ढोल की पोल : पंचतंत्र / Dhol kiPol : Panchtantra

2. ढोल की पोल (गोमयु गीदड़ की कथा )

शब्दमात्रात् न भीतव्यम् 

शब्द मात्र से डरना उचित नहीं

ढोल की पोल (गोमयु गीदड़ की कथा )

"गोमायु नाम का गीदड़ एक बार भूखा - प्यासा जंगल में घूम रहा था। घूमते - घूमते हुए एक युद्ध भूमि में जा पहुंचा। वहां दो सेनाओं में युद्ध होकर शांत हो चुका था। किंतु एक ढोल अभी तक वहीं पड़ा था। उस ढोल पर इधर-उधर की बेलों की शाखाएं हवा से हिलती हुई प्रहार करती थी। उस प्रहार से ढोल से बड़े जोर की आवाज होती थी। 

आवाज सुनकर गोमायु बहुत डर गया। उसने सोचा, इससे पूर्व की भयानक शब्द वाला जानवर मुझे देखे, मैं यहां से भाग जाता हूं। किंतु दूसरे ही पल उसे याद आया कि भय या आनंद के उद्धेग में हमें सहसा कोई काम नहीं करना चाहिए। पहले भय के कारण की खोज करनी चाहिए। यह सोचकर वह धीरे-धीरे उधर चल पड़ा, जिधर से शब्द आ रहा था। शब्द के बहुत निकट पहुंचा, तो ढोल को देखा। ढोल पर बेलों की शाखाएं चोट कर रही थी। गोमायु ने स्वयं भी उस पर हाथ मारने शुरू कर दिए। ढोल और भी जोर से बज उठा। 

गीदड़ ने सोचा यह जानवर तो बहुत सीधा-साधा मालूम होता है। इसका शरीर भी बहुत बड़ा है। मांसल भी है। इसे खाने से बहुत दिनों की भूख मिट जाएगी। इसमें चर्बी, मांस, रक्त खूब होगा। यह सोचकर उसने ढोल के ऊपर लगे चमड़े में दांत गड़ा दिए। चमड़ा बहुत कठोर था। गीदड़ के 2 दांत टूट गए। बड़ी कठिनाई से ढोल में एक छेद हुआ।  उस छेद को चौड़ा करके गोमायु गीदड़ जब ढ़ोल में घुसा, तो यह देखकर बड़ा निराश हुआ कि वह तो अंदर से बिल्कुल खाली है। उसमें रक्त - मांस - मज्जा थे ही नहीं।"

गोमयु गीदड़ और ढ़ोल की कथा

यह कहानी सुनाने के बाद दमनक पिंगलक से कहता है -

इसलिए कहता हूं कि शब्द मात्र से डरना उचित नहीं है। 
पिंगलक ने कहा - मेरे सभी साथी उस आवाज से डरकर जंगल से भागने की योजना बना रहे हैं। इन्हें किस तरह धीरज बँधाऊँ?
दमनक - इसमें इनका क्या दोष? सेवक तो स्वामी का ही अनुकरण करते हैं। जैसा स्वामी होगा, वैसे ही सेवक होंगे। यह संसार की रीति है। आप कुछ काल धीरज रखें, साहस से काम लें। में शीघ्र ही शब्द का स्वरूप देख कर आऊंगा। 
पिंगलक - तूम वहां जाने का साहस कैसे करोगे? 
दमनक - स्वामी के आदेश का पालन करना ही सेवक का काम है। स्वामी की आज्ञा हो तो आग में कूद पड़ूँ, समुद्र में छलांग लगा दूं। 
पिंगलक - जाओ इस शब्द का पता लगाओ। तुम्हारा मार्ग कल्याणकारी हो। यही मेरा आशीर्वाद है। 

तब दमनक पिंगलक को प्रणाम करके संजीवक के शब्द की ध्वनि का लक्ष्य बांधकर उसी दिशा में चल दिया।

दमनक के जाने के बाद पिंगलक ने सोचा - यह बात अच्छी नहीं हुई कि मैंने दमनक का विश्वास करके उसके सामने अपने मन का भेद खोल दिया। कहीं वह उसका लाभ उठाकर दूसरे पक्ष से मिल जाए और उसे मुझ पर आक्रमण करने के लिए उकसा दे तो बुरा होगा। मुझे दमनक का भरोसा नहीं करना चाहिए। यह पदच्युत है। उसका पिता मेरा प्रधानमंत्री था। एक बार सम्मानित होकर अपमानित हुए सेवक विश्वास पात्र नहीं होते। वह सदा अपने इस अपमान का बदला लेने का अवसर खोजते रहते हैं। इसलिए किसी दूसरे स्थान पर जाकर दमनक की प्रतीक्षा करता हूं। 

