है, चोंच तोड़ने से अधिक पीड़ादायक कुछ भी नहीं है पक्षीराज के लिये और वह प्रतीक्षा करता है, चोंच के पुनः उग आने का। उसके बाद वह अपने पंजे भी उसी प्रकार तोड़ देता है, और प्रतीक्षा करता है, पंजों के पुनः उग आने का। नयी चोंच और पंजे आने के बाद वह अपने भारी पंखों को एक-एक कर नोंच कर निकालता है और प्रतीक्षा करता है, पंखों के पुनः उग आने का।150 दिन की पीड़ा और प्रतीक्षा के बाद मिलती है, वही भव्य और ऊँची उड़ान पहले जैसी, इस पुनर्स्थापना के बाद, वह 30 साल और जीता है उसी ऊर्जा, सम्मान और गरिमा के साथ।
कुछ सीखना हो तो बाज से सीखो
जीवन को हमें बाज से सीखना चाहिए। जब उसके पंख भारी हो जाते हैं और चोंच मुड़ जाती है, तब बाज या तो चील की तरह जीवन यापन करें या फिर अपने आप को पुनर्स्थापित करें। लेकिन बाज उस समय कठिन रास्ता चुनता है। तब वह ऊंचे पहाड़ पर जाकर पंख और चोंच को दौड़ता है और 150 दिन तक इंतजार करता है और फिर से पहले जैसी नई उड़ान भरता है।
बिना दर्द के जिंदगी में कुछ भी प्राप्त नहीं होता है
इसी प्रकार इच्छा, सक्रियता और कल्पना, तीनों निर्बल पड़ने लगते हैं हम इंसानों में भी। हमें भी भूतकाल में जकड़े अस्तित्व के भारीपन को त्याग कर कल्पना की उन्मुक्त उड़ाने भरनी होंगी। 150 दिन न सही, 60 दिन ही बिताया जाये स्वयं को पुनर्स्थापित करने में,जो शरीर और मन से चिपका हुआ है, उसे तोड़ने और नोंचने में पीड़ा तो होगी ही और फिर जब बाज की तरह उड़ानें भरने को तैयार होंगे। इस बार उड़ानें और ऊँची होंगी, अनुभवी होंगी, अनन्तगामी होंगी । हर दिन कुछ चिंतन किया जाए और आप ही वो व्यक्ति हैं जो खुद को सबसे बेहतर जान सकते है ।
हिंदी में एक कहावत है - "बाज के बच्चे मुंडेरों पर नहीं उड़ते" वर्तमान समय की अनंत सुख सुविधाओं की आदत व अभिभावकों के बेहिसाब लाड प्यार ने मिलकर बच्चों को बॉयलर मुर्गे जैसा बना दिया है, जिसके पास मजबूत टांगे तो है पर चल नहीं सकता, वजनदार पंख तो है पर उड़ नहीं सकता। क्योंकि गमले के पौधे और जमीन के पौधे में बहुत फर्क होता है।
आर्टिकल थोड़ी लम्बी जरूर है, पर उम्मीद है आप सभी को अच्छी लगी होगी। अपनी प्रतिक्रिया अवश्य दें। प्रतिक्रिया से हौसला बढ़ता है, प्रेरणा मिलती है कुछ और अच्छा लिखने और आप सभी के साथ शेयर करने का।
English Translate
Baz (The life of a hawk is a penance)
Today I am sharing with you all some interesting facts related to the eagle, which most people will be unaware of. We all know that the eagle is a bird of prey, which is smaller than the eagle. But only a few people would know the struggle of the life of the falcon.
Generally we know the pyre for its speed, but there are many other animals and birds, which are recognized for their speed in their categories. On the basis of a research done by National Geographic Channel, a list of 10 fastest animals has been released, out of which today we will tell you some interesting facts about "Eagle", also known as Peregrine Falcon. goes. We also call it Eagle or Shaheen.
Difficult training of hawks
At the age at which the cubs of the rest of the birds learn to chisel, at that age, a female eagle can hold her chick in the paw and fly high. No other bird has such difficult training in the world of birds. The female eagle takes her chick and flies about 12 km higher than most airplanes usually fly, and the female eagle takes 7 to 9 minutes to cover that distance. From here begins the difficult test of those little chicks. It is now told there that for what you were born? what is your world what is your height Your dharma is very high and then the female hawk releases it with its claws.
