सुंदरकांड
मेघनादने ब्रम्हास्त्र चलाया
दोहा (Doha – Sunderkand)
ब्रह्म अस्त्र तेहि साँधा कपि मन कीन्ह बिचार।
जौं न ब्रह्मसर मानउँ महिमा मिटइ अपार ॥19॥
जौं न ब्रह्मसर मानउँ महिमा मिटइ अपार ॥19॥
मेघनाद अनेक अस्त्र चलाकर थक गया, तब उसने ब्रम्हास्त्र चलाया। उसे देखकर हनुमानजी ने मनमे विचार किया कि इससे बंध जाना ही ठीक है।
क्योंकि जो मै इस ब्रम्हास्त्रको नहीं मानूंगा तो इस अस्त्रकी अद्भुत महिमा घट जायेगी ॥19॥ जय सियाराम जय जय सियाराम
क्योंकि जो मै इस ब्रम्हास्त्रको नहीं मानूंगा तो इस अस्त्रकी अद्भुत महिमा घट जायेगी ॥19॥ जय सियाराम जय जय सियाराम
मेघनाद हनुमानजी को बंदी बनाकर रावणकी सभा में ले गया
चौपाई (Chaupai – Sunderkand)
ब्रह्मबान कपि कहुँ तेहिं मारा।
परतिहुँ बार कटकु संघारा॥
तेहिं देखा कपि मुरुछित भयऊ।
नागपास बाँधेसि लै गयऊ॥
परतिहुँ बार कटकु संघारा॥
तेहिं देखा कपि मुरुछित भयऊ।
नागपास बाँधेसि लै गयऊ॥
मेघनादने हनुमानजीपर ब्रम्हास्त्र चलाया, उस ब्रम्हास्त्रसे हनुमानजी गिरने लगे तो गिरते समय भी उन्होंने अपने शरीरसे बहुतसे राक्षसोंका संहार कर डाला॥
जब मेघनादने जान लिया कि हनुमानजी अचेत हो गए है, तब वह उन्हें नागपाशसे बांधकर लंकामे ले गया॥ जय सियाराम जय जय सियाराम
जब मेघनादने जान लिया कि हनुमानजी अचेत हो गए है, तब वह उन्हें नागपाशसे बांधकर लंकामे ले गया॥ जय सियाराम जय जय सियाराम
जासु नाम जपि सुनहु भवानी।
भव बंधन काटहिं नर ग्यानी॥
तासु दूत कि बंध तरु आवा।
प्रभु कारज लगि कपिहिं बँधावा॥
भव बंधन काटहिं नर ग्यानी॥
तासु दूत कि बंध तरु आवा।
प्रभु कारज लगि कपिहिं बँधावा॥
महादेवजी कहते है कि हे पार्वती! सुनो, जिनके नामका जपकरनेसे ज्ञानी लोग भवबंधन को काट देते है॥
उस प्रभुका दूत (हनुमानजी) भला बंधन में कैसे आ सकता है? परंतु अपने प्रभुके कार्यके लिए हनुमानने अपनेको बंधा दिया॥ जय सियाराम जय जय सियाराम
उस प्रभुका दूत (हनुमानजी) भला बंधन में कैसे आ सकता है? परंतु अपने प्रभुके कार्यके लिए हनुमानने अपनेको बंधा दिया॥ जय सियाराम जय जय सियाराम
कपि बंधन सुनि निसिचर धाए।
कौतुक लागि सभाँ सब आए॥
दसमुख सभा दीखि कपि जाई।
कहि न जाइ कछु अति प्रभुताई॥
कौतुक लागि सभाँ सब आए॥
दसमुख सभा दीखि कपि जाई।
कहि न जाइ कछु अति प्रभुताई॥
हनुमानजी को बंधा हुआ सुनकर सब राक्षस देखनेको दौड़े और कौतुकके लिए उसे सभामे ले आये॥