यह सोचकर दमनक की राह देखते हुए वह दूसरे स्थान पर अकेला चला गया। 

दमनक जब संजीवक के शब्द का अनुकरण करता हुआ उसके पास पहुंचा, तो यह देखकर उसे प्रसन्नता हुई कि वह कोई भयंकर जानवर नहीं बल्कि सीधा-साधा बैल है। उसने सोचा जब मैं संधि विग्रह की कूटनीति से पिंगलक  को अवश्य अपने बस में कर लूंगा। आपत्तीग्रस्त राजा की मंत्रियों के बस में होते हैं। यह सोंचकर वह पिंगलक से मिलने के लिए वापस चल दिया। 

पिंगलक ने उसे अकेले आता देखा तो उसके दिल में धीरज बंधा। उसने कहा - दमनक वह जानवर देख लिया तुमने? 
दमनक - आपकी दया से देखा स्वामी। 
पिंगलक - सचमुच? 
दमनक - स्वामी के सामने असत्य नहीं बोल सकता मैं। आपकी तो मैं देवता की तरह पूजा करता हूं। आपसे झूठ कैसे बोल सकूंगा। 
पिंगलक - संभव है तूने देखा हो। इसमें विस्मय क्या? और इसमें भी आश्चर्य नहीं कि उसने तुझे नहीं मारा। महान व्यक्ति महान शत्रु पर ही अपना पराक्रम दिखाते हैं। दीन और तुच्छ जन पर नहीं। आंधी का झोंका बड़े वृक्षों को ही गिराता है, घास - पात को नहीं। 
दमनक - मैं दीन ही सही, किंतु आपकी आज्ञा हो तो मैं उस महान पशु को भी आपका दीन सेवक बना दूं। 
पिंगलक ने लंबी सांस खींचते हुए कहा - यह कैसे होगा? 
दमनक - बुद्धि के बल से सब कुछ हो सकता है। स्वामी! जिस काम को बड़े - बड़े हथियार नहीं कर सकते, उस काम को छोटी सी बुद्धि कर सकती है। 
पिंगलक - यदि यही बात है तो मैं तुझे आज से अपना प्रधानमंत्री बनाता हूं। आज से मेरे राज्य के इनाम बांटने या दंड देने के काम तेरे ही अधीन होंगे। 
शेर और बैल की कहानी : पंचतंत्र
पिंगलक से यह आश्वासन पाने के बाद दमनक संजीवक के पास जाकर अकड़ता हुआ बोला - अरे दुष्ट बैल! मेरा स्वामी पिंगलक तुझे बुला रहा है। तू यहां नदी के किनारे व्यर्थ ही हूंकार क्यों भरता रहता है?
संजीवक - यह पिंगलक कौन? 
दमनक - अरे पिंगलक को नहीं जानता? थोड़ी देर ठहर तो उसकी शक्ति को जान जाएगा। जंगल में जब सब जानवरों का स्वामी पिंगलक शेर वहां वृक्ष की छाया में बैठा है। 
यह सुनकर संजीवक के प्राण सूख गए। दमनक के सामने गिडगिडाते हुए बोला - मित्र! तू सज्जन प्रतीत होता है। यदि तू मुझे वहां ले जाना चाहता है, तो पहले स्वामी से मेरे लिए अभय वचन ले ले। 
दमनक - तेरा कहना सच है। मित्र तू यहीं बैठ मैं अभय वचन लेकर अभी आता हूं। 

तब, दमनक पिंगलक के पास जाकर बोला, स्वामी! वह कोई साधारण जीव नहीं है। वह तो भगवान का वाहक बल है। मेरे पूछने पर उसने मुझे बताया कि उसे भगवान ने प्रसन्न होकर यमुना तट की हरी-भरी घास खाने को भेजा है। वह तो कहता है कि भगवान ने उसे यह सारा वन खेलने और चढ़ने को सौंप दिया है। 
पिंगलक - सच कहते हो भगवान के आशीर्वाद के बिना कौन है जो यहां इस वन में इतनी निष्ठा से घूम सके। फिर तूने क्या उत्तर दिया? 
दमनक - मैंने उसे कहा कि इस वन में तो चंडिका वाहन रूप शेर पिंगलक पहले से ही रहता है। तुम भी उसके अतिथि बनकर रहो। उसके साथ आनंद से विचरण करो। वह तुम्हारा स्वागत करेगा। 
पिंगलक - फिर उसने क्या कहा? 
दमनक - उसने यह बात मान ली और कहा कि अपने स्वामी से अभय वचन ले आओ। मैं तुम्हारे साथ चलूंगा। अब स्वामी जैसा चाहे वैसा करूंगा। 

दमनक की बात सुनकर पिंगलक बहुत प्रसन्न हुआ और बोला - बहुत अच्छा, तूने बहुत अच्छा कहा। मेरे दिल की बात कह दी। अब उसे अभय वचन देकर शीघ्र मेरे पास ले आओ। 
दमनक संजीवक के पास जाते - जाते सोचने लगा - स्वामी आज बहुत प्रसन्न हैं। बातों ही बातों में मैंने उन्हें प्रसन्न कर दिया। आज मुझ से अधिक धन्यभाग्य कोई नहीं। 
संजीवक के पास जाकर दमनक सविनय बोला - मित्र! मेरे स्वामी ने तुम्हें अभय वचन दे दिया है। मेरे साथ आ जाओ, किंतु राजप्रसाद में जाकर अभिमानी ना हो जाना। मुझसे मित्रवत मित्रता का संबंध निभाना। मैं भी तुम्हारे संकेत से राज्य चलाऊंगा। हम दोनों मिलकर राज्य लक्ष्मी का भोग करेंगे। दोनों मिलकर पिंगलक के पास गए।

