4. बगुला भगत (बगुला और केकड़े की कहानी)
उपायेन जयो यादृग्रिपोस्तादृड् न हेतिभिः
उपाय से शत्रु को जीतो, हथियार से नहीं।
एक जंगल में बहुत सी मछलियों से भरा एक तालाब था। एक बगुला वह दिनवहाँ प्रतिदिन मछलियों को खाने के लिए आता था, किंतु वृद्ध होने के कारण मछलियों को पकड़ नहीं पाता था। इस तरह भूख से व्याकुल हुआ वह एक दिन अपने बुढ़ापे पर रो रहा था कि एक केकड़ा उधर आया। उसमें बगुले को निरंतर आंसू बहाते देखा तो कहा - "मामा! आज तुम पहले की तरह आनंद से भोजन नहीं कर रहे और आंखों में आंसू बहाते हुए बैठे हो। इसका क्या कारण है?
बगुले ने कहा - "मित्र! तुम ठीक कहते हो। मुझे मछलियों को भोजन बनाने से विरक्ति हो चुकी है। आजकल अनशन कर रहा हूं। इसी से मैं पास में आई मछलियों को भी नहीं पकड़ता।
केकड़े ने यह सुनकर पूछा - "मामा! इस वैराग्य का कारण क्या है?
बगुला बोला - "मित्र! बात यह है कि मैंने इस तालाब में जन्म लिया। बचपन से ही यही रहा हूं और यही मेरी उम्र गुजरी। इस तालाब और तालाब वासियों से मेरा प्रेम है। किंतु मैंने सुना है कि अब बड़ा भारी अकाल पड़ने वाला है। 12 वर्षों तक वृष्टि नहीं होगी।
केकड़ा - किससे सुना है?
बगुला - एक ज्योतिषी से सुना है। शनिश्चर जब शकटाकार रोहिणी तारक मंडल को खंडित करके शुक्र के साथ एक राशि में जाएगा, तब 12 वर्ष तक वर्षा नहीं होगी। पृथ्वी पर पाप फैल जाएगा। माता - पिता अपनी संतान का भक्षण करने लगेंगे। इस तालाब में पहले ही पानी कम है। यह बहुत जल्दी सूख जाएगा। इसके सूखने पर मेरे सब बचपन के साथी, जिनके बीच मैं इतना बड़ा हुआ हूं, मर जाएंगे। उनके वियोग दुख की कल्पना से ही मैं इतना रो रहा हूं और इसीलिए मैंने अनशन किया है। दूसरे जलाशयों से भी जलचर अपने छोटे - छोटे तालाब छोड़कर बड़ी-बड़ी झीलों में चले जा रहे हैं। बड़े-बड़े जलचर तो स्वयं ही चले जाते हैं। छोटों के लिए ही कुछ कठिनाई है। दुर्भाग्य से इस जलाशय के जलचर बिल्कुल निश्चिंत बैठे हैं। मानो कुछ होने वाला ही नहीं है। उनके लिए ही मैं रो रहा हूं। उनका वंश नाश हो जाएगा।
केकड़े ने बगुले के मुंह से यह बात सुनकर अन्य सब मछलियों को भी भावी दुर्घटना की सूचना दे दी। सूचना पाकर जलाशय के सभी जलचरों, मछलीयों, कछुओं आदि ने बगुले को घेरकर पूछना शुरू कर दिया। मामा क्या किसी उपाय से हमारी रक्षा हो सकती है?