While coming down from the sky towards the earth, about 2 kilometers, that chick does not even realize what is happening to him? After an interval of 7 km, the wings of the chick that are attached to the consignor start opening. After coming about 9 km, their wings are fully opened. This is the first stage of life, when the hawk's baby flaps its wings. Now he is about 3000 meters from the earth, but he has not yet learned to fly. Now comes very close to the earth. From where he can see, his area is now about 700 to 800 meters from the earth. But his wings are not strong enough to fly. At a distance of about 400 to 500 meters from the earth, he sees the last journey of his life and suddenly a claw comes and grabs him and takes hold of his wings, this catch belongs to his mother, who is right above him. Flying clinging. This training of the hawk's chick goes on continuously, until it learns to fly. This training is like a commando. Then the world gets an eagle, which hunts even a creature weighing 10 times more than itself. Their struggle does not end here yet. The eagle is not just called the king of birds. He suffers infinite pain for his pride and self-respect.
The life of an eagle is 70 years, but the turning point in its life comes when it is 40 years old.
Now the eagle can choose to die at the age of 40, but the eagle does not. At this stage of age, the eagle climbs to the highest peak in its area and bleeds by hitting its beak on a stone. The eagle is moaning with infinite pain during this. But he suffers and eventually breaks his beak. His story does not end here. The same is the story of his toenails. He also breaks his nails by rubbing them on the stone. Eventually the eagle gets the result of his penance and Mother Nature gives him his beak and nails again as a boon. The story doesn't end here yet. Now it's the turn of his heavy wings. With its new beak, the eagle plucks its own feathers and separates it from the body. During this he endures unbearable pain. The pain is so much that anyone can give his life, but can not suffer so much. But the eagle can also suffer for his self-respect. After about 6 months, he gets a new life in the form of his new wings and then he lives the rest of his life with the same grace.
hard choice
The eagle has lived almost 70 years ....
But by the time he reaches the 40th year of his life, he has to take an important decision. In that state, 3 major parts of his body start becoming ineffective. The claws become long and flexible, and are unable to hold on to the prey. The beak turns forward and begins to interfere with the food. The wings become heavy, and may not fully open due to clinging to the chest, limiting flight. Finding food, catching food and eating food, these three processes start losing their edge.
1. Abandonment
2. Give up your instincts and live on abandoned food like a vulture
3. Or "restore yourselves" as the fearless monopolist of the sky.
restore oneself
Where the first two options are simple and quick. In the end what remains is the third long and very painful path.
The eagle chooses the third path and restores itself. He goes to a high mountain, builds his nest in solitude and then begins the process of restoring himself.
First of all he breaks his beak by hitting on the rock, nothing is more painful than breaking the beak for the bird king and he waits for the beak to grow again. After that he breaks his claws in the same way, and waits for the claws to grow again. After the arrival of the new beak and claws, he plucks his heavy feathers one by one and waits for the feathers to grow again. After 150 days of pain and waiting, he gets the same grand and high flight as before After this restoration, he has lived another 30 years with the same energy, respect and dignity.
If you want to learn something then learn from the eagle
We should learn life from the eagle. When its wings become heavy and the beak is twisted, the eagle can either live like an eagle or regenerate itself. But the eagle chooses the difficult path at that time. Then he runs to a high mountain with wings and beak and waits for 150 days and takes off again as before.
nothing is achieved in life without pain
Similarly, desire, activity and imagination, all three start getting weak in us human beings too. We too have to give up the heaviness of existence clinging to the past and fill the free flow of imagination. If not 150 days, 60 days should be spent in restoring oneself, there will be pain in breaking and plucking what is clinging to body and mind, and then when you will be ready to take flight like an eagle. This time the flights will be higher, will be experienced, will be eternal. Do some reflection every day and you are the person who can know yourself best.
There is a proverb in Hindi - "Baz ke children do not fly on the hoods" The habit of infinite comforts of the present times and the unconditional love of the parents together have made the children like a boiler chicken, which has strong legs but cannot walk. Has heavy wings but cannot fly. Because there is a lot of difference between a pot plant and a ground plant.
The article is a bit long, but I hope you all like it. Do give your feedback. Feedback encourages, inspires to write something better and share it with all of you.
