एरावतेश्वरा मंदिर (Airavatesvara Temple)

एरावतेश्वरा मंदिर (Airavatesvara Temple)

 आज एक और मंदिर की चर्चा करते हैं, जो द्रविड़ वास्तुकला का एक हिंदू मंदिर है। यह दक्षिण भारत के तमिलनाडु राज्य में कुंभकोणम के पास दारासुरम में स्थित है। इस मंदिर का नाम है एरावतेश्वरा मंदिर, जो भगवान शिव को समर्पित है। इस मंदिर में देवताओं के राजा इंद्र के सफेद हाथी एरावत द्वारा भगवान शिव की पूजा की गई थी, अतः शिव को यहां ऐरावतेश्वर के रूप में जाना जाता है।

मान्यता है कि मृत्यु के राजा यम ने भी यहां शिव की पूजा की थी। परंपरा के अनुसार यम, जो किसी ऋषि के शाप के कारण पूरे शरीर की जलन से पीड़ित थे, एरावतेश्वर भगवान द्वारा ठीक कर दिए गए। यम ने पवित्र तालाब में स्नान किया और अपनी जलन से छुटकारा पाया तब से उस तालाब को 'यमतीर्थम' के नाम से जाना जाता है।

एरावतेश्वरा मंदिर कला और स्थापत्य कला का भंडार है, जिसमें पत्थरों पर शानदार नक्काशी देखने को मिलती है। मंदिर की दीवारों छतों पर आकर्षक नक्काशी का खूबसूरत प्रयोग किया गया है। यह मंदिर बृहदेश्वर तथा गांगेयकोंडाचोलीश्वरम से छोटा है लेकिन इसकी संपूर्ण संरचना बहुत ही उत्तम तरीके से की गई है, जिसका कोई जवाब नहीं। इसका विमाना (स्तंभ) 24 मीटर (80 फीट) ऊंचा है। सामने के मंडप का दक्षिणी भाग पत्थर के बड़े पहियों वाले एक विशाल रथ के रूप में है, जिसे घोड़े द्वारा खींचा जा रहा है।इस मंदिर का निर्माण आस्था के साथ - साथ सतत मनोरंजन और नित्य विनोद को ध्यान में रखकर किया गया था।

मंदिर के अंदर प्रवेश करने पर खूबसूरत नक्काशीदार इमारतों का समूह है। यहां अलग-अलग जगहों पर शिलालेख भी नजर आते हैं, जो चोल राजाओं के विषय में जानकारी देते हैं। मंदिर के बरामदे पर 108 खंड के शिलालेख मौजूद हैं, जिनपर शिव संतो यानी शिवाचार्य के नाम अंकित हैं। भीतरी आंगन के पूर्व में बेहतरीन नक्काशीदार इमारतों का एक समूह है, जिसमें एक को बलीपीठ (बलि देने का स्थान) कहा जाता है। बलीपीथ की कुर्सी पर एक छोटा मंदिर बना है, जिसमें गणेश जी की छवि अंकित है। चौकी की दक्षिण तरफ शानदार नक्काशी संयुक्त तीन सीढ़ियों का एक समूह है, जहां चरणों पर प्रहार करने से विभिन्न संगीत ध्वनियां उत्पन्न होती हैं। इस मंदिर को 2004 में महान चोल मंदिरों में शामिल किया गया था। ऐरावतेश्वर मंदिर का निर्माण चोल द्वितीय के शासनकाल के दौरान 12 वीं सदी में करवाया गया था।

12 वीं सदी में राजा चोल द्वितीय द्वारा निर्मित इस मंदिर को तंजावुर के वृद्धेश्वर मंदिर तथा गंगेयकोंडा चोलापुरम के गांगेयकोंडाचोलीश्वरम मंदिर के साथ यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर स्थल बनाया गया है। इन मंदिरों को महान जीवंत चोल मंदिरों के रूप में जाना जाता है।

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Airavatesvara Temple

Today we discuss another temple, which is a Hindu temple of Dravidian architecture.  It is located at Darasuram near Kumbakonam in the state of Tamil Nadu, South India.  The name of this temple is Eravateshwara Temple, which is dedicated to Lord Shiva.  In this temple, Lord Shiva was worshiped by Eravat, the white elephant of Indra, the king of the gods, hence Shiva is known here as Airavateshwara.

 It is believed that King Yama of death also worshiped Shiva here.  According to tradition, Yama, who suffered from burns of the entire body due to the curse of a sage, was cured by the god Eravateshwara.  Yama took a bath in the holy tank and got rid of his burns. Since then, that pond is known as 'Yamamirtham'. Aravateshwara Temple is a repository of art and architecture, which has magnificent carvings on the stones.  Beautiful carvings have been used beautifully on the walls and roofs of the temple. 

 This temple is smaller than Brihadeeswarar and Gangayakondacholiswaram but its entire structure is very well done, to which there is no answer.  Its vimana (pillar) is 24 meters (80 ft) high.  The southern part of the front pavilion is in the form of a huge chariot with large stone wheels, which is being pulled by a horse. This temple was built keeping in mind the faith as well as the continuous entertainment and continual humor.  Entering inside is a cluster of beautifully carved buildings.  Inscriptions are also seen here at different places, which give information about the Chola kings. 

 There are 108 inscriptions on the verandah of the temple, inscribed with the names of Shiva saints i.e. Shivacharya.  To the east of the inner courtyard is a group of exquisitely carved buildings, one of which is called Balipitha (place of sacrifice).  A small temple is built on the chair of Balipith, in which the image of Ganesha is inscribed.  The magnificent outpost on the south side of the outpost is a group of combined three staircases, striking the steps to produce various musical sounds.  This temple was included in the great Chola temples in 2004.  The Airavateshwara Temple was built in the 12th century during the reign of Chola II. This temple built by King Chola II in the 12th century has been made a UNESCO World Heritage Site along with the Vridheshwar Temple in Thanjavur and the Gangaikondacholisvaram Temple in Gangayakonda Cholapuram. These temples are known as the great vibrant Chola temples.

29 comments:

  1. Pahli baar suna ha is mandir ke bare me...south bharat me bahut bhawya bhawya mandir hain..

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  2. पत्थरों को काटकर मंदिर बनाना और इस पर इतनी महीन नक्काशी, अपने देश के स्थापत्य और वास्तुकला का बेजोड़ उदाहरण है 👍👍

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  3. स्थापत्य एवं वास्तु कला का बेजोड़ उदाहरण।जानकारी देने का अच्छा प्रयास। धन्यवाद।

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  4. Traditionally Beautiful Incredible India.. itne sarv guna sampann hai humare desh ke log bashartein apni yogyata ko sahi disha me lgaye toh aise hi adbhut ajoobe utpann hote hai 👌👌

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  5. एक और नई जानकारी, इस मंदिर के विषय में कभी नहीं सुना था, ऐसे ही बहुत से लोग अपनी विरासत से अनभिज्ञ हैं।

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  6. पहली बार सुना है इस मंदिर के बारे में। एक अच्छी शुरुआत अपने सांस्कृतिक विरासत के बारे में सब को अवगत करने की।

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  7. Amazing 👏👏👏

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