हनुमानजी ने जाकर रावण की सभा देखी, तो उसकी प्रभुता और ऐश्वर्य किसी कदर कही जाय ऐसी नहीं थी॥ जय सियाराम जय जय सियाराम
हनुमानजी ने जाकर रावण की सभा देखी, तो उसकी प्रभुता और ऐश्वर्य किसी कदर कही जाय ऐसी नहीं थी॥ जय सियाराम जय जय सियाराम
कर जोरें सुर दिसिप बिनीता।
भृकुटि बिलोकत सकल सभीता॥
देखि प्रताप न कपि मन संका।
जिमि अहिगन महुँ गरुड़ असंका॥
भृकुटि बिलोकत सकल सभीता॥
देखि प्रताप न कपि मन संका।
जिमि अहिगन महुँ गरुड़ असंका॥
कारण यह है की, तमाम देवता बड़े विनय के साथ हाथ जोड़े सामने खड़े उसकी भ्रूकुटीकी ओर भयसहित देख रहे है॥
यद्यपि हनुमानजी ने उसका ऐसा प्रताप देखा, परंतु उनके मन में ज़रा भी डर नहीं था। हनुमानजी उस सभामें राक्षसोंके बीच ऐसे निडर खड़े थे कि जैसे गरुड़ सर्पोके बीच निडर रहा करता है॥ जय सियाराम जय जय सियाराम
यद्यपि हनुमानजी ने उसका ऐसा प्रताप देखा, परंतु उनके मन में ज़रा भी डर नहीं था। हनुमानजी उस सभामें राक्षसोंके बीच ऐसे निडर खड़े थे कि जैसे गरुड़ सर्पोके बीच निडर रहा करता है॥ जय सियाराम जय जय सियाराम
दोहा (Doha – Sunderkand)
कपिहि बिलोकि दसानन बिहसा कहि दुर्बाद।
सुत बध सुरति कीन्हि पुनि उपजा हृदयँ बिसाद ॥20॥
सुत बध सुरति कीन्हि पुनि उपजा हृदयँ बिसाद ॥20॥
रावण हनुमानजी की और देखकर हँसा और कुछ दुर्वचन भी कहे, परंतु फिर उसे पुत्रका मरण याद आजानेसे उसके हृदयमे बड़ा संताप पैदा हुआ॥ जय सियाराम जय जय सियाराम
हनुमानजी और रावण का संवाद
चौपाई (Chaupai – Sunderkand)
कह लंकेस कवन तैं कीसा।
केहि कें बल घालेहि बन खीसा॥
की धौं श्रवन सुनेहि नहिं मोही।
देखउँ अति असंक सठ तोही॥
केहि कें बल घालेहि बन खीसा॥
की धौं श्रवन सुनेहि नहिं मोही।
देखउँ अति असंक सठ तोही॥
रावण ने हनुमानजी से कहा कि हे वानर! तू कहांसे आया है? और तूने किसके बल से मेरे वनका विध्वंस कर दिया है॥
मैं तुझे अत्यंत निडर देख रहा हूँ सो क्या तूने कभी मेरा नाम अपने कानों से नहीं सुना है?॥ जय सियाराम जय जय सियाराम
मैं तुझे अत्यंत निडर देख रहा हूँ सो क्या तूने कभी मेरा नाम अपने कानों से नहीं सुना है?॥ जय सियाराम जय जय सियाराम
मारे निसिचर केहिं अपराधा।
कहु सठ तोहि न प्रान कइ बाधा॥
सुनु रावन ब्रह्मांड निकाया।
पाइ जासु बल बिरचति माया॥
कहु सठ तोहि न प्रान कइ बाधा॥
सुनु रावन ब्रह्मांड निकाया।
पाइ जासु बल बिरचति माया॥
तुझको हम जीसे नहीं मारेंगे, परन्तु सच कह दे कि तूने हमारे राक्षसोंको किस अपराध के लिए मारा है?