वाह ऐसा भी होता है?? 🙄 आज पता चला 👌👍
ReplyDeleteबहुत ही रोचक,उत्तेजक,ज्ञानवर्धक, शिक्षाप्रद और दिल को झकझोर देने वाला आज का लेख है…कहते हैं कि परिंदों का जीवन संघर्षमय होता है पर आज के लेख में बाज के बारे में जानकार लग रहा कि वाकई में जीवन कितना संघर्षमय होता है और ये परिंदें कुछ ना बोलकर भी हमें कितना कुछ सीखा रहे हैं…
ReplyDeleteजानदार-शानदार लेख 👌👌👌👍👍👏👏
Yesssss 👍👌
ReplyDeleteबहुत ही अच्छा लेख
ReplyDeleteVery nice
ReplyDeleteVery nice
ReplyDeleteबाज का जीवन इतना अधिक संघर्षमय होता है यह बात वाकई में आज पता चला । बिना दर्द के जिंदगी में कुछ भी नही प्राप्त होता । यह अक्षरसः सत्य है । मनुष्य थोड़ी सी परेशानी में ही विचलित होने लगता है। इस आर्टिकल से यह सीख मिलती है कि जीवन मे कभी निराश नही होना चाहिए और जीवन जीने की आशा नही छोड़नी चाहिए । कृपया इसी तरह से ज्ञानवर्धक , प्रेरणादायक और उत्साहवर्धक लेख लिखते रहिये ।
ReplyDeleteYes, a very beautiful post. In many cases, humans are like these birds - steadfast.
ReplyDeleteबहुत ही उत्साहवर्धक और प्रेरणादायक लेख। एक बात और कि जब अन्य पक्षी बारिश से बचने के लिए ठिकाना ढूंढते हैं तब बाज बादलों से ऊपर उड़ान भरते हैं। बिना कठिन तपस्या, त्याग और संघर्ष के जिंदगी अपनी शर्तों नहीं जी जा सकती है। एक उम्र के बाद अपने आप को पुनर्स्थापित करना हमें बाज से सीखना चाहिए।
ReplyDeleteबहुत अच्छा लेख
Mem extremely well depicted the lifestyle and things about the king of birds hawak.
ReplyDeleteबाज एक शक्तिशाली पक्षी है। यह अपनी तकदीर स्वयं लिखता है।इसका जीवन कठोर तपस्या है।लगभग 9 किमी ऊंचाई पर उड़ने वाला शक्तिशाली पक्षी बाज है। हमें जीने के लिए बाज से शिक्षा लेनी चाहिए
ReplyDeleteरोचक जानकारी
ReplyDeleteVery nice
ReplyDeleteबाज के बारे में दुर्लभ और दिलचस्प जानकारी।
ReplyDeletev nice
ReplyDeleteबहुत अच्छे
ReplyDeleteसर से पैर तक हिला देने वाला आर्टिकल। सही बात है बिना दर्द के जिंदगी में कुछ प्राप्त नहीं होता। परिंदों को आसमान में उड़ता देखें मन को एक सुकून सा मिलता है। उनकी आजादी उनका उड़ान.. उनके कठिन संघर्ष के विषय में तो कुछ पता ही नहीं होता। बहुत ही दुर्लभ और रोचक जानकारी।
ReplyDeleteNice, grateful knowledge
ReplyDeleteघर-परिवार और पूरा देश करें नाज
ReplyDeleteऊंची उड़ान के लिए बन जाओ बाज़
जिंदगी की हर मुश्किल में भी कभी
कमजोर ना हो हौसलों के परवाज़
बाज के हौसलों में होती बहुत जान
इसलिए तो है उसका सारा आसमान
उम्र के एक पड़ाव में सहता बहुत दर्द
जिंदगी यूं ही जीना नहीं इतना आसान
किस तरह खुद चौंच-नाखून तोड़ता है
खुद को लहूलुहान हालत में छोड़ता है
मजबूत इरादों का कमजोर नहीं होता
जोश-जुनून उसकी रग-रग में दौड़ता है
मुकाबले में उतरकर देख लेना आज से
दर्द सहना आप भी सीख लेना बाज़ से
ऐसा मुकाम हासिल कर लो जिंदगी में
तालियाँ बजे उठे आपके हर अंदाज से
🙏नरेश"राजन"हिन्दुस्तानी🙏
बहुत खूब 👏👏👏👏
DeleteVery nice post.
ReplyDeleteवाह 👏 पहले पढ़ा हुआ है
ReplyDeleteकितने कठोर ट्रेनिग के बाद बाज
ReplyDeleteउड़ने के लायक तैयार होता है । परीक्षा
यहीं पर समाप्त नही होती अपने जीवन के लगभग 70 वर्षो के बीच मे 40वां वर्ष तो
और कष्ट भरा होता है जब उसके चोंच तथा
पैर के नाखून धीरे धीरे शिथिल पड़ने लगता
है तब यह स्वयं से पत्थर पर मार मार कर असहनीय पीड़ा सहने के बाद भी अपने चोंच और नाखून को तोड़ देता है फिर नया चोंच और
नाखून निकलता है फिर नए सिरे से आगे की
जिंदगी चलती है।
बाज के बारे में ऐसे रोचक जानकारी प्रदान
करने के लिए आपका ह्रदय से आभार🙏