पिंगलक ने नख विभूषित दाहिना हाथ उठाकर संजीवक का स्वागत किया और कहा कल्याण हो। आप इस निर्जन वन में कैसे आ गए? 
संजीवक ने सब वृतांत कह सुनाया। पिंगलक ने सब सुन कर कहा - मित्र! डरो मत इस वन में मेरा ही राज्य है। मेरी भुजाओं से रक्षित वन में तुम्हारा कोई बाल भी बांका नहीं कर सकता। फिर भी अच्छा यही है कि तुम हर समय मेरे साथ रहो। वन में अनेक बड़े-बड़े हिंसक भयंकर पशु रहते हैं। वनचरों को भी डरकर रहना पड़ता है। तुम तो फिर हो ही निरामिषभोजी। 

शेर और बैल की इस मैत्री के बाद कुछ दिन तो वन का शासन करटक दमनक ही करते रहे। किंतु बाद में संजीवक के संपर्क में पिंगलक भी नगर की सभ्यता से परिचित हो गया। संजीवक को सभ्य जीव मानकर वह उसका सम्मान करने लगा और स्वयं भी संजीवक की तरह से सभ्य होने का यत्न करने लगा। थोड़े दिन बाद संजीवक का प्रभाव पिंगलक पर इतना बढ़ गया कि पिंगलक ने अन्य सब वन्य पशुओं की उपेक्षा शुरू कर दी। प्रत्येक प्रश्न पर पिंगलक संजीवक के साथ ही एकांत में मंत्रणा किया करता। करटक दमनक बीच में दखल नहीं दे पाते थे। संजीवक की इस मान वृद्धि से उनके मन में आग लग गई। 

शेर और बैल की इस मैत्री का एक दुष्परिणाम यह भी हुआ कि शेर ने शिकार के काम में ढ़ील कर दी। करटक - दमनक शेर का उच्छिष्ट मांस खाकर ही जीते थे। अब यह उच्छिष्ट मांस बहुत कम हो गया था। करटक - दमनक इससे भूखे रहने लगे। तब दोनों इसका उपाय सोचने लगे। 
शेर और बैल की कहानी : पंचतंत्र
दमनक बोला - करटक भाई! यह तो अनर्थ हो गया। शेर की दृष्टि में महत्व पाने के लिए ही तो मैंने यह प्रपंच रचा था। इसी लक्ष्य से मैंने संजीवक को शेर से मिलाया था। अब उसका परिणाम सर्वथा विपरीत हो रहा है। संजीवक को पाकर स्वामी ने हमें बिल्कुल भुला दिया है। यहां तक कि अपना काम भी वह भूल गया है। 
करटक ने कहा - किंतु इसमें भूल किसकी है? तूने ही दोनों की भेंट कराई थी। अब तू ही कोई उपाय कर। जिससे इन दोनों में बैर हो जाए। 
दमनक बोला - जिसने मेल कराया है, वह फूट भी डाल सकता है। 
करटक - यदि इनमें से किसी को भी यह ज्ञान हो गया कि तू फूट करना चाहता है, तो तेरा कल्याण नहीं। 
दमनक - मैं इतना कच्चा खिलाड़ी नहीं हूं। सब दांवपेच जानता हूं। करटक मुझे तो फिर भी डर लगता है। संजीवक बुद्धिमान है। वह ऐसा नहीं होने देगा। 
दमनक - भाई! मेरा बुद्धि कौशल सब करा देगा। बुद्धि के बल से असंभव भी संभव हो जाता है। जो काम शस्त्र से नहीं हो पाता वह बुद्धि से हो जाता है। जैसे - सोने की माला से काक पत्नी ने काले सांप का वध किया था। 

करकट ने पूछा - वह कैसे?
दमनक ने तब "सांप और कौवे" की कहानी सुनाई। 

 3. अक्ल बड़ी या भैंस (सांप और कौवे की कहानी)

To be continued ...

18 comments:

  1. पंचतंत्र की कहानियां हमेशा रोचक होती हैं।
    अच्छी कहानी।

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  2. आप बहुत ही सुंदर लिखते हैं। हम सब आपके लेखन से लाभान्वित होते हैं।

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  3. जानवरों में भी राजनीति है 😄

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  4. अच्छी और रोचक कहानी, अगली कहानी का इंतजार है

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  5. केवल शब्द से नहीं डरना चाहिए अक्ल से कम लेना चाहिए।

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  6. Good story.. क्या धांसू तरीका था नीति कौशल सिखाने का।

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