रावणके ये वचन सुनकर हनुमानजीने रावण से कहा कि हे रावण! सुन, यह माया (प्रकृति) जिस परमात्माके बल (चैतन्यशक्ति) को पाकर अनेक ब्रम्हांडसमूह रचती है॥ जय सियाराम जय जय सियाराम
रावणके ये वचन सुनकर हनुमानजीने रावण से कहा कि हे रावण! सुन, यह माया (प्रकृति) जिस परमात्माके बल (चैतन्यशक्ति) को पाकर अनेक ब्रम्हांडसमूह रचती है॥ जय सियाराम जय जय सियाराम
जाकें बल बिरंचि हरि ईसा।
पालत सृजत हरत दससीसा॥
जा बल सीस धरत सहसानन।
अंडकोस समेत गिरि कानन॥
पालत सृजत हरत दससीसा॥
जा बल सीस धरत सहसानन।
अंडकोस समेत गिरि कानन॥
हे रावण! जिसके बलसे ब्रह्मा, विष्णु और महेश ये तीनो देवजगतको रचते है, पालते है और संहार करते है॥
और जिनकी सामर्थ्यसे शेषजी अपने शिरसे वन और पर्वतोंसहित इस सारे ब्रम्हांडको धारण करते है॥जय सियाराम जय जय सियाराम
और जिनकी सामर्थ्यसे शेषजी अपने शिरसे वन और पर्वतोंसहित इस सारे ब्रम्हांडको धारण करते है॥जय सियाराम जय जय सियाराम
धरइ जो बिबिध देह सुरत्राता।
तुम्ह से सठन्ह सिखावनु दाता॥
हर कोदंड कठिन जेहिं भंजा।
तेहि समेत नृप दल मद गंजा॥
तुम्ह से सठन्ह सिखावनु दाता॥
हर कोदंड कठिन जेहिं भंजा।
तेहि समेत नृप दल मद गंजा॥
और जो देवताओके रक्षा के लिए और तुम्हारे जैसे दुष्टोको दंड देनेके लिए अनेक शरीर (अवतार) धारण करते है॥
जिसने महादेवजीके अति कठिन धनुषको तोड़कर तेरे साथ तमाम राजसमूहोके मदको भंजन किया (गर्व चूर्ण कर दिया) है॥ जय सियाराम जय जय सियाराम
जिसने महादेवजीके अति कठिन धनुषको तोड़कर तेरे साथ तमाम राजसमूहोके मदको भंजन किया (गर्व चूर्ण कर दिया) है॥ जय सियाराम जय जय सियाराम
खर दूषन त्रिसिरा अरु बाली।
बधे सकल अतुलित बलसाली॥
बधे सकल अतुलित बलसाली॥
और जिसने खर, दूषण, त्रिशिरा और बालि ऐसे बड़े बलवाले योद्धओको मारा है॥ जय सियाराम जय जय सियाराम
दोहा (Doha – Sunderkand)
जाके बल लवलेस तें जितेहु चराचर झारि।
तास दूत मैं जा करि हरि आनेहु प्रिय नारि ॥21॥
तास दूत मैं जा करि हरि आनेहु प्रिय नारि ॥21॥
और हे रावण! सुन, जिसके बलके लवलेश अर्थात किन्चित्मात्र अंश से तूने तमाम चराचर जगत को जीता है, उस परमात्मा का मै दूत हूँ। जिसकी प्यारी सीता को तू हर ले आया है ॥21॥
हनुमानजी और रावण का संवाद
चौपाई (Chaupai – Sunderkand)
जानउँ मैं तुम्हारि प्रभुताई।
सहसबाहु सन परी लराई॥
समर बालि सन करि जसु पावा।
सुनि कपि बचन बिहसि बिहरावा॥
सहसबाहु सन परी लराई॥
समर बालि सन करि जसु पावा।
सुनि कपि बचन बिहसि बिहरावा॥
हे रावण! आपकी प्रभुता तो मैंने तभीसे जान ली है कि जब आपको सहस्रबाहुके साथ युद्ध करनेका काम पड़ा था॥
और मुझको यह बातभी याद है कि आप बालिसे लड़ कर जो यश पाये थे। हनुमानजी के ये वचन सुनकर रावण ने हँसी में ही उड़ा दिए॥ जय सियाराम जय जय सियाराम
और मुझको यह बातभी याद है कि आप बालिसे लड़ कर जो यश पाये थे। हनुमानजी के ये वचन सुनकर रावण ने हँसी में ही उड़ा दिए॥ जय सियाराम जय जय सियाराम
खायउँ फल प्रभु लागी भूँखा।
कपि सुभाव तें तोरेउँ रूखा॥