बगुला बोला - यहां से थोड़ी दूर पर एक प्रचुर जल से भरा जलाशय है। वह इतना बड़ा है कि 24 वर्ष सूखा पड़ने पर भी ना सूखेगा। तुम यदि मेरी पीठ पर चढ़ जाओगे, तो तुम्हें वहां ले चलूंगा।
यह सुनकर सभी मछलियां, कछुआ और अन्य जल जीवों ने बगुले को भाई, मामा, चाचा पुकारते हुए चारों ओर से घेर लिया और चिल्लाना शुरू कर दिया - 'पहले मुझे', 'पहले मुझे'।
वह दुष्ट सब को बारी-बारी अपनी पीठ पर बिठाकर जलाशय से कुछ दूर ले जाता और वहां एक शिला पर उन्हें पटक-पटक कर मार देता था। उन्हें खाकर दूसरे दिन वह फिर जलाशय में आ जाता और नए शिकार ले जाता। कुछ दिन बाद केकड़े ने बगुले से कहा - "मामा! मेरी तुमसे पहले पहल भेंट हुई थी, फिर भी आज तक मुझे नहीं ले गए। अब प्रायः सभी जलाशय तक पहुंच चुके हैं। आज मेरा भी उद्धार कर दो।
केकड़े की बात सुनकर बगुले ने सोचा मछलियां खाते-खाते मेरा मन भी उठ गया है। केकड़े का मांस चटनी का काम करेगा। आज इसका भी आहार करूंगा। यह सोचकर उसने केकड़े को गर्दन पर बिठा लिया और चल दिया।
केकड़े ने जब दूर से ही एक शिला पर मछलियों की हड्डी का पहाड़ देखा, तो समझ गया कि यह बगुला किस अभिप्राय से मछलियों को यहां लाता था। फिर भी वह असली बात को छुपाकर बोला, मामा! यह जलाशय कितनी दूर रह गया है। मेरे भार से तुम काफी थक गए होगे। इसलिए पूछ रहा हूं।
बगुले ने सोचा, अब इसे सच्ची बात कह देने में भी कोई हानि नहीं है। इसलिए वह बोला केकड़े साहब! दूसरे जलाशय की बात अब भूल जाओ। यह तो मेरी प्राण यात्रा चल रही थी। अब तेरा भी काल आ गया है। अंतिम समय में देवता का स्मरण कर ले। इसी शिला पर पटक कर तुझे भी मार डालूंगा और खा जाऊंगा।
बगुला अभी यह बात कह ही रहा था कि, केकड़े ने अपने तीखे दांत बगुले की नर्म मुलायम गर्दन पर गड़ा दिए। बगुला वही मर गया। उसकी गर्दन कट गई। केकड़ा मृत बगुले की गर्दन लेकर धीरे-धीरे अपने पुराने जलाशय पर ही आ गया। उसे देख कर उसके भाई बंधु ने उसे घेर लिया और पूछने लगे क्या बात है? आज मामा नहीं आए? हम सब उनके साथ जलाशा पर जाने को तैयार बैठे हैं।
केकरे ने हंसकर उत्तर दिया, मूर्खों! उस बगुले ने सभी मछलियों को यहां से ले जाकर एक शिला पर पटक कर मार दिया है। यह कह कर उसने अपने पास से बगुले की कटी हुई गर्दन दिखाई और कहा अब चिंता की कोई बात नहीं है, तुम सब यहां आनंद से रहोगे।
गीदड़ ने जब यह कथा सुनाई तो कौवे ने पूछा - मित्र! उस बगुले की तरह यह सांप भी किसी तरह मर सकता है क्या?
गीदड़ - एक काम करो। तुम नगर के राज महल में चले जाओ। वहां से रानी का कंठहार उठाकर सांप के बिल के पास रख दो। राजा के सैनिक कंठहार की खोज में आएंगे और सांप को मार देंगे।
दूसरे ही दिन कौवी राज महल के अंतःपुर में जाकर एक कंठ हार उठा लाई। राजा ने सिपाहियों को उस कौवी का पीछा करने का आदेश दिया। कौवी ने वह कंठ हार सांप के बिल के पास रख दिया। सांप ने उस हार को देख कर उस पर अपना फन फैसला दिया। सिपाहियों ने सांप को लाठियों से मार दिया और कंठ हार ले लिया।
उस दिन के बाद कौवा कौवी की संतान को किसी सांप ने नहीं खाया। तभी मैं कहता हूं कि उपाय से ही शत्रु को वश में कर लेना चाहिए।
दमनक ने फिर कहा - सच तो यह है कि बुद्धि का स्थान बल से बहुत ऊंचा है। जिसके पास बुद्धि है, वही बली है। बुद्धिहीन का बल भी व्यर्थ है। बुद्धिमान निर्बुद्धि को उसी तरह हरा देते हैं जैसे खरगोश ने शेर को हरा दिया था।
करटक ने पूछा कैसे ?
दमनक ने तब "शेर और खरगोश" की कथा सुनाई।
5. सबसे बड़ा बल : "बुद्धि बल" (शेर और खरगोश की कथा)
To be continued ...
Very nice
ReplyDeleteVery nice
ReplyDeleteअच्छी कहानी, और अगली के इंतजार में…
ReplyDeleteye kahaniyon ka silsila acha hai
ReplyDeleteअच्छी कहानी
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत कहानी है
ReplyDeleteबढ़िया कहानी।
ReplyDeleteअच्छी कहानी
ReplyDeleteNice
ReplyDeleteNice story
ReplyDeletegood story
ReplyDeleteVery nice story...
ReplyDeleteVery nice , waiting for the next
ReplyDeleteGood story 👏👏
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