सब कें देह परम प्रिय स्वामी।
मारहिं मोहि कुमारग गामी॥
कपि सुभाव तें तोरेउँ रूखा॥
सब कें देह परम प्रिय स्वामी।
मारहिं मोहि कुमारग गामी॥
तब फिर हनुमानजी ने कहा कि हे रावण! मुझको भूख लग गयी थी इसलिए तो मैंने आपके बाग़ के फल खाए है और जो वृक्षोकोतोडा है सो तो केवल मैंने अपने वानर स्वाभावकी चपलतासे तोड़ डाले है॥
और जो मैंने आपके राक्षसोंको मारा उसका कारण तो यह है की हे रावण! अपना देह तो सबको बहुत प्यारा लगता है, सो वे खोटे रास्ते चलने वाले राक्षस मुझको मारने लगे॥जय सियाराम जय जय सियाराम
और जो मैंने आपके राक्षसोंको मारा उसका कारण तो यह है की हे रावण! अपना देह तो सबको बहुत प्यारा लगता है, सो वे खोटे रास्ते चलने वाले राक्षस मुझको मारने लगे॥जय सियाराम जय जय सियाराम
जिन्ह मोहि मारा ते मैं मारे।
तेहि पर बाँधेउँ तनयँ तुम्हारे॥
मोहि न कछु बाँधे कइ लाजा।
कीन्ह चहउँ निज प्रभु कर काजा॥
तेहि पर बाँधेउँ तनयँ तुम्हारे॥
मोहि न कछु बाँधे कइ लाजा।
कीन्ह चहउँ निज प्रभु कर काजा॥
तब मैंने अपने प्यारे शरीरकी रक्षा करनेके लिए जिन्होंने मुझको मारा था उनको मैंने भी मारा। इसपर आपके पुत्र ने मुझको बाँध लिया
है॥
हनुमानजी कहते है कि मुझको बंध जाने से कुछ भी शर्म नहीं आती क्योंकि मै अपने स्वामीका कार्य करना चाहता हूँ॥ जय सियाराम जय जय सियाराम
हनुमानजी कहते है कि मुझको बंध जाने से कुछ भी शर्म नहीं आती क्योंकि मै अपने स्वामीका कार्य करना चाहता हूँ॥ जय सियाराम जय जय सियाराम
बिनती करउँ जोरि कर रावन।
सुनहु मान तजि मोर सिखावन॥
देखहु तुम्ह निज कुलहि बिचारी।
भ्रम तजि भजहु भगत भय हारी॥
सुनहु मान तजि मोर सिखावन॥
देखहु तुम्ह निज कुलहि बिचारी।
भ्रम तजि भजहु भगत भय हारी॥
हे रावण! मै हाथ जोड़कर आपसे प्रार्थना करता हूँ। सो अभिमान छोड़कर मेरी शिक्षा सुनो। और अपने मनमे विचार करके तुम अपने आप खूब अच्छी तरह देख लो और सोचनेके बाद भ्रम छोड़कर भक्तजनोंके भय मिटानेवाले प्रभुकी सेवा करो॥ जय सियाराम जय जय सियाराम
जाकें डर अति काल डेराई।
जो सुर असुर चराचर खाई॥
तासों बयरु कबहुँ नहिं कीजै।
मोरे कहें जानकी दीजै॥
जो सुर असुर चराचर खाई॥
तासों बयरु कबहुँ नहिं कीजै।
मोरे कहें जानकी दीजै॥
हे रावण! काल, (जो देवता, दैत्य और सारे चराचरको खा जाता है) भी जिसके सामने अत्यंत भयभीत रहता है॥
उस परमात्मासे कभी बैर नहीं करना चाहिये। इसलिए जो तू मेरा कहना माने तो सीताजीको रामचन्द्रजीको दे दो॥ जय सियाराम जय जय सियाराम
उस परमात्मासे कभी बैर नहीं करना चाहिये। इसलिए जो तू मेरा कहना माने तो सीताजीको रामचन्द्रजीको दे दो॥ जय सियाराम जय जय सियाराम
दोहा (Doha – Sunderkand)
प्रनतपाल रघुनायक करुना सिंधु खरारि।
गएँ सरन प्रभु राखिहैं तव अपराध बिसारि ॥22॥
गएँ सरन प्रभु राखिहैं तव अपराध बिसारि ॥22॥
हे रावण! खरके मारनेवाले रघुवंशमणि रामचन्द्रजी भक्तपालकऔर करुणाके सागर है। इसलिए यदि तू उनकी शरण चला जाएगा तो वे प्रभु तेरे अपराधको माफ़ करके तेरी रक्षा करेंगे ॥22॥ जय सियाराम जय जय सियाराम